आम आदमी पार्टी में मची उठापठक के साये में जिस तरह एक के बाद एक स्टिंग ऑपरेशन सामने आ रहे हैं . अभी कुछ और स्टिंग के आने की चर्चा भी है. आम आदमी पार्टी समर्थकों के सामने फिर से सवाल खड़े हो गए हैं कि कहीं वो किसी छलावे या भ्रम का शिकार तो नहीं है. उसे कभी कभी लगने लगा है कि राजनीति कहीं काजल की कोठरी ही तो नहीं है. बाहर कुछ और, अंदर से कुछ और.
सीन - 1
संदर्भ फिल्म कुरुक्षेत्र से है. मुख्यमंत्री बाबूराव देशमुख रेप के आरोपी अपने बेटे को बचाने के लिए पॉवर, पैसा और सरकारी मशीनरी के साथ पूरी ताकत झोंक देता है. लेकिन एक ईमानदार पुलिस अफसर एसीपी पृथ्वीराज सिंह तमाम झंझावातों से जूझता है पर मुख्यमंत्री के बेटे के खिलाफ तैयार चार्जशीट की कॉपी नहीं देता. दूसरी तरफ विपक्ष का नेता संभाजी यादव अस्पताल पहुंच कर एसीपी के परिवार से सहानुभूति जताता है और मदद का भरोसा दिलाकर चार्जशीट की कॉपी ले लेता है. फिर मुख्यमंत्री से समझौता कर खुद उप मुख्यमंत्री बन जाता है. फिर मुख्यमंत्री बाबूराव के पूछने पर संभाजी यादव दोनों की राजनीति में फर्क समझाता है. संभाजी का कहना है कि दोनों का मकसद एक ही था बस रास्ते अलग अलग थे. जिस काम के लिए बाबू राव ने राजनीतिक के प्रचलित तरीकों का इस्तेमाल किया, उसे उसने अपनी मीठी बातों में फंसाकर हासिल कर लिया.
सीन - 2
संदर्भ भारतीय राजनीति से है. बात अप्रैल 1987 की है जब बोफोर्स घोटाला सुर्खियां बना. तब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे और विश्वनाथ प्रताप सिंह उनकी सरकार में मंत्री. सरकार से बगावत कर सिंह एक ईमानदार नेता के रूप में उभरे और चुनाव में लोगों से वादा किया कि सत्ता में आने के बाद वो पूरे मामले का खुलासा कर देंगे. इस दौरान पूरे देश में नारा गूंजा - राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है. चुनाव नतीजों के बाद सिंह प्रधानमंत्री बने लेकिन कुछ ही महीनों बाद वो भी उसी राजनीति का हिस्सा नजर आए जब उन्होंने देश के युवाओं को मंडल की राजनीति में झोंक दिया.
सीन - 3
संदर्भ के लिए रामलीला मैदान चलते हैं. भ्रष्टाचार और घोटालों से ऊब चुके आम जनमानस को अन्ना के आंदोलन से एक नई उम्मीद उपजी. इस आंदोलन के आर्किटेक्ट अरविंद केजरीवाल ने अपनी मुहिम को राजनीति की ओर मोड़ने की कोशिश की तो उनके कई साथियों ने अपने रास्ते अलग कर लिए, जिसमें अगुवाई कर रहे अन्ना हजारे में शामिल थे. फिर भी केजरीवाल आगे बढ़ते रहे. दिल्ली की सत्ता और लोक सभा की गलतियों को सुधार कर उन्होंने माफी मांगी और इस साल दिल्ली विधानसभा चुनाव में 67 सीटों के साथ बड़ी जीत हासिल की. केजरीवाल के सत्ता संभाले अभी महीना भर भी नहीं हुआ है.
केजरीवाल ने 15 जनवरी को दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. लेकिन एक के बाद एक आ रहे स्टिंग ऑपरेशन ने कुछ सवाल खड़े कर दिए हैं. केजरीवाल पर उन्हीं के साथी रहे गंभीर आरोप लगा रहे हैं.
1. आप के दो बड़े नेता, जिन्हें पार्टी के राजनीतिक पैनल से हटा दिया गया है, योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण के पत्र से पता चला कि लोकसभा चुनाव के बाद केजरीवाल ने दिल्ली में कांग्रेस की मदद से फिर से सरकार बनाना चाहते थे. इसके बाद एक स्टिंग ऑपरेशन में आरोप लगा है कि केजरीवाल ने सत्ता के लिए विधायकों की खऱीद फरोख्त की कोशिश की.
2. एक और ऑडियो टेप आया है जिसमें केजरीवाल ये कहते हुए सुनाई दे रहे हैं कि मुस्लिम वोटर 'आप' के पक्ष में ही वोट डालेगा. मुस्लिमों के पास बीजेपी को रोकने के लिए 'आप' के अलावा और कोई विकल्प नहीं है. इसके बाद केजरीवाल पर मुस्लिम विरोधी होने के आरोप लग रहे हैं.
3. केजरीवाल के बारे में प्रशांत भूषण ने कहा था, “मेरा मानना है कि हमें अपनी नीति संबंधी सिद्धांतों पर अडिग रहना चाहिए, जबकि अरविंद को लगता है कि राजनीति में समझौते करने पड़ते हैं.”
आखिर किस रास्ते पर जा रहे हैं केजरीवाल? ये सवाल उन्हीं के साथियों के आरोपों से उठा है, जिनके जवाब छुट्टी से लौटते ही उन्हें देने होंगे. जरूरी नहीं कि धुआं असली आग से ही उठा हो पर उसने केजरीवाल की इमेज को धुंधला तो कर ही दिया है, भले ही ये चंद मिनटों के लिए ही हो. ऐसा तो नहीं कि लोगों को सपने दिखा कर भारतीय राजनीति को फिर से फिल्मी कुरुक्षेत्र में तब्दील करने की कोई कवायद चल रही है.