अमित शाह के केंद्रीय गृह मंत्री बनने के बाद भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नए अध्यक्ष को लेकर चर्चा शुरू हो गई थी और इस पर सोमवार को उस समय विराम लग गया जब पूर्व केंद्रीय मंत्री जगत प्रकाश नड्डा को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने का ऐलान कर दिया गया. दिल्ली में बीजेपी संसदीय बोर्ड की बैठक में लिए फैसले के बारे में बताते हुए रक्षा मंत्री और पार्टी के वरिष्ठ नेता राजनाथ सिंह ने कहा कि नड्डा बीजेपी के कार्यकारी अध्यक्ष होंगे. इस बीच अमित शाह पार्टी अध्यक्ष बने रहेंगे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में अमित शाह के शामिल होने के बाद जेपी नड्डा को पार्टी की कमान सौंपी गई है. माना जा रहा है कि अमित शाह अगले 6 महीने तक पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने रहेंगे. अमित शाह के साथ मिलकर ही जेपी नड्डा बतौर कार्यकारी अध्यक्ष पार्टी का कामकाज संभालेंगे. गृह मंत्रालय जैसे अहम विभाग संभालने के कारण अमित शाह की पार्टी पर ज्यादा ध्यान देने की संभावना कम ही है. ऐसे में नड्डा ही पार्टी के मुख्य कर्ताधर्ता रहेंगे, हालांकि अमित शाह अभी अध्यक्ष पद पर काबिज हैं और हर फैसले पर उनकी नजर रहेगी.
हिमाचल प्रदेश जैसे राजनीतिक लिहाज से कमतर राज्य से आने वाले जय प्रकाश नड्डा के लिए कार्यकारी अध्यक्ष पद पर काम करना बेहद चुनौतीपूर्ण रहेगा, अगर वह अगले 6 महीने के लिए भी पार्टी के प्रमुख के तौर पर काम करते हैं तो भी उनके सामने चुनौतियां कम नहीं होंगी.
अमित शाह की विशालकाय छवि
अमित शाह ने अपने कार्यकाल में बीजेपी को जिस मुकाम पर पहुंचाया उसे बनाए रखना अगले अध्यक्ष के लिए चुनौती भरा रहेगा. जेपी नड्डा अभी कार्यकारी अध्यक्ष बनाए गए हैं, लेकिन उनके सामने पार्टी को शीर्ष पर बनाए रखने के साथ-साथ खुद को एक सशक्त और दमदार अध्यक्ष के रूप में पेश करना होगा. सभी की नजर इस पर रहेगी कि वह इस मकसद में कितना कामयाब हो पाते हैं.
4 राज्यों में विधानसभा चुनाव
बतौर अध्यक्ष अमित शाह के दौर में बीजेपी को जिस तरह की बंपर कामयाबी मिली उसे बनाए रखना नड्डा के लिए चुनौतीपूर्ण है. उनके कार्यकारी अध्यक्ष के कार्यकाल (अगले 6-7 महीने) में कम से कम 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं. इनमें से दिल्ली को छोड़ 3 राज्य ऐसे हैं जहां पर बीजेपी खुद सत्ता में है और उसे सत्ताविरोधी माहौल के बीच चुनाव में जीत हासिल करने की चुनौती होगी. ये 3 राज्य हैं महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड. हरियाणा में अक्टूबर में विधानसभा का कार्यकाल खत्म हो रहा है, तो महाराष्ट्र में नवंबर में. जबकि झारखंड में 5 जनवरी को कार्यकाल समाप्त हो रहा है. नड्डा के सामने इन तीनों राज्यों में बीजेपी की सत्ता पर पकड़ बनाए रखने की है. इसके अलावा जम्मू-कश्मीर में भी विधानसभा चुनाव होने हैं. अभी वहां राष्ट्रपति शासन है और अगले कुछ महीनों में वहां पर चुनाव होना है और पार्टी को बड़ी जीत दिलाने की जिम्मेदारी भी रहेगी.
दिल्ली में अरविंद केजरीवाल से चुनौती
दिल्ली विधानसभा का चुनाव भी अगले साल की शुरुआत में होने वाला है. विधानसभा का कार्यकाल 22 फरवरी, 2020 को खत्म हो रहा है. दिल्ली में इस समय आम आदमी पार्टी सत्ता में है और उसने पिछले विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत हासिल करते हुए दूसरी बार सत्ता पर काबिज हुई थी. बीजेपी की कोशिश पिछली बार ही सत्ता में लौटने की थी, लेकिन अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी ने बीजेपी के सपने को तोड़ दिया. हालांकि पिछले महीने खत्म हुए लोकसभा चुनाव में आप पार्टी का जो प्रदर्शन रहा उससे बीजेपी बेहद उत्साहित होगी क्योंकि उसने सभी सातों की सातों सीट पर कब्जा जमा लिया.
