राज्य में विधानसभा चुनावों को देखते हुए कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने सोमवार को लिंगायत समुदाय को धार्मिक अल्पसंख्यक दर्जा देने का फैसला किया है. लेकिन सिद्धारमैया सरकार के इस फैसले पर हंगामा शुरू हो गया है. भारतीय जनता पार्टी ने इस फैसले की कड़ी आलोचना की है और इसे हिंदुओं को बांटने वाला बताया है.
मंगलवार सुबह केंद्रीय मंत्री सदानंद गौड़ा ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया पर सीधा निशाना साधा. गौड़ा ने लिखा कि अगस्त 2014 में महाराष्ट्र की पृथ्वीराज चौहान सरकार ने भी ऐसा ही फैसला लिया था, लेकिन केंद्र में बैठी यूपीए सरकार ने उसे ठुकरा दिया था. क्या सिद्धारमैया इस बात को नहीं जानते हैं? केंद्रीय मंत्री ने कहा कि यह जानते हुए भी सिद्धारमैया सरकार ने इस फैसले को किया. सरकार का ये फैसला हिंदुओं को बांटने वाला है.
Then Congress CM of Maharastra Mr Prithviraj Chauhan recommanded Minority Status for Lingayaths in Maharastra in Aug -2014 one month before going for Assembly elections in Maharastra . Subsequently was rejected by UPA Government . Don't u know this CM @siddaramaiah .
— Sadananda Gowda (@DVSBJP) March 20, 2018
कांग्रेस नीत कर्नाटक सरकार के इस फैसले का राजनीतिक प्रभाव देखने को मिल सकता है. इस समुदाय को कांग्रेस की ओर आकर्षित करने की मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की एक कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है. दरअसल, भाजपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार बीएस येदियुरप्पा लिंगायत समुदाय से आते हैं.
ये समुदाय राज्य में संख्या बल के हिसाब से मजबूत और राजनीतिक रूप से प्रभावशाली है. राज्य में लिंगायत/ वीरशैव समुदाय की कुल आबादी में 17 प्रतिशत की हिस्सेदारी होने का अनुमान है, इन्हें कांग्रेस शासित कर्नाटक में भाजपा का पारंपरिक वोट माना जाता है.
BJP ने बताया- 'फूट डालो, राज करो' वाला फैसला
भाजपा ने कैबिनेट के फैसले की आलोचना की है, जिसने सिद्धारमैया पर वोट बैंक की राजनीति के लिए आग से खेलने और अंग्रेजों की ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति को आगे बढ़ाने का आरोप लगाया. भाजपा महासचिव पी मुरलीधर राव ने एक ट्वीट में कहा कि कांग्रेस भारत में अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो की नीति को आगे बढ़ा रही है. उन्होंने कहा, ‘‘कांग्रेस चुनाव से पहले यह क्यों कर रही है? उसने चार साल पहले यह क्यों नहीं किया?’’
लिंगायतों का राजनीतिक रुझान
1980 के दशक में लिंगायतों ने राज्य के नेता रामकृष्ण हेगड़े पर भरोसा किया था. बाद में लिंगायत कांग्रेस के वीरेंद्र पाटिल के भी साथ गए. 1989 में कांग्रेस की सरकार में पाटिल सीएम चुने गए, लेकिन राजीव गांधी ने पाटिल को एयरपोर्ट पर ही सीएम पद से हटा दिया था.
इसके बाद लिंगायत समुदाय ने कांग्रेस से दूरी बना ली. इसके बाद लिंगायत फिर से हेगड़े का समर्थन करने लगे. इसके बाद लिंगायतों ने बीजेपी के बीएस येदियुरप्पा को अपना नेता चुना. जब बीजेपी ने येदियुरप्पा को सीएम पद से हटाया तो इस समुदाय ने बीजेपी से मुंह मोड़ लिया था.