अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रविवार को मुलाकात के बाद दोनों देशों का साझा घोषणा पत्र जारी किया गया. इसमें असैन्य परमाणु करार, भारत-अमेरिका संबंध, रक्षा सहयोग जैसे मुद्दों के साथ 'साउथ चाइना सी' विवाद पर भी गहरी चिंता जताई गई है. माना जा रहा है कि ओबामा और मोदी का यह साझा घोषणा पत्र चीन की आंखों की किरकिरी बन सकता है.
ओबामा और मोदी ने पिछले साल सितंबर में मुलाकात के दौरान भी इस मुद्दे पर चर्चा की थी. घोषणा पत्र में एशिया-प्रशांत क्षेत्र और हिंद महासागर को लेकर साझा रणनीति की बात की गई है. अब संकेत साफ है कि भारत-अमेरिका मिलकर चीन के लिए बड़ी चुनौती बनने वाले हैं. साझा बयान में कहा गया है कि क्षेत्र की समृति रक्षा और सुरक्षा के हालात से जुड़ी है.
साझा बयान में लिखा गया है, 'हम समुद्री सुरक्षा के महत्व को समझते हैं. विशेष तौर पर 'साउथ चाइना सी' की जब बात होती है, तब यह और अहम हो जाता है. हम 'साउथ चाइना सी' विवाद का शांतिपूर्ण हल चाहते हैं. सभी पक्षों को मिलकर इसके लिए कार्य करना चाहिए.'
'साउथ चाइना सी' चीन की दुखती रग है. इस मुद्दे को लेकर वह काफी अग्रेसिव है और कई देशों के साथ उसका विवाद चल रहा है. 'साउथ चाइना सी' में वियतनाम के साथ तेल खोज करने संबंधी भारत के समझौते पर भी चीन कड़ा ऐतराज जता चुका है. चीन का समुद्री सीमा को लेकर सिर्फ वियतनाम ही नहीं जापान, फिलिपींस समेत कई देशों के साथ विवाद चल रहा है.
अमेरिका ने आसियान बैठक के दौरान भी चीन पर 'साउथ चाइना सी' के द्वीपों पर कब्जे को लेकर तंज कसा था. इसके साथ जापान दौरे और आसियान में पीएम मोदी ने भी 'साउथ चाइना सी' का मुद्दा उठाया था, जो चीन को पसंद नहीं आया था. इतना ही नहीं, जापान में मोदी ने चीन का नाम भले ही नहीं लिया था, लेकिन संकेतों में उसे 'विस्तारवादी' तक कह डाला था.