हालांकि 2014 के लोकसभा चुनाव में भी ऐसा ही हुआ था, लेकिन कुछ महीने बाद जब विधानसभा चुनाव आया तो बीजेपी को 70 में से सिर्फ 3 सीटें मिल सकीं. शेष 67 सीटों पर आम आदमी पार्टी विजयी रही थी. इस बार भी सातों सीटें जीतकर बीजेपी पूरे जोश में है, लेकिन नए कार्यकारी अध्यक्ष के सामने यह सुनिश्चित करना होगा कि 2015 के विधानसभा चुनाव जैसे हालात 2020 में न बनें. यह भी तय है कि विधानसभा चुनाव में केजरीवाल को चुनौती देना आसान नहीं होगा और इसके लिए कवायद अभी से शुरू कर देनी होगी.
शिवसेना को साथ रखने की चुनौती
लोकसभा चुनाव से पहले तक बागी तेवर बनाए रखने वाली शिवसेना ने बीजेपी के साथ चुनाव लड़ने का फैसला लिया और उसका यह निर्णय अन्य विपक्षी दलों के परिणाम देखने के बाद सही लगता है, लेकिन ऐसे में शिवसेना के वजूद पर ही खतरा मंडराने लगता है. नरेंद्र मोदी के दूसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपक्ष लेने के कुछ ही दिन में पार्टी सुप्रीमो उद्धव ठाकरे का अयोध्या जाना दिखाता है कि शिवसेना अपने अस्तित्व के लिए जद्दोजहद जारी रखेगी. हालांकि यह भी सही है कि बीजेपी इस बार भी अपने दम पर सत्ता में है, लेकिन नड्डा के सामने एनडीए को भी बनाए रखना बड़ी चुनौती होगी क्योंकि बीजेपी के बाद शिवसेना ही दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है.
बिहार में जेडीयू से दोस्ती
महाराष्ट्र की तरह बिहार में जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के साथ सत्ता पर काबिज बीजेपी के सामने गठबंधन को बनाए रखने की चुनौती है. बिहार में एनडीए को लोकसभा चुनाव में जोरदार जीत मिली है. अब कई मोर्चों पर नीतीश कुमार की सरकार को आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है. 2015 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू के नीतीश कुमार ने आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और महागठबंधन के तहत जीत हासिल की थी, लेकिन बाद में नीतीश ने लालू प्रसाद यादव की आरजेडी के नाता तोड़ लिया और बीजेपी के साथ फिर से नई सरकार बना ली. राज्य में अगले डेढ़ साल में विधानसभा चुनाव होने हैं और यहां पर भी नड्डा के सामने एनडीए घटक दलों को साथ बनाए रखने की चुनौती रहेगी.
दक्षिण भारत के लिए नई रणनीति
बीजेपी को उम्मीद थी कि इस बार लोकसभा चुनाव में कर्नाटक के अलावा दक्षिण भारत के अन्य राज्यों से उसके खाते में कुछ सीटें आएंगी, लेकिन तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और केरल में बीजेपी की स्थिति काफी खराब रही. आंध्र और केरल समेत तमिलनाडु में बीजेपी को एक भी सीट नहीं मिली. बीजेपी ने इन राज्यों में जीत के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाया था, लेकिन निराशा हाथ लगी. अब नड्डा के सामने दक्षिण में सीट जीतने के लिए नए सिरे से रणनीति बनानी होगी.
बड़बोले नेताओं पर लगाम लगाने की जिम्मेदारी
अमित शाह के गृह मंत्री बनने के बाद कार्यकारी अध्यक्ष बने जेपी नड्डा के पास एक बड़ी चुनौती यह भी रहेगी कि वह अपने कई बड़बोले नेताओं पर किस तरह से लगाम लगा पाते हैं. गिरिराज सिंह, साध्वी प्रज्ञा और साक्षी महाराज जैसे नेता अक्सर अपने बयानों को लेकर पार्टी को संकट में डालते रहे हैं. पिछले दिनों इफ्तार को लेकर गिरिराज की टिप्पणी के बाद अमित शाह ने उनको फटकार लगाई और नियंत्रण रखने की सलाह भी दे डाली थी.