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शहीद गुरबचन सिंह के परिजनों से मिलने पठानकोट जाएंगे आर्मी चीफ

आर्मी चीफ जनरल बिपिन रावत आज पठानकोट पहुंच रहे हैं. यहां वह परमवीर चक्र विजेता शहीद कैप्टन गुरबचन सिंह सलारिया के परिवार से मुलाकात करेंगे. हालांकि, इस पूरे कार्यक्रम से मीडिया को दूर रखा गया है. अफ्रीकी देश में शांति के लिए लड़ते हुए 5 दिसम्बर 1961 को गुरबचन सिंह शहीद हो गए थे.

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आर्मी चीफ जनरल बिपिन रावत आज पठानकोट पहुंच रहे हैं (फाइल फोटो-IANS)
आर्मी चीफ जनरल बिपिन रावत आज पठानकोट पहुंच रहे हैं (फाइल फोटो-IANS)

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  • कांगो में शांति के लिए लड़ते हुए दिसम्बर 1961 को शहीद हो गए थे
  • बहादुरी के किस्सों ने गुरबचन सिंह को फौज के प्रति आकृष्ट किया

आर्मी चीफ जनरल बिपिन रावत आज पठानकोट पहुंच रहे हैं. यहां वह परमवीर चक्र विजेता शहीद कैप्टन गुरबचन सिंह सलारिया के परिवार से मुलाकात करेंगे. हालांकि, इस पूरे कार्यक्रम से मीडिया को दूर रखा गया है. अफ्रीकी देश में शांति के लिए लड़ते हुए 5 दिसम्बर 1961 को गुरबचन सिंह शहीद हो गए थे.

शहीदों की इस फेहरिस्त में एक नाम शहीद कैप्टन गुरबचन सिंह सालारिया का भी आता है, जिन्होने विदेशी धरती यानी अफ्रीका के कांगो में भारत द्वारा भेजी गई शांति सेना का नेतृत्व करते हुए न सिर्फ 40 विद्रोहियों को मार गिराया बल्कि खुद शहादत का जाम पीते हुए भारत गणतंत्र के पहले परमवीर चक्र विजेता होने का गौरव हासिल किया.

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गुरबचन सिंह का जन्म 29 नवंबर 1935 को शकरगढ़ के जनवल गांव में हुआ था. यह स्थान अब पाकिस्तान में है. इनके पिता मुंशी राम सलारिया भी फौजी थे और ब्रिटिश-इंडियन आर्मी के डोगरा स्क्वेड्रन, हडसन हाउस में नियुक्त थे. इनकी मां धन देवी एक साहसी महिला थीं.

पिता के बहादुरी के किस्सों ने गुरबचन सिंह को भी फौजी जिंदगी के प्रति आकृष्ट किया. इसी आकर्षण के कारण गुरबचन ने 1946 में बैंगलोर के किंग जार्ज रॉयल मिलिट्री कॉलेज में प्रवेश लिया. अगस्त 1947 में उनका स्थानांतरण उसी कॉलेज की जालंधर शाखा में हो गया. 1953 में वह नेशनल डिफेंस अकेडमी में पहुंच गए और वहां से पास होकर कारपोरल रैंक लेकर सेना में आ गए.

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