विवादों में घिरे कर्नाटक के लोकायुक्त जस्टिस भास्कर राव ने आखिरकार मंगलवार को इस्तीफा दे दिया. उन्होंने अपना इस्तीफा राज्यपाल को भेजा जिसे राज्यपाल ने मंजूर कर लिया. उनके बेटे आश्विन राव पर लोकायुक्त रेड का डर दिखाकर सरकारी अधिकारियों से तक़रीबन 100 करोड़ रुपये फिरौती वसूलने का आरोप लगा था.
इस मामले को लेकर पिछले कई माह से कर्नाटक की राजनीति गर्माई हुई थी. विधानसभा में उनके खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव लाया गया था. इस प्रक्रिया के पूरी होने से पहले ही उन्होंने अपना इस्तीफा दे दिया. इससे पहले वे इस्तीफा नहीं देने पर अड़े हुए थे.
अगर महाभियोग के तहत उन्हें हटाया जाता तो वे देश के पहले ऐसे लोकायुक्त होते, जिन्हें महाभियोग के जरिए उनके पद से हटाया जाता. लोकायुक्त जस्टिस भास्कर राव पिछले तीन महीने से दफ्तर नहीं आ रहे थे, जबसे उनके बेटे आश्विन राव पर लोकायुक्त रेड का डर दिखाकर सरकारी अधिकारियों से तक़रीबन 100 करोड़ रुपये फिरौती वसूलने का आरोप लगा.
इस मामले में हंगामा उठने पर सरकार ने आईजी लेवल के अधिकारी कमल पंत की देखरेख में एक विशेष जांच दल का गठन किया था, जिसने आश्विन राव के साथ-साथ लोकायुक्त दफ्तर में तैनात संयुक्त आयुक्त सय्यद रियाज और उनके एक मित्र को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था.
जस्टिस रावसे भी एसआईटी ने इस बाबत पूछताछ की है, लेकिन संवैधानिक पद पर आसीन होने की वजह से उनके खिलाफ कार्रवाई करने में कुछ कानूनी पेचीदगियां आ रही थी. जस्टिस भास्कर राव को उनके पद से हटाने के आखिरी विकल्प के तौर पर महाभियोग प्रस्ताव का सहारा लिया गया, लेकिन इससे पहले प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए कानून में संशोधन भी किया गया.
नए कानून के सहारे लोकायुक्त को महाभियोग के जरिए हटाने के लिए विधानसभा के एक तिहाई सदस्य अगर लिखित प्रस्ताव स्पीकर को दें और स्पीकर उसे मंजूर कर कर्नाटक हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को भेज दें तो लोकायुक्त की शक्तियां तब तक निलंबित रहेंगी, जब तक चीफ जस्टिस की जांच रिपोर्ट न आ जाए.