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9 अगस्त 1925: काकोरी कांड की पूरी कहानी, भगत सिंह की जुबानी

9 अगस्त 1925 को हुई इस घटना के ऊपर शहीद-ए-आज़म भगत सिंह ने काफी विस्तार से लिखा है. उन दिनों छपने वाली पंजाबी पत्रिका किरती में भगत सिंह ने एक सीरीज़ शुरू की थी, जिसमें वो काकोरी कांड के हीरो का परिचय पंजाबी भाषा में लोगों से करवाते थे.

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किस्सा काकोरी कांड का (सांकेतिक तस्वीर)
किस्सा काकोरी कांड का (सांकेतिक तस्वीर)

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अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ी गई आज़ादी की लड़ाई कई वर्षों तक चली. इस दौरान अलग-अलग वाकये हुए, कई छोटी-बड़ी घटनाएं हुईं जो इतिहास में दर्ज हो गईं. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने जब ‘असहयोग आंदोलन’ वापस ले लिया था, तब एक नई पीढ़ी को काफी झटका लगा था. क्योंकि बड़ी उम्मीदों के साथ देश में एक बड़ी संख्या में लोग इस आंदोलन के साथ जुड़ गए थे. इसी के साथ एक नई घटना की नींव पड़ गई थी, जिसे इतिहास में काकोरी कांड के नाम से जाना जाता है. इस घटना ने अंग्रेज़ों को बड़ा परेशान किया और एक संदेश पहुंचा दिया कि हिन्दुस्तानी क्रांतिकारी उनसे लोहा लेने के लिए हर तरह के तरीके अपना सकते हैं.

काकोरी कांड के लिए हमेशा रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, ठाकुर रोशन सिंह समेत कुल दस क्रांतिकारियों को याद किया जाता है. यानी काकोरी कांड को अंजाम देने वालों में अधिकतर लोग ‘हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन’ से जुड़े थे. जिनमें से कुछ को बाद में इस मामले के लिए फांसी भी हो गई. इस पूरे कांड के दौरान जर्मनी के माउज़र का इस्तेमाल किया गया, करीब चार हजार रुपये लूटे गए थे.

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9 अगस्त 1925 को हुई इस घटना के ऊपर शहीद-ए-आज़म भगत सिंह ने काफी विस्तार से लिखा है. उन दिनों छपने वाली पंजाबी पत्रिका ‘किरती’ में भगत सिंह ने एक सीरीज़ शुरू की थी, जिसमें वो काकोरी कांड के हीरो का परिचय पंजाबी भाषा में लोगों से करवाते थे. इसके अलावा उस पूरी घटना से जुड़ी बातें साझा करते थे.

..जब भगत सिंह ने जेल से लिखा, 'यहां हालत खराब है, एक टिन सिगरेट भिजवा दें'

काकोरी का किस्सा, भगत सिंह ने लिखा

अपने कई लेखों में भगत सिंह ने किरती में काकोरी कांड से जुड़े सभी दस मुख्य और अन्य साथियों का जिक्र किया है, साथ ही उनका पूरा परिचय भी लिखा है. इनमें शचींद्रनाथ सान्याल, रामप्रसाद बिस्मिल,राजेंद्रनाथ लाहिड़ी, रोशन सिंह, मन्मथनाथ गुप्त, जोगेशचंद्र चटर्जी, गोविंद चरणकार, सुरेशचंद्र भट्टाचार्य, राजकुमार, विष्णु शरण दुब्लिस, रामदुलारे, अशफाक उल्ला खां के बारे में लिखा गया.

ashfaqullah-khan_080920092048.jpgअशफाक उल्ला खां (फाइल)

मई, 1927 को ‘काकोरी के वीरों से परिचय’ नाम के लेख में उस किस्से के बारे में भगत सिंह ने लिखा है, ‘’9 अगस्त, 1925 को काकोरी स्टेशन से एक ट्रेन चली. ये करीब लखनऊ से 8 मील की दूरी पर था, ट्रेन चलने के कुछ ही देर बाद उसमें बैठे 3 नौजवानों ने गाड़ी रोक दी. उनके ही अन्य साथियों ने गाड़ी में मौजूद सरकारी खजाने को लूट लिया. उन तीन नौजवानों ने बड़ी चतुराई से ट्रेन में बैठे अन्य यात्रियों को धमका दिया था और समझाया था कि उन्हें कुछ नहीं होगा बस चुप रहें. लेकिन दोनों ओर से गोलियां चल रही थीं और इसी बीच एक यात्री ट्रेन से उतर गया और उसकी गोली लगकर मौत हो गई’’.

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‘...इसके बाद अंग्रेजों ने इस घटना की जांच बैठा दी. सीआईडी के अफसर हार्टन को जांच में लगा दिया गया. उसे मालूम था कि ये सब क्रांतिकारी जत्थे का किया धरा है, कुछ वक्त बाद ही क्रांतिकारियों की मेरठ में होने वाली एक बैठक का अफसर को पता लग गया और छानबीन शुरू हो गई. सितंबर आते-आते गिरफ्तारियां होनी शुरू हो गईं, राजेंद्र लाहिड़ी को बम कांड में दस साल की सज़ा हुई, अशफाक उल्ला, शचींद्र बख्शी भी बाद में पकड़े गए’.

