कश्मीर से अचानक अनुच्छेद 370 को हटाने का फैसला लेकर मोदी सरकार ने कांग्रेस की मुश्किल बढ़ा दी है. बेशक कांग्रेस ने संसद में मोदी सरकार के इस कदम का विरोध किया हो लेकिन पार्टी के भीतर इसको लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है.
राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने इस मुद्दे पर सरकार को जमकर घेरा. इसके पहले संसद भवन परिसर में सोनिया गांधी और राहुल गांधी की मौजूदगी में कांग्रेस और गिने-चुने विपक्षी नेताओं की बैठक हुई. इसमें फैसला हुआ कि पार्टी इसका विरोध करेगी. जो दलीलें तय हुईं, वो सभी आजाद ने राज्यसभा में बोलते हुए कह दीं.
दरअसल, कांग्रेस के बड़े नेता इस लाइन पर दिख रहे हों लेकिन पार्टी की दूसरी पंक्ति के तमाम नेता और कार्यकर्ता पार्टी के इस रुख से परेशान हैं. इसी को मुद्दा बनाते हुए राज्यसभा में कांग्रेस के चीफ व्हिप भुवनेश्वर कलिता ने राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया. वहीं, वाईएसआर कांग्रेस, बीजेडी, एआईडीएमके के साथ ही विपक्षी दलों में बीएसपी और आप ने इस मसले पर सरकार का साथ देकर कांग्रेस के माथे पर बल बढ़ा दिए.
कांग्रेस कार्यसमिति में शामिल कई नेता जो फिलहाल सांसद नहीं हैं या राज्यों में हैं, उनका सीधे तौर पर कहना है, “पार्टी के बड़े नेता संसद में जो भी स्टैंड ले रहे हैं, लगता है कि जमीनी हकीकत से दूर हैं. हम जमीन पर सियासत करते हैं. इस तरह विरोध के कदम से पार्टी को सियासी नुकसान होना तय है.”
नाम नहीं बताने की शर्त पर इस खेमे के नेताओं ने कहा, “राज्यसभा में बैठे बड़े नेता आलाकमान को गुमराह कर रहे हैं, जो खुद जमीनी हकीकत से दूर हैं.” इस खेमे के मुताबिक, सीधे विरोध करने से इस मुद्दे पर बचना चाहिए था. कम से कम कोई बीच का रास्ता तो निकाला ही जा सकता था. आखिर ऐसा क्यों है कि, ट्रिपल तलाक की तर्ज पर कांग्रेस की रणनीति हर बार मोदी सरकार के बिछाए जाल में क्यों फंस जाती है?
सूत्रों की मानें तो ऐसी राय रखने वाले कार्यसमिति के सदस्य जो फिलहाल सांसद नहीं हैं, वो 10 अगस्त को होने वाली कार्यसमिति की बैठक में मुखर होकर अपनी राय रख सकते हैं. इस बैठक में सोनिया गांधी, राहुल और प्रियंका मौजूद रहेगें. इसीलिए अभी खुलकर कोई आधिकारिक तौर पर बोलने को तैयार नहीं है. कलिता जैसे वही नेता बोल रहे हैं जो पार्टी छोड़ने का मन बना चुके हैं.
सवाल इस बात पर भी उठ रहे हैं कि, तमाम मसलों पर सोशल मीडिया पर राय रखने वाले राहुल-प्रियंका अब तक खामोश क्यों हैं? क्या वाकई मोदी के दांव में फंस गई है कांग्रेस?
हालांकि, इस मुद्दे पर पार्टी के रुख की वकालत करने वाले नेताओं का कहना है कि हम जानते हैं कि ये लोकप्रिय फैसला है. तात्कालिक तौर पर विरोध करने पर हमको वोटों का नुकसान भी होगा. इस कारण से हम गलत कदम का समर्थन नहीं कर सकते.
कांग्रेस के राज्यसभा सांसद आनन्द शर्मा ने कहा, “इतिहास में हम गलत का समर्थन करते नहीं दिखना चाहते.”
कुल मिलाकर मोदी सरकार के इस दांव में कांग्रेस को बैकफुट पर धकेलने की कोशिश है, लेकिन कांग्रेस के रुख पर पार्टी के भीतर ही दबी जुबान से अलग सुर उठना पार्टी की सेहत के लिए ठीक नहीं.