साठ-सत्तर सालों में ज्यादा कुछ बदला नहीं है, पहले विद्रोहियों को गोली मारी जाती थी अब गाली. इधर जबसे आई टी एक्ट की धारा 66-A हटी है आम धारणा सी बन गई है कि अब खुलकर गालियां दी जा सकती है, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल भी शायद ऐसा सोचने वालों में से हैं, उनकी यही सोच दिल्ली गोलीकाण्ड की एक वजह बनी. दिल्ली में दोबारा सरकार बनने के बाद स्टिंग ऑपरेशन के तौर पर आये चौतीस लाख सैंतीस हजार नौ सौ छप्पनवें ऑडियो में केजरीवाल पार्टी के विद्रोही नेताओं को गालियाँ देते सुने जा सकते हैं.
दूर से देखें तो केजरीवाल की पार्टी में सबकुछ ठीक है अब तो खाँसी भी! एकतरफ़ा चुनाव जीते हैं, फिर से मुख्यमंत्री बन गए हैं,विपक्ष न के बराबर है, फेसबुक पर लाइक्स आ रहे हैं, ट्विटर पर रीट्वीट्स आ रहे हैं, इंसान को जिंदगी से और चाहिए भी क्या? समझ नही आता फिर पार्टी में इतने मतभेद क्यों हैं? दरअसल आम आदमी पार्टी की विडंबना है कि वोटों से ज्यादा उन पर स्टिंग्स हुए हैं और नेताओं से ज्यादा पार्टी में मतभेद हैं.
केजरीवाल को गालियाँ देते सुन लोगों में हैरानगी है, कोई इसे एआईबी रोस्ट जैसे कार्यक्रमों का दुष्प्रभाव बताता है तो कोई रोडीज वालों को साथ रखने का असर, वहीं कईयों को इसमें कुछ नया नजर नही आ रहा, केजरीवाल नेता भले अब बने हों इसके पहले वो इंजीनियरिंग स्टूडेंट रह चुके हैं. केजरीवाल के विरोधियों ने गालीकाण्ड में भी उनकी अयोग्यता खोज निकाली है, दिल्ली का मुख्यमंत्री दिल्ली का प्रतिनिधित्व करता है,कम से कम गालियाँ तो दिल्ली वाली देनीं थी.
विरोधी धड़ों से अब तो ये आवाजें भी उठने लगी हैं कि सेमीफाइनल हारकर जल्दी घर लौटने से आईपीएल शुरू होने के बीच के समय अंतराल में केजरीवाल को विराट कोहली से गाढ़ी-गाढ़ी गालियां सीख लेनी चाहिए, जैसे पार्टी के हाल हैं उन्हें आगे भी इस सबकी जरूरत पड़ने वाली है.क्रिकेट से उनका संबंध आज का नही है, ऑडियो क्लिप में केजरीवाल ये भी कहते नजर आ रहे हैं कि जिसे चलाना हो वो आम आदमी पार्टी चला सकता वो अपने 67 विधायक लेकर एक अलग पार्टी बना लेंगे, साफ़ जाहिर होता है ये बचपन से उन बच्चों में रहे हैं जो ढंग से न खिलाये जाने पर अपना बैट-बॉल लेकर अलग खेलने निकल जाते थे.