श्रीहरिकोटा में चंद्रयान-1 छोड़े जाने के कुछ ही मिनटों बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष जी. माधवन नायर ने प्रबंध संपादक राज चेंगप्पा से इस अभियान के महत्व और भारत के भावी अंतरिक्ष अभियानों के बारे में बात की. मुख्य अंशः
भारत के लिए चंद्रयान प्रक्षेपण क्या मायने रखता है?
यह एक बड़ी प्रौद्योगिकी सफलता है. पहली बार हम पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र से बाहर कोई यान भेज रहे हैं. अभी बहुत कुछ अज्ञात है. यह महासागर में छलांग लगाने जैसा है. धरती से चंद्रमा तक करीब 4 लाख किमी का सफर पूरा करना ही असली चुनौती होगी. यह एक नए अध्याय की शुरुआत है.
चंद्रयान चंद्रमा पर जाने वाला 68वां मिशन है. क्या यह दोबारा पहिए की खोज करने जैसा नहीं है?
पहले के मिशनों से मनुष्य को चंद्रमा के बारे में छिटपुट जानकारियां ही मिलीं. अब नासा भी अगले साल विस्तृत जानकारी के लिए अंतरिक्ष यान भेज रहा है. यानी, चंद्रमा के बारे में पूरी जानकारी उपलब्ध नहीं है. हमने ऐसी व्यवस्था की है कि चंद्रयान चंद्रमा का पूरा नक्शा दिखाए, जो दूसरे मिशनों ने अब तक नहीं किया है.
क्या इसरो विकास के लिए अंतरिक्ष का उपयोग करने के अपने प्राथमिक उद्देश्य से हट रहा है?
इसरो की प्राथमिकता एकदम स्पष्ट है. हम अपनी अंतरिक्ष आधारित प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल देश के लोगों का जीवन बेहतर बनाने के लिए करना चाहते हैं. यह हमेशा ही हमारा उद्देश्य रहेगा. लेकिन हमारे संसाधनों और प्रयासों का छोटा-सा हिस्सा ग्रहों की खोज में लगाया जाएगा. इसकी शुरुआत हम चंद्रमा से कर रहे हैं. चंद्रयान-२ को सरकार से मंजूरी मिल चुकी है. इसमें चंद्रमा की धरती पर उतरने वाला एक यान और एक रोवर (भ्रमण करने वाला यान) होगा, जो कुछ नमूने और डाटा लाएगा. हम मंगल पर भी जाने के संभावित मिशन पर काम कर रहे हैं. हम वैज्ञानिक रुचि जगाना चाहते हैं. आज लोगों को विज्ञान की ओर आकर्षित करना कठिन है. हम प्रौद्योगिकी और विज्ञान दोनों को बढ़ावा दे रहे हैं. जहां तक अंतरिक्ष का संबंध है, भारत एक विकसित देश है. अब हमें इस बढ़त को बनाए रखना होगा.
ग्रहों की खोज करने के मुख्य लाभ क्या हैं?
अंतरिक्ष में जाने वाले देशों का एजेंडा चंद्रमा के बारे में विस्तृत जानकारी हासिल करना है. संभव हो तो उसके संसाधनों का इस्तेमाल किया जाए और कॉलोनियां बनाई जाएं-चाहे वे रोबोटिक हों या मानव कॉलोनियां. भारत इस दौड़ में पीछे नहीं रह सकता. इसलिए हमें अपनी गति बनाए रखनी होगी और हमेशा की तरह हम यह काम बहुत कम बजट में करते हैं. चंद्रयान मिशन की लागत मुश्किल से 10 करोड़ डॉलर आई है, जो अंतरराष्ट्रीय मानक के मुताबिक ऐसे कार्यक्रमों पर खर्च होने वाले बजट का 20 प्रतिशत ही है.
चीन ने हाल में अंतरिक्ष में यात्री उतारे. मानवयुक्त अंतरिक्ष अभियानों के लिए भारत की क्या योजनाएं हैं?
हम अब तक रोबोटिक खोजों पर ध्यान दे रहे थे लेकिन अब मशीन के साथ इंसान का होना महत्वपूर्ण है. हम पहले ही कार्यक्रम बना चुके हैं जिसमें पृथ्वी की कक्षा में चक्कर लगाते माड्यूल में हम दो अंतरिक्ष यात्रियों को ले जा सकते हैं. इस तरह हमारे पास अंतरिक्ष में मानव भेजने की क्षमता हो जाएगी. हम इसे 2015 से पहले हासिल करना चाहते हैं. इसमें करीब 12,000 करोड़ रु. खर्च होंगे. सरकारी मंजूरी का इंतजार है.
रॉकेट प्रौद्योगिकी में सुधार के लिए इसरो की योजना?
सस्ते प्रक्षेपकों में हम बढ़त बनाए रखना चाहते हैं. जब हम जीएसएलवी मार्क-3 विकसित कर लेंगे, जो हमारा अगली पीढ़ी का प्रक्षेपक होगा, तो प्रक्षेपण लागत 60 प्रतिशत से कम हो जाएगी. हालांकि इस समय भी हमारी प्रक्षेपण लागत काफी कम है. इस तरह हम पहले ही विश्व बाजार की प्रतिस्पर्धा में हैं. लेकिन हमें दोबारा इस्तेमाल किए जा सकने वाले प्रक्षेपक विकसित करने की जरूरत है, जिससे लागत में और भी कमी आएगी.