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सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा संस्थान एम्स में ‘कर्म ही पूजा’

एम्स ने एक बार फिर मेडिसिन के मामले में शैक्षणिक उत्कृष्टता से सबंधित इंडिया टुडे के सर्वेक्षण में पहले  स्थान पर कब्जा कर लिया और अपने प्रतिद्वंद्वियों से 20.6 अंक आगे निकलकर बाजी मार ली.

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अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के परिसर के ठीक बाहर किसी व्यक्ति ने एक देवता की एक फुट ऊंची मूर्ति लाकर रख दी है. यह कहना तो मुश्किल है कि मूर्ति किस देवता की है, लेकिन उस पर चढ़ी फूलमालाएं और पास में रखे चिल्लर का कटोरा देखकर लगता है कि वह कोई बड़ा देवता ही है. थोड़ा-सी पूजा करने से आपका रास्ता आसान होने की उम्मीद बन जाती है. पर संस्थान के भीतर का धर्म अलग ही है. गत वर्ष इसमें 453 वरिष्ठ डॉक्टर और 1,200 से अधिक जूनियर डॉक्टर थे जिन्होंने 15,28,238 बाह्य रोगियों का इलाज और 83,852 रोगियों को दाखिल करने के अलावा 77,631 ऑपरेशन किए और साथ में 1,661 छात्रों को शिक्षा दी, 381 परियोजनाओं की पड़ताल की और 1,424 विद्वतापूर्ण लेख प्रकाशित किए. इसके मद्देनजर कहा जा सकता है कि भारत के सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा संस्थान में कर्म ही पूजा है.

एम्स का पहले  स्थान पर कब्जा
इन उल्लेखनीय आंकड़ों के साथ एम्स ने एक बार फिर मेडिसिन के मामले में शैक्षणिक उत्कृष्टता से सबंधित इंडिया टुडे के सर्वेक्षण में पहले  स्थान पर कब्जा कर लिया और अपने प्रतिद्वंद्वियों से 20.6 अंक आगे निकलकर बाजी मार ली. दूसरे और तीसरे पायदान पर बने रहने के लिए वेल्लूर स्थित द क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज (सीएमसी) और पुणे स्थित आर्म्ड फोर्सेज मेडिकल कॉलेज (एएफएमसी)-जो रैंकिंग के मामले में कोई अजनबी नहीं हैं-के बीच कड़ी टक्कर रही. पुडुचेरी स्थित जवाहरलाल नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट-ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन ऐंड रिसर्च (जेआइपीएमईआर) और दिल्ली के मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज ने भी गत वर्ष का अपना स्थान बनाए रखा. चेन्नै स्थित द मद्रास मेडिकल कॉलेज ने ग्रांट मेडिकल कॉलेज को पीछे छोड़ दिया और एक सीढ़ी आगे बढ़ गया जबकि मुंबई स्थित सेठ जी.एस. मेडिकल कॉलेज मणिपाल के कस्तूरबा मेडिकल कॉलेज से आगे निकल गया.

उन्नत चिकित्सा तकनीक
कोई मेडिकल कॉलेज शीर्ष स्थान पर कैसे पहुंचता है? क्या अच्छे कार्यबल और बेहतर तकनीक की वजह से? जी हां, लेकिन इतना ही काफी नहीं है. हाल ही में एम्स के निदेशक बने डॉ. रमेशचंद्र डेका कहते हैं, ''उत्तम अस्पताल अपनी उत्कृष्ट संस्कृति की वजह से कुछ अलग होता है.'' 1971 में छात्र के रूप में स्वयं एम्स में दाखिल हुए डेका आगे कहते हैं, ''यहां छात्रों को दर्शन, नैतिकता और रोगी प्रबंधन को लेकर भिन्न प्रकार का प्रशिक्षण दिया जाता है, जो कहीं और उपलब्ध होना मुश्किल है. वे जहां भी जाते हैं, ये चीजें भी उनके साथ जाती हैं.'' मूल्यों के मामले में सीएमसी भी पीछे नहीं है. इस कॉलेज के निदेशक डॉ. सुरजन भट्टाचार्य कहते हैं, ''हमारा उद्देश्य यह है कि हर कोई उन्नत चिकित्सा तकनीक पाने में समर्थ बने और आम आदमी को इसका लाभ मिल सके. हम शिक्षा को किसी बाजारी वस्तु की तरह नहीं बेचते.''{mospagebreak}यह नकदी से लबालब कॉर्पोरेट कंपनियों का युग है, जो बाजार में गुणगान से हवा बांध देती हैं. वे अस्पताल को ब्रांडयुक्त उत्पाद के रूप में प्रस्तुत करती हैं, होटल जैसी सुविधाओं की पेशकश करती हैं, 'सर्वश्रेष्ठ' डॉक्टरों को झ्पट लेती हैं, अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी प्राप्त करती हैं और उपभोक्ता को निचोड़ लेती हैं. क्या ऐसे में 'उनके मूल्यों' के लिए कोई स्थान बचा रह गया है? डेका कहते हैं, ''डब्ल्यूटीओ के दौर के बाद हम विशेष रूप से प्रयास कर रहे हैं कि हमारे छात्र न केवल ज्ञान, 'नर और सही रुख सीखें बल्कि हेल्थकेयर के क्षेत्र में अग्रणी बनकर वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्धात्मक अनुसंधानों में शामिल हों.'' सही-सही कहें तो इसका मतलब है नई विशेषज्ञताओं, शोध और उपचार के तौर-तरीकों के क्षेत्र में अपनी राह बनाना.

