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मनमोहन, सोनिया को सबक सिखाना चाहते थे करात: सोमनाथ

दिग्गज वामपंथी नेता सोमनाथ चटर्जी ने दावा किया है कि माकपा महासचिव प्रकाश करात परमाणु करार के मुद्दे पर अपमानित महसूस करने के बाद 2008 में सरकार से समर्थन वापसी लेकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी को सबक सिखाना चाहते थे.

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दिग्गज वामपंथी नेता सोमनाथ चटर्जी ने दावा किया है कि माकपा महासचिव प्रकाश करात परमाणु करार के मुद्दे पर अपमानित महसूस करने के बाद 2008 में सरकार से समर्थन वापसी लेकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी को सबक सिखाना चाहते थे.

लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने कहा है कि अपनी ‘प्रभावी’ छवि के कारण और 62 सांसदों के साथ सरकार पर असर के चलते करात, भाकपा के एबी बर्धन और अन्य वामपंथी नेताओं को लगता था कि सरकार के लिए उनका फैसला अंतिम शब्दों की तरह होगा.

सोमनाथ ने अपनी आत्मकथा ‘कीपिंग द फेथ: मेमायर्स ऑफ ए पार्लियामेंट’ में लोकसभा अध्यक्ष के रूप में अपने अंतिम दिनों की खटास को याद किया है, जिसका विमोचन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने शनिवार को किया.

सोमनाथ ने लिखा है, ‘‘प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह और अध्यक्ष के रूप में सोनिया गांधी के साथ संप्रग की सरकार बनने के बाद सभी के लिए, खासतौर पर सरकार के लोगों के लिए धीरे.धीरे यह स्पष्ट हो गया कि वाम दल ‘सिंहासन के पीछे की वास्तविक शक्ति’ की भूमिका निभाना चाहते थे.

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वाम दलों के लोकसभा में 62 सांसद थे और बाहर से उनके समर्थन पर सरकार का अस्तित्व टिका था.’’ उन्होंने लिखा है कि पार्टी ने इस तरह की धारणा बना रखी थी कि संप्रग सरकार केवल पार्टी के नेताओं, प्राथमिक तौर पर इसके महासचिव प्रकाश करात के आशीर्वाद से बनी रह सकती है.{mospagebreak}

81 वर्षीय सोमनाथ के अनुसार परमाणु करार करने की कांग्रेस की दृढ़ता ने करात को नाराज किया. उन्होंने किताब के एक अध्याय ‘द एक्सपल्शन. ए ग्रेट शॉक’ में लिखा है, ‘‘ऐसा लगता था कि करात ने फैसला कर लिया था कि प्रधानमंत्री और संप्रग अध्यक्ष को उनके हुए अपमान के लिए सबक सिखाना है.’

पूर्व लोकसभा अध्यक्ष को माकपा से 2008 में निष्कासित कर दिया गया था, जो दस बार लोकसभा सदस्य रह चुके हैं. उन्होंने लिखा है कि सरकार से समर्थन वापसी के वाम दलों के फैसले में उनकी कोई भूमिका नहीं थी.

हार्परकालिन्स द्वारा प्रकाशित पुस्तक के मुताबिक, ‘‘मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री और संप्रग अध्यक्ष की तरफ से जिसे करात का अपमान समझा जा रहा था, उससे वह इतना व्यथित हो गये कि उन्होंने सरकार से समर्थन वापस लेने के फैसले के नतीजों के बारे में नहीं सोचा या सोच नहीं सके.’’ सोमनाथ ने कहा कि उनका प्रस्ताव था कि माकपा को परमाणु करार के खिलाफ सार्वजनिक विचार जानने के लिए कदम उठाने चाहिए हालांकि उनका विचार पार्टी द्वारा करार का विरोध करते रहने का भी था.

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लोकसभा (2004-09) के इतिहास के सबसे उहापोह वाले घटनाक्रमों में से एक का दिलचस्प वाकया बताते हुए सोमनाथ ने बताया है कि केंद्र से माकपा के समर्थन वापसी के बाद भी उन्होंने लोकसभा अध्यक्ष के पद से इस्तीफा क्यों नहीं दिया.{mospagebreak}

उन्होंने इसके बाद हुए विश्वास मत का भी जिक्र किया है जिसमें उन्होंने सदन की अध्यक्षता की थी और पार्टी ने उनके साथ क्या रवैया अपनाया.

सोमनाथ के अनुसार मार्क्‍सवादी दिग्गज नेता ज्योति बसु ने उन्हें स्पीकर के तौर पर विश्वास मत में सदन की अध्यक्षता करने की सलाह दी थी. उन्होंने लिखा है, ‘‘मैंने अपने राजनीतिक करियर में ज्योति बसु से काफी कुछ सीखा है जो अपने आखिरी दिनों तक मेरे निर्विवाद नेता रहे. मैं 12 जुलाई 2008 को कोलकाता में उनसे मिला और उन्हें पार्टी की तरफ दिया गया संदेश दिखाया.’

सोमनाथ के मुताबिक, ‘‘जाहिर है कि उन्हें करार पर पार्टी की स्थिति भलीभांति पता थी और मैंने उनसे इस मुद्दे पर कोई चर्चा नहीं की. लेकिन उन्होंने मुझे सलाह दी कि मुझे विश्वास मत पर सदन की कार्यवाही की अध्यक्षता करनी चाहिए.’

उन्होंने लिखा है, ‘‘उन्हें लगता था और मैं भी यही सोचता था कि मेरे इस्तीफे से ऐसा लगेगा कि मैं स्पीकर के तौर पर अपने पद से समझौता कर रहा हूं और मेरी पार्टी को अपनी कार्यशैली पर हावी होने दे रहा हूं जो पूरी तरह अनैतिक था.’’ सोमनाथ ने यह भी कहा है कि उन्हें अपने खिलाफ पार्टी की तरफ से अनुशासनात्मक कार्रवाई का पूर्वाभास था लेकिन ऐसा कभी नहीं सोचा था कि इतनी जल्दबाजी में यह सब किया जाएगा.

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पूर्व लोकसभा अध्यक्ष ने अपनी किताब में इसके अलावा बाबरी मस्जिद विध्वंस, राजग का सत्ता में आना, गुजरात दंगे, कंधार विमान अपहरण और तहलका के खुलासे समेत अन्य मुद्दों पर भी बेबाक टिप्पणियां की हैं.

उन्होंने लिखा है कि छह दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद का विध्वंस धर्मनिरपेक्षता के हमारे सिद्धांत पर मिलकर किया गया सबसे बड़ा हमला था. यह जघन्य काम कल्याण सिंह नीत प्रदेश की भाजपा सरकार ने किया था लेकिन केंद्र सरकार की उपेक्षा से भी इनकार नहीं किया जा सकता.’

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