कश्मीर में अलगाववादी संगठन को लेकर अब तक कड़ा रुख अपना रही केंद्र सरकार ने यू-टर्न ले लिया है. पाकिस्तानी नेताओं से अलगाववादियों की मुलाकात और बातचीत पर अब तक रोक लगाने वाली सरकार अब इसे हरी झंडी देती नजर आ रही है.
बीते सप्ताह संसद में दिए गए एक लिखित जवाब में विदेश राज्य मंत्री वीके सिंह ने कहा, 'जम्मू-कश्मीर भारत का एक अभिन्न अंग है और कश्मीर के अलगाववादी नेता भी भारतीय नागरिक हैं. इसके चलते वे किसी भी देश के रिप्रेजेंटेटिव से मुलाकात और बात कर सकते हैं.'
'PAK से बातचीत में थर्ड पार्टी का रोल नहीं'
जवाब में वीके सिंह ने यह भी स्पष्ट किया है कि भारत-पाकिस्तान के बीच बातचीत में किसी तीसरे पक्ष को नहीं लाया जाएगा. उन्होंने कहा, 'भारत अब तक इस बात पर अडिग रहा है कि पाकिस्तान से बातचीत में थर्ड पार्टी का रोल नहीं होगा. जैसा कि शिमला समझौते और लाहौर में हुई घोषणा में भी कहा गया है.'
हुर्रियत की वजह से रद्द हुई थी वार्ता
बता दें कि अगस्त 2014 में मोदी सरकार ने विदेश सचिव स्तर की बातचीत से पहले पाकिस्तान की अलगवादी नेताओं से मिलने की मांग को ठुकरा दिया था और बाद में इसी वजह से बातचीत भी रद्द हो गई थी. अगस्त 2015 में पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) को भारत आना था, लेकिन उससे दिल्ली में मौजूद पाकिस्तानी हाई कमिश्नर ने कश्मीरी अलगाववादी नेताओं से बातचीत की जिसके बाद भारत ने बातचीत रद्द कर दी थी. उस वक्त विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने पाकिस्तान को भारत या अलगाववादी नेताओं में से किसी एक को चुनने तक की बात कह डाली थी.
इसलिए पलटी मोदी सरकार
अलगाववादी संगठन हुर्रियत की गतिविधियों को लेकर मोदी सरकार लगातार कड़ा रुख अपनाती दिखी है, लेकिन बैंकॉक में भारत-पाकिस्तान के एनएसए की मुलाकात के बाद सुरक्षा और आतंकवाद जैसे मुद्दों पर बातचीत की उम्मीद जगी थी. इससे यह भी स्पष्ट हो गया कि सरकार हुर्रियत के पाकिस्तानी नेताओं से मिलने पर बैन लगाकर अपनी राह मुश्किल बना रही है. माना जा रहा है कि इसी के बाद यह फैसला लिया गया. इस साल 23 मार्च को पाकिस्तान डे के मौके पर पाकिस्तानी उच्चायोग में हुर्रियत के नेता मौजूद थे.