सीएमसी एक कदम आगे
दूसरे पायदान पर काबिज सीएमसी एक कदम आगे रहने में विश्वास करता है. कार्डियो-थोरैसिक, न्यूरो-साइंसेस, यूरोलॉजी, एंडोक्रिनोलॉजी, गेस्ट्रोएंट्रोलॉजी और हीमेटोलॉजी सरीखी विशेषज्ञताओं के गढ़ सीएमसी में वाइ-फाइ समर्थ परिसर और अत्याधुनिक प्रयोगशालाएं हैं. कॉलेज के प्रिंसिपल जॉर्ज मैथ्यू बताते हैं, ''बहुविषयक रुख अपनाकर हम यह प्रयास कर रहे हैं कि इंजीनियरिंग, जुओलॉजी, बॉटनी, बायोटेक, न्यूट्रिशन जैसे विविध क्षेत्रों को 'न्यू मेडिसिन' नाम से एक ही मंच पर लाया जाए.'' कॉलेज हर साल प्रति विद्यार्थी 4.8 लाख रु. खर्च करता है. तीसरे स्थान पर विद्यमान एएफएमसी ने अपने विद्यार्थियों को आपात स्थितियों से निपटने का प्रशिक्षण देने में निवेश किया है. उसने बायोनिक ईयर और एंटी-रेट्रोवायरल थैरव्पी के नए केंद्र भी स्थापित किए हैं.

हर तरह के रोग निदान में संपन्न
एम्स की ओर लौटें. यहां हर 15 मिनट में परिसर के गिर्द चक्कर लगाती बैटरी से संचालित परिक्रमा वैन पर सवार हो जाएं तो आपको हर मोड़ पर एक विशेषज्ञता केंद्र मिलेगा. यहां ऊंचा-सा कार्डियो-न्यूरो सेंटर है तो होस्टलों के नजदीक डेंटल रिसर्च यूनिट है, देश में नेत्र रोग का शीर्ष आर.पी. सेंटर है, इंस्टीट्यूट रोटरी कैंसर हॉस्पिटल है, जयप्रकाश नारायण ट्रॉमा सेंटर में देश का पहला सर्वसुविधायुक्त ट्रॉमा यूनिट है, ऑर्गन रिट्रीवल बैंकिंग ऑर्गेनाइजेशन है, पुराने ओटी ब्लॉक के निकट द सेंटर फॉर कम्युनिटी मेडिसिन है. एम्स के प्रवक्ता और फॉर्माकोलॉजी के हेड वाइ.के. गुप्ता कहते हैं, ''50 विभागों और सुपरस्पेशलिटी सेंटर्स से युक्त हम लगभग हर तरह के रोग निदान में संपन्न हैं. '' इनके अलावा, संस्थान हर साल प्रति कोर्स हर स्नातक पर 31.31 लाख रु. खर्च करता है.

शीर्ष संस्थानों के लिए नया अध्याय
नेहरूवादी दूरदृष्टि से लेकर उदारीकरण और भोरे समिति (1946) के  'समाज के प्रति प्रतिबद्ध' डॉक्टरों के सपने से लेकर देश को छोड़कर जाने वाले डॉक्टरों तक, भारत के मेडिकल शिक्षा संस्थानों ने लंबी दूरी तय की है. इन दो छोरों के बीच ऐसे संस्थान भी हैं जो 'अपने मूल्यों' में विश्वास रखते हैं. डेका कहते हैं, ''भारत में कोई 290 मेडिकल कॉलेज हैं, लेकिन एमबीबीएस का उद्देश्य पूरा नहीं हुआ है. समय की मांग हेल्थकेयर में ऐसे पेशेवरों की नई जमात तैयार करने की है, जो एमबीबीएस से नीचे हों और ग्रामीण भारत में हेल्थकेयर के क्षेत्र में उपचार और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता ला सकें.'' इससे शीर्ष कॉलेजों पर से मरीजों का भारी बोझ हट जाएगा और अत्याधुनिक शोधों और श्रेष्ठ क्लिनिकल प्रैक्टिस में विद्यार्थियों की प्रतिभा को तराशा जा सकेगा. यह सपना हमारी सूची में जगह पाने वाले अधिकांश शीर्ष संस्थानों के लिए नया अध्याय खोलेगा.
 -साथ में महालिंगम पोन्नुसामी

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