कर्नाटक में कुमारस्वामी सरकार की विदाई के बाद माना यह जा रहा है कि इस माह की शुरुआत में कांग्रेस और जनता दल सेक्युलर विधायकों के इस्तीफे के साथ शुरू हुए सियासी नाटक का पटाक्षेप हो गया है. विधानसभा के चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद सबसे बड़े दल के रूप में उभरी भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष ने इसी विधानसभा के कार्यकाल में दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है.
कर्नाटक के सियासी नाटक में एक तरह से अब नए अध्याय की शुरुआत हो रही है. जेडीएस विधायकों द्वारा एचडी कुमारस्वामी से भाजपा सरकार का समर्थन करने की बात कहना भी इसी तरफ संकेत करता है कि कर्नाटक की राजनीति नई दिशा पकड़ रही है. विधानसभा में सीटों के उलझे समीकरण के बीच बहुमत सिद्ध करने के लिए राज्यपाल द्वारा निर्धारित 7 दिन की समयसीमा के अंदर येदियुरप्पा के लिए बहुमत सिद्ध करना और उसके बाद स्थिर सरकार देना आसान नहीं होगा.
अतीत में प्रदेश के किसी भी चुनाव बाद गठबंधन की सरकार ने पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं किया है. ऐसे में क्या भरोसा कि कांग्रेस और जेडीएस से किनारा कर परोक्ष रूप से येदियुरप्पा के साथ आने वाले विधायकों की निष्ठा भाजपा के साथ बनी रहेगी? कर्नाटक की सियासत का स्वरूप, अतीत और वर्तमान इसकी गवाही देते हैं.
क्या है वर्तमान परिदृश्य
कर्नाटक विधानसभा का वर्तमान परिदृश्य काफी उलझा हुआ है. 224 सदस्यीय विधानसभा में बागियों को हटा दें तो कुल 205 विधायक हैं. एचडी कुमारस्वामी द्वारा पेश विश्वास मत प्रस्ताव पर मतदान से जो तस्वीर उभर कर सामने आई, भाजपा को कुल 105 और कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन को 99 विधायकों का समर्थन हासिल है. संख्याबल के इस गणित के आधार पर येदियुरप्पा सरकार सुरक्षित नजर आ रही है, लेकिन सियासत में कब क्या हो किसने जाना.
कांग्रेस-जेडीएस ने विधानसभा में विश्वास मत पर कई दिन तक चली मैराथन चर्चा के बाद सत्ता गंवाने वाली देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस और अमेरिका दौरा अधूरा छोड़कर लौटने, मुख्यमंत्री पद से अपदस्थ होने को मजबूर हुए एचडी कुमारस्वामी से बेहतर भला कौन जान सकता है.
दोनों ने सत्ता तो गंवा दी, लेकिन हार नहीं मानी. बागियों को अब भी अपने पाले में लाने के प्रयास में कांग्रेस और जेडीएस के नेता अंदरखाने जुटे हैं और हर संभव प्रयास कर रहे हैं. अगर बागी विधायक सदन में उपस्थित हुए तो भाजपा को अपने पक्ष में उनके वोट की जरूरत होगी.
विधानसभा अध्यक्ष के फैसले ने उलझा दी गणित
विधायकों के इस्तीफे पर फैसले में देर का मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया, लेकिन कोर्ट ने भी निर्णय स्पीकर पर छोड़ दिया. स्पीकर के फैसले ने भी गणित उलझा दी है. स्पीकर ने तीन विधायकों को अयोग्य करार देकर एक तरह से अन्य बागियों को यह संकेत दे दिया कि उनकी भी हालत 'न माया मिली, न राम' वाली न हो जाए.
अयोग्य ठहराए जाने के बाद वे न तो विधायक रह जाएंगे, न ही उपचुनाव ही लड़ सकेंगे. ऐसे में इसे अन्य बागी विधायकों के लिए भी संकेत माना जा रहा है कि अगर वह व्हिप का उल्लंघन कर क्रॉस वोटिंग करते हैं, तो स्पीकर को उनके खिलाफ कार्रवाई का आधार मिल जाएगा. हालांकि छह माह के लिए येदियुरप्पा की सरकार सुरक्षित जरूर हो जाएगी, क्योंकि सरकार के विश्वास हासिल करने के बाद नियमानुसार छह माह के अंदर अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता.
सत्ता का फाइनल होगा उपचुनाव
सत्ता संभालने के बाद वर्तमान गणित के आधार पर यदि येदियुरप्पा विधानसभा में बहुमत साबित कर भी देते हैं, तो भी सरकार के भविष्य को लेकर संशय बना रहेगा. स्पीकर केआर रमेश विधायकों का इस्तीफा स्वीकार करें या उन्हें अयोग्य ठहराएं, दोनों ही स्थितियों में येदियुरप्पा सरकार और विपक्षी कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन, दोनों ही खेमों के लिए उपचुनाव सत्ता के सेमीफाइनल की तरह हो जाएगा.
कांग्रेस और जेडीएस जनता की अदालत में स्वयं को पीड़ित की तरह पेश करेंगे, इसमें कोई दो राय नहीं. करो या मरो वाली चुनावी जंग में जो जीतेगा, वही कर्नाटक की सियासत का सिकंदर होगा.