scorecardresearch
 

खानाखराब: जुबां पे लागा, लागा रे नमक रिस्क का

मंदी, महंगाई के जालिम जख्मों पर नमक का छिड़काव कैसा लगता है, यह पूरब में रहने वालों को हाल में पता चला. एक अफवाह ने नमक को सोना बना दिया और लोगों की नींद उड़ गई. कालाबाजारी शुरू हो गई. सरकारी अमला चिल्लाता रह गया और चुटकी भर नमक खाने वाले बोरियां खरीदने लगे.

Advertisement
X
हाल ही में उड़ी थी 100 रुपये किलो नमक बिकने की अफवाह
हाल ही में उड़ी थी 100 रुपये किलो नमक बिकने की अफवाह

थी खबर गर्म कि ग़ालिब के उड़ेंगे पुर्जे,
देखने हम भी गए थे पर तमाशा न हुआ!

Advertisement

लवण से ही लावण्य आता है चेहरे पर. जवान बाजुओं में फड़कती मछलियां जब मैदान को स्वेद अर्पित करती हैं तो जवान मैदान मार लेते हैं. गर्मी में किसान ताम्बा हो जाता है, उसके चेहरे से टपकती पसीने की बूंदें मिट्टी में मिल जाती हैं. उसी नमक से देश की धरती पसीज जाती है और लहलहाती है. नमक आजादी है. गांधी जी की लाठी है. राजीव गांधी ने यह लाठी नेपाल को दिखाई थी, जब रिश्तों में खटास आई थी. नमक के बिना जीना असंभव नहीं है, पर जीने का रस संभव नहीं है. रसायन का रस है. तत्त्व होने का महत्त्व नहीं हैं. सोडियम या क्लोरीन तत्त्व हैं पर सोडियम क्लोराइड का महत्त्व है. नमक इश्क का. नमकीन बातें. किस्से नमकीन. देश का नमक खाते हैं तभी तो गोली भी खाते हैं. कभी कभी जख्म पर नमक भी लगाते हैं.

Advertisement

मंदी, महंगाई के जालिम जख्मों पर नमक का छिड़काव कैसा लगता है, यह पूरब में रहने वालों को हाल में पता चला. एक अफवाह ने नमक को सोना बना दिया और लोगों की नींद उड़ गई. कालाबाजारी शुरू हो गई. सरकारी अमला चिल्लाता रह गया और चुटकी भर नमक खाने वाले बोरियां खरीदने लगे. 100 रुपए किलो. हीनभावना से प्याज और पेट्रोल तक का ह्रास हो गया और नमक खास हो गया. दुनिया के तीसरे सबसे बड़े नमक उत्पादक देश में नमक पर उत्पात. अफवाह के घोड़े पर, हकीकत को रौंदता हुआ. जब तक सच की जीत हुई, झूठ ने काफी कमाई कर ली थी. हम भारत के लोग अपने 'सेंस ऑफ ह्यूमर' की कमी को अपने 'सेंस ऑफ रयूमर' से पूरी कर लेते हैं.

गणेशजी दूध पीने लगे तो दूध की नालियां बहने लगीं. एक बंदर शहर के अंदर आया तो दिल्ली ने उसे मंकीमैन नाम दिया. देश की राजधानी के पढ़े-लिखे लोग रात भर लाठियां बजाने लगे. निर्दोष लोगों को मंकीमैन बता पीट-पीट कर लंगूर बना दिया. झारखंड में इसी साल एक युवा नेता जान से हाथ धो बैठे क्योंकि इलाके में अफवाह थी कि पीटने वाले गुंडे लाल बोलेरो में घूमते हैं. लाल बोलेरो दिखी, पीला कर दिया. आज तक किसी ने डायन नाम के जंतु को नहीं देखा पर आज भी घरों के आगे उसे रोकने के लिए पंजे का छाप मिल जाएगा. भगदड़ में होने वाली मौतों में दुनिया में हमारा कोई सानी नहीं. एक के पीछे दूसरे, दूसरे के पीछे तीसरे हम दौड़ पड़ते हैं सरपट मानो जंगल में जानवरों की रेस लग गई हो. लगभग हर भगदड़ के पीछे अफवाह. दतिया में पुल पर खड़े लोग नदी में कूद गए क्योंकि अफवाह फैली कि पुल टूट रहा है.

Advertisement

सुन लिया, कूद गए. दंगे, फसाद की जड़ में भी अफवाह दुबकी होती है. पर अगले दंगे में, अगले भगदड़ में, पिछली अफ़वाह का जिक्र नहीं आता. अगली भगदड़, अगला दंगा हो जाता है.

झूठ के पांव नहीं होते, वह खड़ा नहीं रहता. झूठ के पंख होते हैं, वह उड़ता है. अफवाहों में. एक बीमारी है, तेजी से फैलती है. सच की दवा रामबाण है पर धीरे-धीरे काम करती है. संचार क्रांति आ गई तो सच को मोटरकार पर खाली सीट मिली तो उस पर झूठ सवारी कर लेता है. एसएमएस से अफवाह फैलती है, सच भी फैल सकता है. संचार पर रोक लगाया तो सत्य का संचार कैसे होगा, और खुली छूट दे दी तो झूठ तेजी से फैलेगा.

इस असमंजस का फायदा भी झूठ बांचने वालों को ही मिलता है क्योंकि सांच को आंच नहीं और जल्दी तो बिलकुल ही नहीं. सत्य जब तक देहरी से निकलता है, झूठ देहरादून में होता है. सच के साथ समस्या यही है. अंत में जीत उसी की होती है पर तब तक इतनी दुर्गत हो जाती है कि जीत का फल मीठा नहीं रहता. राम अयोध्या वापस आए पर 14 साल वनवास, पत्नी के अपहरण और रावण से युद्ध के बाद. आए भी तो सीता मैया को सुख नहीं मिला. पांडवों को कौरवों पर जीत तो मिल गई पर जो महाभारत मच गया, कि उसके बाद क्या मिला और क्या बच गया! सम्राट अशोक को सत्य का मार्ग दिखा पर तब तक कलिंग खून से काला पड़ गया था. हमको आजादी मिली पर कितनी कुर्बानी के बाद.

Advertisement

नमक हो, दूध हो, आशिक हुसैन हो या मंकीमैन हो, हम जागते जरूर हैं पर देर हो जाती है. सवाल नहीं करते कि ऐसा क्या हुआ कि नमक ऐसे दमकने लगा? कच्छ के रण में चमकती सफेदी चीनी कब से हो गई? आदमी पहले बंदर था, कैसे फिर से बन्दर हो गया? आशिक हुसैन की आशिकी दोस्ती भी हो सकती है. सारी दुनिया को चार कदमों में नापने वाले गणेशजी को दूध का टोटा क्यों होगा कि आप लोटा लिए मंदिर के सामने खड़े हैं? ये सब तब समझते हैं, जब खेल हो चुका होता है. हम खुद तमाशा होते हैं और अफसोस करते हैं कि तमाशा न हुआ, इतने तमाशों के बाद

Advertisement
Advertisement