भारत भले ही दुनिया का सबसे विशाल लोकतंत्र हो और 'सुपर पावर' कहलाने की हसरत रखता हो, लेकिन इतना कुछ होने के बाद क्या भारत एक कमज़ोर देश है? ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि इटली ने भारत के मछुआरों के हत्यारों को वापस भेजने से मना कर दिया है. वोट डालने के नाम पर सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी थी, लेकिन अब वह दग़ाबाज़ी पर उतर आया है.
इटली की मज़ाल ने भारत को इतना मजबूर बना दिया है कि विदेश मंत्रालय से लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय तक कसमसाकर रह गया. मछुआरों के हत्यारों को वापस भेजने के नाम पर इटली ने ठेंगा दिखा दिया. इस मामले में न तो अदालत कुछ कर सकी और न ही आदमी. इस मामले की गूंज संसद में भी खूब सुनाई पड़ी. पक्ष-विपक्ष ने एक सुर में इटली के रवैए के प्रति एतराज जताया.
केरल के पास भारत की समुद्री सीमा से एक जहाज गुज़र जा रहा था. उस जहाज के दो नाविकों ने पास में मछली मार रहे एक नाव की तरफ गोली चलाई. इस गोलीबारी में दो मछुआरों की मौत हो गई. इस मामले में मासिमिलानो और जिरोन को गिरफ्तार कर लिया गया और हत्या का मुकदमा शुरू हुआ.
यहां तक तो सब ठीक लगता है, लेकिन गड़बड़ हो गई 22 फरवरी को. सुप्रीम कोर्ट ने इटली के चुनाव में वोट देने के नाम पर दोनों को ज़मानत दे दी, वह भी 4 हफ्ते के लिए. तीन हफ्ते की मौज़ के बाद इटली ने कहा कि हम हत्यारों को नहीं भेजेंगे.
आखिरकार 6 करोड़ लोगों के देश ने सवा सौ करोड़ आबादी वाले हिंदुस्तान को बेवक़ूफ और बेचारा दोनों बना दिया. मछुआरों के हत्यारे क्रिसमस का केक काटने के लिए भी इटली गए थे, लेकिन लौट आए थे. वोट डालने गए, तो वहीं के होकर रह गए. इस महादेश के महानुभावों को मूर्ख बनाकर रोम के हत्यारे उड़ गए और हम कुछ नहीं कर सके.
इस मामले में कई गंभीर सवाल उठते हैं. पहला सवाल यह है कि विदेशी हत्यारों के वोट की इतनी परवाह हमने क्यों की? दूसरा यह कि वोट ही डालना था तो पोस्टल बैलट का इस्तेमाल क्यों नहीं करवाया गया? दूतावास में वोट क्यों नहीं डलवाया गया?
गौरतलब है कि इटली के राजदूत को तलब किया गया है. 22 मार्च तक का वक्त दिया है, वर्ना उन्हें रोम रवाना करने की तैयारी हो रही है. अब पीएम कुछ भी कहें और सरकार कुछ भी करे, लेकिन दुनिया के सबसे विशाल लोकतंत्र के तौर पर इटली ने हमारी हैसियत तो हवा में उड़ा ही दी है.