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JPC ने 2जी पर मसौदा रिपोर्ट में पीएम, चिदंबरम को दी क्‍लीनचिट

सरकार 2जी घोटाले पर बनी संयुक्त संसदीय समिति में अपनी बात मनवा ले गयी. समिति (जेपीसी) ने 11 के मुकाबले 16 मतों से उस मसौदा रिपोर्ट को मंजूरी दे दी, जिसमें प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित्त मंत्री पी चिदंबरम को क्लीन चिट दी गयी है.

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संसद
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सरकार 2जी घोटाले पर बनी संयुक्त संसदीय समिति में अपनी बात मनवा ले गयी. समिति (जेपीसी) ने 11 के मुकाबले 16 मतों से उस मसौदा रिपोर्ट को मंजूरी दे दी, जिसमें प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित्त मंत्री पी चिदंबरम को क्लीन चिट दी गयी है.

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सरकार को बाहर से समर्थन दे रहे बसपा के 2 और सपा के एक सदस्य ने भी सरकार के पक्ष में मतदान किया. सत्ताधारी गठबंधन के 12 अन्य सदस्यों और एक मनोनीत सदस्य ने भी रिपोर्ट के पक्ष में मतदान किया. इसमें पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा पर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने प्रधानमंत्री को गुमराह किया.

बैठक के बाद जेपीसी के अध्यक्ष पीसी चाको ने संवाददाताओं को बताया कि जिन लोगों ने मसौदा रिपोर्ट के खिलाफ मत डाले हैं, उन्हें अपनी असहमति रिपोर्ट दाखिल करने के लिए 15 दिन का समय दिया जाएगा. समिति के कुल 30 सदस्यों में से बीजेपी के एक सदस्य सहित तीन सदस्य अनुपस्थित थे. उपस्थित 27 सदस्यों में से सत्ताधारी गठबंधन को कांग्रेस के 11, राकांपा के 1, बसपा के 2 और सपा के 1 सदस्य का मत हासिल हुआ.

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मनोनीत अशोक गांगुली ने भी पक्ष में मतदान किया. बीजेपी नेता और समिति के सदस्य यशवंत सिन्हा ने कहा कि गलत तथ्यों, झूठ पर आधारित रिपोर्ट को मंजूरी देने के लिए अवास्तविक बहुमत का बिना संकोच के इस्तेमाल किया गया. विपक्षी मतों में बीजेपी के पांच तथा बीजद, तृणमूल कांग्रेस, भाकपा, माकपा, अन्नाद्रमुक और द्रमुक में से प्रत्येक के एक-एक मत शामिल थे. 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन से जुडे घटनाक्रम का ब्योरा देते हुए रिपोर्ट में कहा गया कि समिति इस निष्कर्ष पर पहुंचती है कि इस संबंध में दूरसंचार विभाग द्वारा अपनायी जाने वाली प्रक्रिया के बारे में प्रधानमंत्री को गुमराह किया गया.

रिपोर्ट में कहा गया कि इसके अलावा संचार व सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री (राजा) द्वारा स्थापित नियम प्रक्रियाओं का पालन करने में पूरी पारदर्शिता बरतने के लिहाज से प्रधानमंत्री को दिये गये आश्वासन मिथ्या साबित हुए. रिपोर्ट में पूर्व दूरसंचार मंत्री जगमोहन के विरोध के बावजूद लाइसेंस फीस की भारी भरकम राशि की वसूली नहीं होने की स्थिति में दूरसंचार परिचालकों को रियायतें देने के तत्कालीन राजग सरकार के फैसले की आलोचना की गयी है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि दूरसंचार परिचालकों को प्रवासन पैकेज देने में एनडीए सरकार को 42080.34 करोड़ रुपये त्यागने पडे़. मसौदा रिपोर्ट में बताया गया है कि तत्कालीन संचार मंत्री (जगमोहन) के एक ‘नोट’ में खुलासा हुआ है कि वह परिचालकों के ज्ञापनों से पूरी तरह असहमत थे. दूरसंचार परिचालकों ने मांग की थी कि उनकी लाइसेंस फीस का भुगतान दो साल के लिए स्थगित किया जाए और लाइसेंस की अवधि का विस्तार 10 साल से बढाकर 15 साल किया जाए.

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जगमोहन का मानना था कि परिचालकों की बात मानने का कोई कानूनी, वित्तीय, वाणिज्यिक या नैतिक औचित्य नहीं है. रिपोर्ट में कहा गया कि जगमोहन ने परिचालकों से बकाये की वसूली के विकल्प का मजबूती से समर्थन किया था. जगमोहन ने तत्कालीन वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा का ध्यान इस मुद्दे की ओर 21 दिसंबर 1998 को आकर्षित किया था.

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