‘सांप्रदायिक दंगे और उनका इलाज’, आज भी आईना है 90 साल पुराना भगत सिंह का ये लेख

काकोरी कांड, मुकदमा और फांसी

काकोरी कांड का मकसद सिर्फ अंग्रेजों के सरकारी खजाने को लूटना था और उन्हें एक कड़ा संदेश पहुंचाना था. इसके बाद जब अधिकतर लोग पकड़े गए तो दस महीने तक मुकदमा अदालत में चला और फांसी तक की नौबत आ गई. जनवरी, 1928 में भगत सिंह ने फिर ‘किरती’ पत्रिका में लेख लिखा.

‘..17 दिसंबर, 1927 को राजेंद्रनाथ लाहिड़ी को गोंडा में, 19 दिसंबर को रामप्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर, अशफाक उल्ला खां को फैज़ाबाद, रोशन सिंह को इलाहाबाद की जेल में फांसी दे दी गई. सुनवाई कर रहे सेशन जज हेमिल्टन ने कहा था कि ये सभी नौजवान देशभक्त हैं, भले ही इन्होंने अपने फायदे के लिए कुछ ना किया हो लेकिन अगर ये जवान कहें कि वो अपने किए का पश्चाताप करेंगे तो सज़ा में कुछ रियायत दी जा सकती है. लेकिन अंग्रेज़ी हुकूमत के आदेश पर फांसी दे दी गई’.

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ram-prasad-bismil_080920092115.jpgराम प्रसाद बिस्मिल (फाइल)

शहीद, फांसी का तख्ता और शायरी

इसके अलावा कुछ किस्से साझा करते हुए भगत सिंह ने अखबारों में जब हर किसी को फांसी दिए जाने का वक्त हुआ, ये बताया तो इन्हीं में जब अशफाक उल्ला खां को फांसी दी जा रही थी तब उन्होंने जाते हुए कुछ शेर पढ़े थे. इसी किस्से को बताते हुए लेख में लिखा गया है

‘अशफाक फांसी से एक दिन पहले अपने बाल सही कर रहे थे, तब उन्होंने साथी से कहा कल मेरी शादी है और कैसी बातें कर रहे हैं. फांसी की ओर जाने से पहले अशफाक उल्ला खां ने शेर पढ़ा, ‘फ़नाह हैं हम सबके लिए, हम पै कुछ नहीं मौक़ूफ़... वक़ा है एक फ़कत जाने की ब्रिया के लिए’. इसके अलावा उन्होंने कहा...‘तंग आकर हम उनके ज़ुल्म से बेदाद से, चल दिए सूए अदम ज़िन्दाने फ़ैज़ाबाद से’.

अशफाक उल्ला खां से इतर जब रामप्रसाद बिस्मिल को 19 की शाम को फांसी दी गई, तब वो बड़े ज़ोर से वंदे मातरम और भारत माता की जय के नारे लगाने लगे. उसी वक्त राम प्रसाद बिस्मिल ने कहा

‘मालिक तेरी रज़ा रहे और तू ही तू रहे

बाक़ी न मैं रहूं, न मेरी आरज़ू रहे

जब तक कि तन में जान रगों में लहू रहे

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तेरी ही जिक़्रेयार, तेरी जुस्तजू रहे’

जब राम प्रसाद बिस्मिल फांसी के तख्ते पर पहुंचे तो उन्होंने फिर शेर पढ़ा, ‘अब न अहले वलवले हैं और न अरमानों की भीड़, एक मिट जाने की हसरत अब दिले-बिस्मिल में है’.

pistol-used_080920092143.jpgइस पिस्तौल का किया गया था इस्तेमाल (फाइल)

भगत सिंह ने जब पढ़ना शुरू किया, तो उनकी आदत रहती थी कि जो पढ़ रहे हैं उसके बारे में लिखते भी थे. ताकि और लोगों को पता लग सके. ऐसा ही उन्होंने काकोरी कांड के साथ किया, उन्होंने हर उस व्यक्ति के बारे में लिखा जो काकोरी कांड में किसी न किसी रूप में शामिल रहा. जिसकी वजह से लोगों को उन महान वीरों के बारे में पता लगता रहा. 1927 से किरती पत्रिका में काकोरी के बारे में लिखने का सिलसिला करीब डेढ़ साल तक चलता रहा. भगत सिंह को जैसे ही कुछ बातें पता लगती या वीरों से जुड़ी कोई जानकारियां मिलतीं तो उनके बारे में और कुछ जानकारी जुटाकर पत्रिका में लेख लिखते थे.

(नोट: भगत सिंह ने अपने अधिकतर लेख पंजाबी-उर्दू में लिखे थे, उनपर लिखी गई किताब ‘भगत सिंह और उनके साथियों के संपूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़’ में इन सभी का हिन्दी अनुवाद किया गया है. उपयुक्त किस्सों का इनपुट वहीं से लिया गया है)

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