अन्नाद्रमुक प्रमुख जे. जयललिता के लिए सितंबर का महीना मनहूसियत भरा रहा है. साल 2001 के सितंबर में और अब 2014 के सितंबर में सुप्रीम कोर्ट और बेंगलुरु की स्पेशल कोर्ट ने फैसले दिए जिसके बाद उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा.
सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से फैसला दिया था, ‘जो व्यक्ति आपराधिक कृत्य में दोषी है और जिसे दो साल से कम के जेल की सजा नहीं मिली है उसे अनुच्छेद 164 (1 और 4) के तहत मुख्यमंत्री नियुक्त नहीं किया जा सकता और इस पद पर काम नहीं कर सकता.’ कोर्ट ने इस तर्क को भी खारिज कर दिया था कि लोकप्रिय जनादेश या लोगों की ‘इच्छा’ संविधान के ऊपर है.
जयललिता ने उस वक्त अपने एक मंत्री ओ. पनीरसेल्वम को मुख्यमंत्री बनाया था और जब तक मद्रास हाई कोर्ट ने उन्हें आरोपों से मुक्त नहीं किया और 2002 में वह आंदीपट्टी विधानसभा उपचुनाव में नहीं जीतीं तब तक वह सत्ता में नहीं लौटीं.
‘सितम्बर’ एक बार फिर उनके लिए मनहूस साबित हुआ है, जब स्पेशल कोर्ट के न्यायाधीश जॉन माइकल डीकुन्हा ने शनिवार को जयललिता और अन्य को 18 साल पुराने आय के ज्ञात स्रोत से अधिक संपत्ति मामले में दोषी करार दिया और उन्हें चार वर्ष कैद की सजा सुनाई.