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कर्नाटक में जाति है महत्वपूर्ण, क्या सिद्धारमैया के AHINDA का तोड़ निकाल पाएगी BJP

राज्य में पिछड़ों, दलितों और मुसलमानों की भारी जनसंख्या को देखते हुए कांग्रेसी मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने सोशल इंजीनियरिंग की AHINDA नीति पेश की है. अब देखना यह होगा कि बीजेपी इसका क्या तोड़ निकालती है.

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पीएम मोदी और कनार्टक के सीएम सिद्धारमैया
पीएम मोदी और कनार्टक के सीएम सिद्धारमैया

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कर्नाटक में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है. खासकर बीजेपी और कांग्रेस के लिए राज्य की सत्ता नाक की लड़ाई बन चुकी है. राज्य में जाति, समुदाय की राजनीति काफी महत्वपूर्ण है. राज्य में पिछड़ों, दलितों और मुसलमानों की भारी जनसंख्या को देखते हुए कांग्रेसी मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने सोशल इंजीनियरिंग की AHINDA नीति पेश की है. अब देखना यह होगा कि बीजेपी इसका क्या तोड़ निकालती है.

क्या है AHINDA

राज्य में 12 मई काे चुनाव हैं. इसके लिए मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने अपनी सोशल इंजीनियरिंग की नीति AHINDA पेश की है. AHINDA कन्नड़ में शॉर्ट फॉर्म है जिसका मतलब है दलित, अल्पसंख्यक और पिछड़ी जाति. गौरतलब है कि सिद्धारमैया ने राज्य में करीब 150 करोड़ रुपये के खर्च से साल 2015 में एक जाति जनगणना भी कराई थी. लेकिन उसकी रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया. हालांकि, यह लीक हो गई है.

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इसके मुताबिक राज्य में सवर्ण लिंगायत समुदाय का हिस्सा 16-17 फीसदी से घटकर महज 9.8 फीसदी रह गया है. इसी तरह वोक्कालिंगा समुदाय का हिस्सा 14-15 फीसदी से घटकर करीब 8 फीसदी ही रह गया है. जनगणना के मुताबिक राज्य की 6.5 करोड़ जनसंख्या में सबसे ज्यादा 24 फीसदी हिस्सा दलितों का है. राज्य में मुसलमानों का हिस्सा 12.5 फीसदी है. अनुसूजित जन‍जातियों और कुरुबास (जिस समुदाय से मुख्यमंत्री सिद्धारमैया आते हैं) की जनसंख्या 7-7 फीसदी है. ब्राह्मणों की जनसंख्या महज 2 फीसदी ही है. इस तरह AHINDA में कर्नाटक की कुल जनसंख्या का करीब 80 फीसदी हिस्सा आता है.

इस लीक डेटा ने राज्य की सभी राजनीतिक दलों को अपनी रणनीति बदलने पर मजबूर कर दिया है. बीजेपी लिंगायत और वोक्कालिंगा को मनाने की पूरी कोशिश कर रही है. दलित वोटों को लुभाने के लिए जेडी एस ने कर्नाटक में मायावती की बीएसपी से गठजोड़ किया है.

सेंटर फॉर स्टडीज ऑफ डेवलपिंग स्टडीज (CSDS) ने साल 2008 के चुनाव में कर्नाटक में पड़े वोटों का सामाजिक- जातिवार विश्लेषण किया है. इस अध्ययन के मुताबिक पिछले चुनाव में कर्नाटक में उच्च सामाजिक पृष्ठभूमि के वोट तीनों प्रमुख दलों में लगभग बराबर बंटे थे. कांग्रेस को इस वर्ग के 34 फीसदी, बीजेपी को 33 फीसदी और जेडी (एस) को 31 फीसदी वोट मिले थे.

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सवर्णों के सबसे ज्यादा वोट बीजेपी को

हालांकि जाति के हिसाब से देखें तो वोटों में काफी अंतर है. स्टडी के अनुसार सर्वण लिंगायत के 51 फीसदी वोट बीएस येदियुरप्पा के नेतृत्व वाली बीजेपी को मिले थे. येदियुरप्पा खुद लिंगायत समुदाय से आते हैं. कांग्रेस को लिंगायत समुदाय के सिर्फ 25 फीसदी और जनता दल एस को 15 फीसदी वोट मिले थे.

जाति के हिसाब से देखें तो सवर्णो के सबसे ज्यादा 41 फीसदी वोट बीजेपी को, 33 फीसदी कांग्रेस को और 13 फीसदी जेडी (एस) को मिले थे. एचडी देवगौड़ा के नेतृत्व वाली पार्टी जेडी (एस) को वोक्कालिंगा समुदाय के 40 फीसदी वोट मिले थे. कांग्रेस को इस समुदाय के 35 फीसदी, जबकि बीजेपी को सिर्फ 18 फीसदी वोट मिले थे.

AHINDA का सबसे ज्यादा वोट कांग्रेस को मिला था

निचले सामाजिक पृष्ठभूमि के वोटों की बात करें तो इसमें कांग्रेस का बहुत अच्छा जनाधार है. पिछले चुनाव में कांग्रेस को इस वर्ग के 54 फीसदी वोट मिले थे, जबकि बीजेपी और जेडी (एस) को 18-18 फीसदी वोट मिले थे. ओबीसी वर्ग में से 38 फीसदी वोट कांग्रेस को, 29 फीसदी वोट बीजेपी को और 20 फीसदी वोट जेडी (एस) को मिले थे.

दलितों, आदिवासियों और मुसलमानों ने जमकर कांग्रेस को वोट दिए थे. इस तीनों वर्गों से कांग्रेस को क्रमश: 50 फीसदी, 44 फीसदी और 65 फीसदी वोट मिले थे. इसके मुकाबले बीजेपी को दलितों के 20 फीसदी, आदिवासियों के 25 फीसदी और मुसलमानों के महज 11 फीसदी वोट मिले थे.

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इस मामले में गौर करने की बात है कि पिछले कई चुनावों से कर्नाटक में वोटों का यह पैटर्न बरकरार रहा है. राज्य में जाति और समुदाय के वोटों के महत्व को देखते हुए ही सभी दल इस हिसाब से अपनी रणनीति भी बनाते रहे हैं.

साल 1952 से अब तक राज्य के ज्यादातर मुख्यमंत्री लिंगायत या वोक्कालिंगा समुदाय से रहे हैं. इसलिए यह धारणा बन गई है कि ये दोनों समुदाय राज्य में सबसे ताकतवर हैं. लेकिन सिद्धारमैया इस धारणा को बदलने की कोशिश कर रहे हैं.

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