चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के हस्ताक्षर नहीं करने पर पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने सफाई दी है. उन्होंने कहा कि यह पूर्ण रूप से गलत है. शुरुआत से ही यह गंभीर मसला रहा है.
उन्होंने कहा, 'मैंने आपको अंग्रेजी में भी बताया और हिन्दी में भी बताया था. ये कोई छोटी-मोटी बात नहीं है और मैंने उस दिन भी उदाहरण दिया था कि ये कोई कॉफी पीने की बात नहीं है. सोच-समझ के साथ कोई भी अगर निर्णय लेता है तो बड़ी गंभीरता के साथ, क्योंकि संविधान की बात हो रही है और हमने जान-बूझ कर डॉ. मनमोहन सिंह को शामिल नहीं किया, क्योंकि वो पूर्व प्रधानमंत्री रहे हैं और जहां तक कुछ और लोगों का सवाल है, हम नहीं चाहते थे कि उन लोगों को झंझट में डालें.'
कांग्रेस सूत्रों की मानें तो मनमोहन सिंह के अलावा महाभियोग प्रस्ताव पर पी. चिदंबरम, वीरप्पा मोइली, सलमान खुर्शीद जैसे वरिष्ठ नेताओं के साइन नहीं हैं. इसके अलावा मनीष तिवारी और लोकसभा में नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी महाभियोग को लेकर खुले तौर से सहमत नहीं हैं.
यह पूछने पर कि महाभियोग की जो प्रक्रिया आपने बजट सेशन में शुरू की, इसमें क्या सस्पेंस था और क्या इसको लेकर आपकी पार्टी के बीच में सहमति नहीं थी... इसके जवाब में गुलाम नबी आजाद ने कहा कि सहमति और असहमति का सवाल ही पैदा नहीं होता. सहमति शुरू से ही थी, लेकिन जैसा कपिल सिब्बलजी ने कहा कि गंभीर विषय था, ऐसा नहीं है कोई मामूली आदमी हो, तो इसमें सोच-विचार जरूरी था.
एक अन्य प्रश्न पर कि आज सुप्रीम कोर्ट में महाभियोग को लेकर PIL डाली गई है, इस पर सिब्बल ने कहा कि आपसे भी राय मांग लेते तो अच्छा होता. क्योंकि आप संविधान की रक्षा करते हो और अगर आपके मुंह बंद किए जाएं तो वो संविधान का उल्लंघन होगा.
ये पूछने पर कि अगर सभापति ने इसको खारिज कर दिया, तो आपके पास रास्ते क्या बचते हैं, जवाब में सिब्बल ने कहा कि अगर ऐसे हालात आएंगे तो हम भी आपको रास्ता बता देंगे, संविधान में और भी रास्ते हैं. कुछ ऐसी बात नहीं हुई है, ना हमने जिक्र किया, ना उन्होंने किया.