जम्मू-कश्मीर के लिए वर्ष 2010 अशांति भरा रहा और महीनों तक पत्थरबाजी होती रही. इस दौरान 100 से अधिक लोग मारे गए. इसके साथ ही माछिल की कथित फर्जी मुठभेड़ और मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप भी सुखिर्यों में बने रहे.
कश्मीर के लोगों तक पहुंचने के लिए केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदंबरम के नेतृत्व में सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल बनाए जाने तीन वार्ताकारों की नियुक्ति और सीमावर्ती क्षेत्रों में घुसपैठ के 100 से अधिक प्रयास भी राज्य की शीर्ष खबरों में शामिल रहे. घटनाओं के चलते राज्य के पर्यटन पर भी खासा असर पड़ा.
इस साल गर्मियों में सड़कों पर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए और सुरक्षाबलों की कार्रवाई में 100 से अधिक लोग मारे गए. इस दौरान मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को हटाने के लिए भी आवाज उठी.
उमर के इस बयान से भाजपा भड़क गई कि कश्मीर का भारत में विलय नहीं हुआ था बल्कि यह एक समझौते के तहत भारत के साथ जुड़ने पर सहमत हुआ था. भगवा पार्टी ने मुख्यमंत्री को हटाने की मांग की.
यह साल श्रीनगर के लाल चौक क्षेत्र में लश्कर ए तैयबा के आत्मघाती हमले के साथ शुरू हुआ. छह जनवरी को हुआ यह हमला लगभग तीन साल के अंतराल के बाद पहला हमला था. इस दौरान एक युवक की मौत को लोगों द्वारा मानवाधिकारों का उल्लंघन बताया गया जो मुठभेड़ स्थल के नजदीक सुरक्षाबलों की गोली से घायल हो गया था.