न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति संबंधी कोलेजियम व्यवस्था को समाप्त करने की इच्छुक केंद्र सरकार ने लोकसभा में संविधान संशोधन विधेयक पेश किया. जिसके तहत सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए छह सदस्यीय इकाई के गठन का प्रावधान है. संविधान संशोधन विधेयक के अलावा विधि एवं न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने एक और संबंधित विधेयक ‘राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक 2014’ भी पेश किया.
संविधान (121वां संशोधन) विधेयक 2014 जहां प्रस्तावित आयोग और इसकी पूरी संरचना को संविधान में निहित करता है. वहीं दूसरा विधेयक सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए प्रस्तावित इकाई द्वारा अपनायी जाने वाली प्रक्रिया तय करता है. इसमें जजों के तबादले और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों और अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति के संबंध में भी प्रावधान किए गए हैं. प्रस्ताव के अनुसार, भारत के मुख्य न्यायाधीश एनजेएसी के प्रमुख होंगे.
मुख्य न्यायाधीश के अलावा न्यायपालिका का प्रतिनिधित्व सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठ न्यायाधीशों द्वारा किया जाएगा. दो जानी मानी हस्तियां और विधि मंत्री प्रस्तावित इकाई के अन्य सदस्य होंगे. न्यायपालिका की आशंकाओं को दूर करने के लिए आयोग की संरचना को संवैधानिक दर्जा दिया गया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भविष्य में कोई भी सरकार किसी साधारण विधेयक के द्वारा इसकी संरचना को कमजोर नहीं कर सके. संविधान संशोधन विधेयक को जहां दो तिहाई बहुमत की जरूरत होती है वहीं साधारण विधेयक के लिए सामान्य बहुमत जरूरी होता है.
न्यायाधीशों की नियुक्ति की वर्तमान व्यवस्था के स्थान पर उच्चतम न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये राष्ट्रीय न्यायिक आयोग गठित करने के सरकार के प्रस्ताव के संदर्भ में न्यायमूर्ति लोढा की टिप्पणियां काफी महत्वपूर्ण हैं. ये टिप्पणी ऐसे दिन हुई जब सरकार ने राष्ट्रीय न्यायिक आयोग स्थापित करने संबंधी विधेयक राज्यसभा से वापस ले लिया और न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये नई व्यवस्था हेतु संविधान संशोधन सहित दो विधेयक लोकसभा में पेश किये.
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि देश में न्यायाधीशों के निर्णायक मंडल के जरिये नियुक्ति होने वाले न्यायाधीशों के पहले बैच की वह देन है और न्यायमूर्ति रोहिन्टन नरीमन, जो उनके साथ बैठे हैं, निर्णायक मंडल के जरिये शीर्ष अदालत में पदोन्नति प्राप्त करने वाले सबसे नए हैं.
न्यायमूर्ति लोढा ने कहा, ‘यदि आप कहते हैं कि निर्णायक मंडल विफल हो गया है तो उनकी देन भी विफल हो गई है. यदि आप ऐसा कहते हैं, हम भी विफल हो गये हैं और न्यायपालिका भी पूरी तरह से विफल हो गई है.’ उन्होंने कहा, ‘इस मामले में अब थोड़ा बहुत ही कर सकते हैं.’ मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ‘इस समय के सभी न्यायाधीश इसी निर्णायक मंडल व्यवस्था की ही देन हैं. संस्थान के रूप में व्यक्तियों का चयन करने में निर्णायक मंडल की अपनी सीमाएं हैं. आखिरकार न्यायाधीश भी इसी समाज से आते हैं. लेकिन एक या दो न्यायाधीशों के खिलाफ आरोप होने के कारण अभियान चलाना अनुचित है.’
न्यायालय ने कहा, ‘निर्णायक मंडल ने कभी भी न्यायमूर्ति मंजूनाथ के नाम की सिफारिश नहीं की.’ न्यायालय ने कहा कि यह जनहित याचिका असंगत आधार पर है. न्यायाधीशों ने कहा, ‘ईश्वर के लिये ऐसे तथ्यों को लेकर याचिका दायर मत कीजिये जिनका अस्तित्व ही नहीं है. बार बार ऐसे मुद्दे के बारे में प्रयास किये जा रहे हैं जो तथ्यात्मक रूप से गलत है.’
न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘यदि जनता की नजरों में न्यायपालिका को बदनाम करने का अभियान है तो आप लोकतंत्र को बहुत नुकसान पहुंचा रहे हैं. न्यायपालिका के प्रति जनता का विश्वास न तोड़ें.’ मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि मीडिया में गलत तथ्य पेश किये जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि न्यायाधीश का तबादला एक बात है, जबकि पदोन्नति अलग बात है. हमने ऐसी कोई सिफारिश नहीं की है. इस मामले की सुनवाई शुरू होते ही न्यायालय ने याचिकाकर्ता से जानना चाहा कि निर्णायक मंडल द्वारा न्यायाधीश के नाम की सिफारिश के बारे में कहां से जानकारी मिली.
न्यायालय ने जब यह कहा कि न्यायमूर्ति मंजूनाथ के नाम की सिफारिश नहीं की गई है तो याचिकाकर्ता के वकील ने मीडिया की खबरों का हवाला दिया और कहा कि यदि मीडिया में आए तथ्य गलत हैं तो फिर इस मामले में कार्रवाई होनी चाहिए. लेकिन न्यायालय ने कहा कि आप चाहते हैं कि मीडिया रिपोर्ट के आधार पर हम न्यायिक काम करें. याचिका में अनुरोध किया गया था कि भविष्य में न्यायाधीशों की नियुक्ति के बारे में निर्णायक मंडल की सारी सिफारिशें शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर डाली जानी चाहिए.