दो हाथ, दो पैर चुस्त-दुरुस्त होने के बाद भी हमारे पास शिकायतों का अंबार होता है. खुद में हजार कमियां तलाशने की आदत होती है. ये आदत कम हो या ज्यादा हर किसी में होती है.
मुझमें भी हैं ऐसी तमाम आदतें... अक्सर मैं भी परेशान होकर-हताश होकर सब होने के बावजूद ऊपर वाले के सामने शिकायतों की पोटली खोलकर बैठ जाती हूं.
लेकिन कभी-कभी ऐसे पल होते हैं जो एहसास करा देते हैं कि कमी हमारी लाइफ में नहीं, हमारी सोच में है.
ऐसा ही एक नजारा था देवेंद्र को रियो पैरालंपिक में देखना. बेहद शानदार था वो क्षण जब भाला फेकने के लिए वो दौड़ते आए. मेरे लिए पहली बार उन्हें देखना थोड़ा हैरान कर देने वाला था. मगर चंद सेकेंड में उन्होंने पूरी दुनिया को हैरान कर दिया. तालियों के बीच मैदान में खुशी से झूमते देवेंद्र ने देखने वालों के रोंगटे खड़े कर दिए थे.
ब्राजील के रियो से भारत के लिए अच्छी खबर आई. पैरालंपिक में भारत के देवेंद्र झाझरिया ने गोल्ड मेडल जीत लिया. इसी के साथ देश के खाते में दूसरा मेडल आ गया. बस फिर क्या था, सोशल मीडिया पर उनका नाम ट्रेंड करने लगा. देवेंद्र कौन है, कहां से आए हैं, कहां थे अबतक, हर शख्स इस बात को गूगल पर सर्च करने लग गया.
ऐसा होना भी लाजमी है, क्योंकि उनकी कहानी और शख्सियत कोई आम नहीं है. देवेंद्र एक ऐसा नाम है जिसने लोगों को बता दिया है, 'मुश्किल नहीं गर कुछ भी ठान लीजिए'.
जी, हां... वो आज देश ही नहीं दुनिया की उम्मीद है, भले ही उनका एक हाथ हादसे का शिकार होने जाने के चलते नहीं है. लेकिन वो आज दुनिया को राह दिखा रहे है.
Salute you! Proud of you my real Hero...