केरल सरकार ने नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर (NPR) की प्रक्रिया पर रोक लगा दी है. राज्य सरकार ने इसे लेकर गुरुवार को अधिकारियों को आदेश जारी करते हुए यह चेतावनी भी दी कि उन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी जो जनगणना के साथ एनपीआर का उल्लेख करेंगे.
केरल प्रशासन विभाग ने एनपीआर पर अपना रूख स्पष्ट करते हुए सभी डिस्टिक्ट कलेक्टरों को एक पत्र भेज दिया गया है. पत्र में बताया गया है कि सरकार ने राज्य में एनपीआर प्रक्रिया के संबंध में सभी गतिविधियों को रोक दिया है.
Kerala: General Administration Department Principal Secretary has written to all district collectors to ensure that National Population Register (NPR) process is not carried out and has warned of disciplinary action against officials if the government decision is not followed.
— ANI (@ANI) January 16, 2020
यह नोटिस उस समय जारी किया गया है जब कुछ जनगणना अधिकारी एनपीआर का उल्लेख कर रहे हैं, जबकि वे जनगणना से संबंधित संचार भेजते हैं. सरकार की ओर से कहा गया है कि यह सुनिश्चित किया जाए कि भविष्य में ऐसी कार्रवाइयों को दोहराया नहीं जाएगा, अन्यथा संबंधित अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी.
इस बीच नागरिकता संशोधन एक्ट (सीएए) और नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर (एनपीआर) को लेकर लोगों के मन में कई तरह के सवाल हैं. इन सवालों के बीच गृह मंत्रालय की ओर से कल बुधवार को कहा गया कि एनपीआर के दौरान किसी तरह का कागज या फिर बायोमेट्रिक जानकारी नहीं मांगी जाएगी. पश्चिम बंगाल, केरल समेत कई विपक्षी शासित राज्यों ने एनपीआर प्रक्रिया के दौरान कागजों की मांग पर सवाल खड़े किए थे.
एनपीआर को लेकर सवालों की लिस्ट
पीटीआई के मुताबिक, गृह मंत्रालय के सूत्रों ने कहा है कि एनपीआर को लेकर जल्द ही एक प्रश्नों की लिस्ट जारी की जाएगी . लेकिन गृह मंत्रालय की ओर से दावा किया जा रहा है कि इस प्रक्रिया में कोई सवाल नहीं पूछे जाएंगे.
हालांकि, इससे इतर सेंसस ऑफ इंडिया की वेबसाइट पर जो एनपीआर का डाटा उपलब्ध है उसमें इस बात की जानकारी मांगी गई है और बायोमेट्रिक का भी जिक्र है. ऐसे में कई तरह की शंकाएं अब भी हैं.
CAA मामले पर राज्यपाल नाराज
दूसरी ओर, नागरिकता संशोधन एक्ट (सीएए) के खिलाफ केरल की राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. लेकिन राज्य सरकार के इस फैसले से राज्यपाल आरिफ मुहम्मद खान नाराज हैं. उनका कहना है कि राज्य सरकार को इस तरह का फैसला लेने से पहले उनसे पूछना चाहिए था क्योंकि वह संवैधानिक तौर पर हेड हैं.
केरल की लेफ्ट सरकार पहले ही इस कानून के खिलाफ विधानसभा में प्रस्ताव पास कर चुकी है और अब उसने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया है.