केंद्रीय मंत्री अरूण जेटली ने कहा कि आम लोगों के मानवाधिकारों की रक्षा के लिए आतंकियों से सख्ती से निपटने की जरूरत है. जेटली ने सवाल उठाया कि मरने और मारने को तैयार फिदायीन के साथ क्या ‘ सत्याग्रह ’ के रास्ते से निपटना चाहिए , फिर कहा कि ‘‘ एक आतंकी जो आत्मसमर्पण करने से इनकार करता है और संघर्षविराम के प्रस्ताव से भी इनकार करता है उसके साथ उसी तरह से निपटा जाना चाहिए जिस तरह कानून को अपने हाथों में लेने वाले किसी भी व्यक्ति से निपटा जाता है.
जेटली ने कहा कि यह बल प्रयोग की बात नहीं है, यह कानून के शासन की बात है. जेटली ने कहा कि हर भारतीय इस बात को लेकर चिंतित है कि कौन है जो इस देश को एकजुट रख सकता है. उन्होंने कहा कि भारत का एकमात्र लक्ष्य एक चुनी हुई सरकार , जनता के साथ संवाद , एक कश्मीरी के प्रति इंसानियत भरा रूख है , हालांकि इससे कुछ लोग असहमति जता सकते हैं.
जेटली ने अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा , ‘‘ कभी - कभी हम उन मुहावरों में फंस जाते हैं जो हमने ही गढ़े हैं. ऐसा ही एक मुहावरा है ‘‘ कश्मीर में बल प्रयोग की नीति ’’. एक हत्यारे से निपटना भी कानून - व्यवस्था का मुद्दा है. इसके लिए राजनीतिक समाधान का इंतजार नहीं किया जा सकता. ’’ उन्होंने सवाल उठाया , ‘‘ एक फिदायीन मरने को तैयार रहता है. वह मारने को भी तैयार रहता है. तो क्या उन्हें सत्याग्रह का प्रस्ताव देकर निपटा जा सकता है ? जब वह हत्या करने जा रहा हो तो क्या सुरक्षा बलों को उससे यह कहना चाहिए कि वह मेज तक आए और उनके साथ बात करे ?’’
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जेटली ने कहा कि कश्मीर में जिस नीति का पालन किया जाना चाहिए वह घाटी के आम नागरिकों की रक्षा करना , उन्हें आतंक से मुक्त करना , उन्हें बेहतर गुणवत्ता का जीवन और पर्यावरण देना होना चाहिए. जेटली ने कहा , ‘‘ भारत की संप्रभुता और नागरिकों के जीवन जीने के अधिकार की रक्षा सर्वोपरि होनी चाहिए. ’’ उन्होंने कहा कि माओवाद प्रायोजित मानवाधिकार संगठन केवल अलगाववाद और हिंसा का समर्थन करते हैं - चाहे यह कश्मीर में हो या छत्तीसगढ़ में. इस तरह उन्होंने मानवाधिकार की बेहद महत्वपूर्ण अवधारणा का नाम खराब किया है. जेटली ने लिखा , ‘‘ हमारी नीति होनी चाहिए ‘‘ हर भारतीय , चाहे वह आदिवासी हो या फिर कश्मीरी , उनके मानवाधिकारों की आतंकियों से रक्षा की जाए.’’