जहां एक ओर केंद्र सरकार और राज्य सरकारों ने गंगा, युमना जैसी जीवनदायनीय नदियों पर हजारों कारोड़ों खर्च करने के बाद भी हालत बद से बदतर होते जा रहे हैं. ऐसे में केरल के 700 मजदूरों ने एक मरती हुई नदी में प्राण फूंक कर देश के सामने एक मिसाल पेश की है.
ड़डियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार केरल के अलापुझा जिले में स्थित कट्टमपरूर नदी बुधानूर गांव की जीवनरेखा थी. ये नदी 12 किलोमीटर लंबी थी और 100 फीट से अघिक चौड़ी हैं. उल्लूथी के अचंकोविल से होकर बुदनूर, कुटम्परूर, मन्नार और पांडानाद को पार करती हुई पत्तनमथिट्टा जिले के पास पाम्पा, नक्कडा में जा कर मिलती हैं. गांव का 25 हजार एकड़ धान के खेत की सिंचाई इस नदी पर निर्भर थी. स्थानीय कारोबारी नदी का माल ढुलाई के लिए भी करते थे. इन बड़ी नदियों का अतिरिक्त पानी कट्टमपरूर के रास्ते से निकल जाता था.
साल 2005 के आसपास इलाके के शहरीकरण और आधुनिक परिवहन के आगमन से नदी सिकुड़ने लगी. बचा खुचा कम होटल उद्योग और 2011 में नदी में नौका दौड़ प्रतियोगिता आयोजित की गई, तो नौकाएं इसकी जलकुंभियों में फंस गईं. बालू माफिया द्वारा अनवरत खनन और कूड़े के पटाव के कारण नदी की चौड़ाई सिकुड़कर 10-15 मीटर रह गई थी. स्थानीय निवासियों के विशाल कचरा से नदी से दूषित हो गई थी.
अलापुज़हा जिले के बुधनुर पंचायत ने पहल करते हुए नदी को साफ करने का फैसला लिया. दिसंबर 2016 में मनरेगा योजना के तहत नदी को पुनर्जीवित करने का फैसला में लिया गया. इसी साल नदी को पुर्नजीवीत करने का काम शुरू हुआ. पंचायत के अध्यक्ष एडवोकेट पी विश्वमभारा पनीकर ने बताया कि सात सौ मज़दूर, ज्यादातर महिलाएं, नदी को साफ करने के काम में लगाया था. करीब 3000 दिनों के बाद 12KM लंबी नदी में फिर से जीवित हो गई साथ ही साथ ये उन मजदूरों की मेहनत और लगन की जीत है.