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क्या गाडगिल कमेटी की रिपोर्ट को नजरअंदाज करने की वजह से केरल में आई आफत?

केरल में बारिश और बाढ़ के बाद आई भीषण तबाही के पीछे यहां के विकास मॉडल और पर्यावरणीय चिंताओं को नजरअंदाज करना प्रमुख कारण बने हैं.

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इडुक्की डैम (फोटो- पीटीआई)
इडुक्की डैम (फोटो- पीटीआई)

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केरल में आई बाढ़ से अब तक कम से कम 373 लोगों की मौत हो चुकी है और राज्य में करीब 1400 घर पूरी तरह तबाह हो चुके हैं. माना जा रहा है कि अब तक 20 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है. इब बाढ़ के इतना खतरनाक होने की वजहें तलाशी जा रही हैं.

इसमें पर्यावरणीय कानूनों की अनदेखी से लेकर बांधों को देर से खोलने जैसी वजहें सामने आ रही हैं. केरल में इस मॉनसून सीजन में 42% ज्यादा बारिश हुई. 3 जिलों को छोड़कर बाकी के 11 जिलों में सामान्य से ज्यादा बारिश हुई. इडुक्की में सबसे ज्यादा बारिश हुई जो कि सामान्य से 92% ज्यादा दर्ज की गई. पलक्कड में 72% तो कोट्टायम में 51% ज्यादा बारिश हुई. इस बार बंगाल और आसपास कम दबाव का क्षेत्र बना. मानसूनी हवा आगे बढ़ने की बजाय केरल में रुकी रही. हालांकि, इस तबाही की एकमात्र वजह ज्यादा बारिश नहीं है.

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बांधों को खोलने में देरी की गई

जानकारों के मुताबिक बांधों के संचालन में भी गड़बड़ी हुई. बांधों से धीरे-धीरे पानी छोड़ने की बजाय इंतजार किया गया. जब जलाशय लबालब हो गए, तब बांधों के गेट खोले गए, जिनसे निकली पानी की तेज धारा सैकड़ों जिंदगियों को रौंदते हुए गुजरी. प्रदेश के 80 बांध जब लबालब हो गए तब गेट खोले गए. बांधों से बड़ी मात्रा में अचानक पानी छोड़ने से हालात और बिगड़ गए.

आपदा में मानवीय कारण भी हैं प्रमुख

वैज्ञानिक माधव गाडगिल ने कहा है कि केरल में आई आपदा की वजह मानवीय भी है. उन्होंने कहा है कि अत्यधिक बारिश के अलावा केरल में पिछले कुछ सालों में हुआ विकास भी इस बाढ़ की विभीषिका को न झेल पाने की वजह बना है. उनका कहना है कि अगर समुचित कदम उठाए गए होते तो यह देखने को नहीं मिलता.

गाडगिल समिति की अनदेखी

भारत में गुजरात और महाराष्ट्र की सीमा से शुरू होकर महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल के बाद कन्याकुमारी तक जाने वाली 1600 किलोमीटर लंबे इलाके को पश्चिमी घाट पर्वतीय श्रृंखला कहा जाता है. यहां के वन भारतीय मॉनसून की स्थिति को भी प्रभावित करते हैं. इस इलाके के पर्यावरण को लेकर केंद्र सरकार ने माधव गाडगिल समिति गठित की थी. इस समिति की रिपोर्ट 2011 तक आ गई थी, लेकिन यह जारी नहीं हो सकी.

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कस्तूरीरंगन कमेटी की रिपोर्ट

गाडगिल समिति का राज्यों द्वारा विरोध होने के बाद सरकार ने कस्तूरीरंगन समिति का गठन किया. इसने अप्रैल, 2013 में गाडगिल समिति पर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी. इसने गाडगिल समिति की कई सिफारिशों को बदल दिया था. गाडगिल समिति ने पश्चिमी घाटों को पारिस्थितिकी के लिए पूरी तरह संवेदनशील घोषित किया था और यहां पर सीमित खनन का पक्ष लिया था.

दोनों समिति की रिपोर्ट में था अंतर

गाडगिल समिति ने तो पूरे पश्चिमी घाट को ईको सेंसेटिव जोन (ईएसजेड) के तौर पर चिह्नित किया था, लेकिन कस्तूरीरंगन समिति ने इसकी तीन श्रेणियां बनाईं. कस्तूरीरंगन समिति ने ईएसजेड में पश्चिमी घाट के 37 प्रतिशत हिस्से को चिह्नित किया, जो करीब 60,000 हेक्टेयर का था और यह गाडगिल समिति के प्रस्तावित 1,37,000 हेक्टेयर से कम है.

काफी कठिन शर्तें थीं गाडगिल कमेटी की

गाडगिल समिति ने कृषि क्षेत्रों में कीटनाशकों और जीन संवर्धित बीजों के उपयोग पर रोक लगाने से लेकर पनबिजली परियोजनाओं को हतोत्साहित करने और वृक्षारोपण के बजाय  प्राकृतिक वानिकी को प्रोत्साहन देने की सिफारिशें की थीं. इसके अलावा 20,000 वर्ग मीटर से अधिक बड़ी इमारतों के निर्माण पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने की बात कही. पनबिजली परियोजनाओं के बारे में समिति ने नदियों में पर्याप्त जल प्रवाह और परियोजनाओं में अंतराल की भी कठिन शर्तें तय की थी.

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गाडगिल रिपोर्ट की अनदेखी पड़ी भारी

गाडगिल कमेटी ने कहा कि कैचमेंट एरिया में अतिक्रमण होने और वनों के कम होने से कई जलाशयों में सिल्ट जमा हो गई थी. डॉ. गाडगिल का कहना है कि इडुक्की बांध इसका उदाहरण है कि कैसे पूरे कैचमेंट एरिया में अतिक्रमण हो गया है. बता दें कि केरल में इसी बांध से अधिकतम तबाही फैली है. उन्होंने कहा है कि केरल के अलावा उत्तराखंड में हो रहा निर्माण चिंता का विषय है.

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