जेसिका लाल हत्याकांड का घटनाक्रम बहुत उतार चढ़ावपूर्ण और चर्चित रहा.
29-30 अप्रैल 1999 की रात: दक्षिणी दिल्ली स्थित कुतुब कोलोनेड रेस्त्रां में एक पार्टी में जेसिका लाल की गोली मारकर हत्या.
30 अप्रैल 1999 : अपोलो अस्पताल में चिकित्सकों ने घोषित किया कि जेसिका को अस्पताल में मृत लाया गया.
2 मई 1999 : मनु शर्मा की टाटा सफारी को दिल्ली पुलिस ने उत्तर प्रदेश के नोएडा से बरामद किया.
6 मई 1999: चंडीगढ़ की एक अदालत के समक्ष मनु शर्मा का आत्मसमर्पण. इसके बाद उत्तर प्रदेश के नेता डीपी यादव के बेटे विकास यादव सहित अन्य 10 सह अभियुक्तों को गिरफ्तार किया गया.
3 अगस्त 1999 : भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत जेसिका की हत्या के मामले में आरोपियों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल.
31 जनवरी 2000 : मजिस्ट्रेट कोर्ट ने मुकदमे के लिए मामले को सत्र अदालत के सुपुर्द किया.
23 नवंबर 2000 : सत्र अदालत ने हत्या के मामले में नौ लोगों के खिलाफ आरोप तय किये . एक आरोपी अमित झिंगन बरी और रविंदर उर्फ टीटू को भगोड़ा अपराधी घोषित किया.
2 मई 2001 : अदालत ने अभियोजन पक्ष के साक्ष्य दर्ज करने की प्रक्रिया शुरू की. चश्मदीद गवाह दीपक भोजवानी ने निचली अदालत के समक्ष गवाही दी.
3 मई 2001 : शिकायतवादी और चश्मदीद श्यान मुंशी अपने बयान से मुकरा और अदालत में उसने मनु की शिनाख्त नहीं की.
5 मई 2001: कुतुब कोलोनेड में इलेक्ट्रिशियन एक अन्य चश्मदीद शिव दास भी अपने बयान से मुकरा .
16 मई 2001: तीसरा प्रमुख गवाह करन राजपूत भी अपने बयान से मुकरा.
6 जुलाई 2001 : मालिनी रमानी ने मनु शर्मा की शिनाख्त की.
12 अक्तूबर 2001 : रेस्त्रां और बार मालकिन बीना रमानी ने भी मनु की शिनाख्त की.
17 अक्तूबर 2001 : बीना के कनाडाई पति जार्ज मेलहोत ने गवाही दी और मनु शर्मा की शिनाख्त की.
20 जुलाई 2004 : कोसोवो में संयुक्त राष्ट्र के एक असाइनमेंट से लौटने के बाद मामले के विवादास्पद जांच अधिकारी सुरिंदर शर्मा ने गवाही दी.
21 फरवरी 2006 : निचली अदालत ने साक्ष्य के अभाव में सभी नौ अभियुक्तों को बरी किया.
13 मार्च 2006 : दिल्ली पुलिस ने उच्च न्यायालय में अपील दायर की.
3 अक्तूबर 2006 : उच्च न्यायालय ने इस अपील पर नियमित आधार पर सुनवाई शुरू की.
29 नवंबर 2006 : उच्च न्यायालय ने अपना फैसला सुरक्षित रखा.
18 दिसंबर 2006 : उच्च न्यायालय ने मनु शर्मा, विकास यादव और अमरदीप सिंह गिल उर्फ टोनी को दोषी करार दिया. आलोक खन्ना, विकास गिल, हरविंदर सिंह चोपड़ा, राजा चोपड़ा, श्याम सुंदर शर्मा और योगराज सिंह बरी.
20 दिसंबर 2006 : उच्च न्यायालय ने मनु शर्मा को उम्रकैद की सजा सुनाई और 50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया. सह अभियुक्त अमरदीप सिंह गिल और विकास यादव को चार चार साल की जेल की सजा . प्रत्येक पर तीन-तीन हजार रुपये का जुर्माना लगाया.
2 फरवरी 2007 : मनु शर्मा ने उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की.
8 मार्च 2007 : उच्चतम न्यायालय ने मनु शर्मा की अपील स्वीकार की.
27 नवंबर 2007 : उच्चतम न्यायालय ने मनु की जमानत की दलील खारिज की.
12 मई 2008 : उच्चतम न्यायालय ने फिर से मनु शर्मा की जमानत याचिका खारिज की.
19 जनवरी 2010 : उच्चतम न्यायालय ने मनु शर्मा की अपील पर सुनवाई शुरू की.
18 फरवरी 2010 : मनु शर्मा की अपील पर उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुरक्षित रखा.
19 अप्रैल 2010 : शीर्ष न्यायालय ने मनु के दोष और उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा.