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सबरीमाला मंदिर में महिलाओं की एंट्री हो या नहीं, SC कल सुनाएगा फैसला

सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को एक और ऐतिहासिक फैसला सुनाने जा रहा है. इस बार मामला केरल के प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर में महिलाओं की एंट्री से जुड़ा है. खास बात यह है कि इस मामले में केरल सरकार 4 बार अपना रुख बदलती रही है.

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सबरीमाला मंदिर (फाइल, एजेंसी)
सबरीमाला मंदिर (फाइल, एजेंसी)

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ऐतिहासिक फैसलों के लिहाज से यह हफ्ता बेहद खास रहा क्योंकि पिछले 2 दिनों में सुप्रीम कोर्ट ने कई अहम विषयों पर अपना सुप्रीम फैसला सुनाया. देश की सबसे बड़ी अदालत अब शुक्रवार को सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर अपना फैसला सुनाने जा रहा है.

पत्थनमथिट्टा जिले के पश्चिमी घाट की पहाड़ी पर स्थित सबरीमाला मंदिर प्रबंधन ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि 10 से 50 वर्ष की आयु तक की महिलाओं के प्रवेश पर इसलिए प्रतिबंध लगाया गया है क्योंकि मासिक धर्म के समय वे शुद्धता बनाए नहीं रख सकतीं.

सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश दिए जाने को लेकर लंबे समय से मांग उठती रही है, जिसका मंदिर प्रबंधन लगातार विरोध करता रहा है. एंट्री को लेकर मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली 5 सदस्यीय बेंच ने अगस्त में पूरी सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखा लिया था.

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इस मामले में 7 नवंबर, 2016 को केरल सरकार ने कोर्ट को सूचित किया था कि वह ऐतिहासिक सबरीमाला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश के पक्ष में है. शुरुआत में राज्य की तत्कालीन एलडीएफ सरकार ने 2007 में प्रगतिशील रूख अपनाते हुए मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की हिमायत की थी जिसे कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूडीएफ सरकार ने बदल दिया था.

यूडीएफ सरकार का कहना था कि वह 10 से 50 आयु वर्ग की महिलाओं का प्रवेश वर्जित करने के पक्ष में है क्योंकि यह परपंरा अति प्राचीन काल से चली आ रही है. बाद में केरल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखते हुए एक बार फिर मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर सहमति जताई. राज्य सरकार का कहना था कि सरकार हर उम्र की महिलाओं के प्रवेश के समर्थन में है.

तब राज्य सरकार के इस स्टैंड पर चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने सवाल उठाते हुए कहा था कि आपने चौथी बार स्टैंड बदला. जस्टिस रोहिंगटन ने कहा कि केरल वक्त के साथ बदल रहा है. 2015 में केरल सरकार ने महिलाओं के प्रवेश का समर्थन किया था, लेकिन 2017 में उसने अपना रुख बदल दिया था. जिसके बाद अब फिर उसने प्रवेश देने पर सहमति जताई.

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जुलाई में सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश संबंधी जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान त्रावणकोर देवासम बोर्ड की तरफ से दलील दी गई थी कि जब मस्जिदों में भी महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी है. तब सिर्फ एक जनहित याचिका के आधार पर बिना किसी ठोस दलील के सिर्फ मंदिर मामले पर ही सुनवाई क्यों हो रही है क्योंकि समानता के अधिकार के उल्लंघन का मामला मस्जिदों पर भी लागू होता है.

तब त्रावणकोर देवासम बोर्ड के वकील अभिषेक मनु सिंघवी की इस दलील के साथ ही सुप्रीम कोर्ट में सुने जा रहे सबरीमाला के अय्यप्पा स्वामी के मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी के मामले में एक नया मोड़ आ गया था. त्रावणकोर देवासम बोर्ड की तरफ से कहा गया कि रजस्वला अवस्था के दौरान महिलाओं की बात तो दूर, कई मस्जिदों में भी तो महिलाओं को जाने की इजाजत भी नहीं है.

सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने त्रावणकोर देवासम बोर्ड से कहा है कि बोर्ड साबित करे कि यह पाबंदी धार्मिक विश्वास का अभिन्न अंग है. साथ ही उसने यह भी पूछा कि क्या सिर्फ रजस्वला अवस्था की वजह से महिलाएं मलिन हो जाती हैं? लिहाजा महिलाओं के मंदिर में दाखिले पर ही पाबंदी लगा देना उनके संवैधानिक अधिकारों और गरिमा के खिलाफ है.

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सुप्रीम कोर्ट ने बोर्ड को आड़े हाथों लेते हुए यह भी पूछा कि केरल हाईकोर्ट में तो यह कहा गया था कि सबरीमाला के देव अय्यप्पा के मंदिर में सालाना उत्सव के शुरुआती 5 दिनों में महिलाओं के दाखिल होने की छूट है. मसलन कोई पाबंदी नहीं. तो अब यहां विरोधाभासी बयान क्यों दिया जा रहा है?

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