जस्टिस के. एम. जोसेफ की सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति को लेकर विवाद अभी खत्म नहीं हुआ है. सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम मंगलवार को इस मुद्दे पर बैठक कर सकता है. बता दें कि केंद्र सरकार ने जस्टिस के. एम. जोसेफ की नियुक्ति से जुड़ी फाइल को वापस कर दिया था, जिसपर काफी हंगामा मचा है.
सूत्रों की मानें तो लौटाई गई फाइल के मुद्दे पर अब सुप्रीम कोर्ट विस्तार से चर्चा करेगा. सुप्रीम कोर्ट के सूत्रों की मानें तो ये लगभग तय है कि सरकार की दलीलों में दम नहीं है. सरकार ने क्षेत्रीय संतुलन और वरिष्ठता को लेकर जो दलीलें दी हैं वह सिर्फ बचाव का ही आधार है. क्योंकि इससे पहले भी कई बार ऐसा हुआ है कि इन आधारों के बावजूद जजों की नियुक्ति हुई है.
इतिहास के झरोखे में देखें तो देश के चीफ जस्टिस बने जस्टिस पी. सदाशिवम या फिर जस्टिस के जी. बालकृष्णन की नियुक्ति में भी ऐसे किसी आधार की दलील नहीं दी गई थी. तब सब कुछ जायज हुआ था, जस्टिस पी. सदाशिवम रिटायरमेंट के बाद राज्यपाल तक बन गए.
इस पूरे विवाद में दरअसल जस्टिस के. एम. जोसेफ की फाइल लटकाये जाने के पीछे राजनीतिक कारण बताये जा रहे हैं. ये अलग बात है कि जस्टिस जोसेफ के फैसलों की फांस कलेजे में चुभे होने के बावजूद सरकार, उनके मंत्री और अधिकारी इस बात से इंकार करते हैं. वजह नियम कायदे और कानून के पेंच फंसा होना बताई जा रही है.
सरकार ने ये भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक सरकार को कोलेजियम की सिफारिशें अपनी आपत्तियों के साथ फिर से विचार के लिए वापस भेजने का अधिकार सरकार का है. सरकार उसी अधिकार का इस्तेमाल कर रही है. साथ ही कोलेजियम को सुझाव भी भेजा है कि सुप्रीम कोर्ट में अनुसूचित जाति और जनजाति का प्रतिनिधित्व करने वाले एक भी न्यायमूर्ति नहीं है. क्यों ना कोलेजियम इस बारे में भी विचार करें.
लेकिन अब तो ये तय है कि कोलेजियम ने दोबारा जस्टिस जोसफ के नाम की सिफारिश सरकार को भेज दी तो मामला फंसेगा. सरकार अगला पैंतरा क्या अपनाएगी ये देखना दिलचस्प होगा क्या सीने पर पत्थर रखकर जस्टिस जोसेफ को सुप्रीम कोर्ट में शपथ लेता हुआ देखेगी या कोई और कानूनी फच्चर फंसाएगी?