कहने को आदमी के कई रूप होते हैं पर आकलन के लिए हमें मानना चाहिए कि शादीशुदा आदमी के तीन होते हैं. एक जब वह अकेले होता है, दूसरा दुकेले और तीसरा उसका सार्वजनिक रूप. इस हिसाब से, जो सिंगल होते हैं उनका दो ही रूप है. एक अकेले, दूसरा सार्वजनिक. राहुल गांधी जब बोलते हैं, सार्वजनिक ही होता है. भीड़ में जब आदमी बोले तो उसे संबोधित करना कहते हैं. एक नेता भाव आ जाता है, स्वाभाविक रूप से. पहली बार अकेले के इंटरव्यू ने देश के सामने एक बड़ा प्रश्न रख दिया.
भीड़ में कहते रहते थे प्रधानमंत्री पद की इच्छा नहीं, अभी पार्टी का काम देखना है. देश भी निश्चिंत था. कि अच्छा है, बबुआ पार्टी को मजबूत करने में लगे हैं क्योंकि अम्मा मनमोहन को चलाने में इतनी व्यस्त रहीं और पार्टी की दुर्गति हो गई. पार्टी को फिर से बनाना कोई खेल नहीं जब नारा तक चोरी हो चुका हो. अरविंद ने आम आदमी चुरा लिया अपनी पार्टी बना ली और अभी दिल्ली में नारे को सच करने के लिए कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ है. बाकी देश में हाथ की सफाई हो रही है.
ये टीवी वाले दिन रात बहस में लगे रहते हैं कि क्या राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया जाएगा. आज कार्यसमिति ने क्लियर कर दिया कि नहीं. कोई जरूरत ही नहीं है. तुम्हें अठखेलियां सूझी हैं, वो तैयार बैठे हैं. अरे भैया, उनका रिकॉर्ड है सबसे लंबे समय के लिए प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार होने का. कन्फर्म नहीं है पर जब उनका जन्म हुआ तब नर्स ने यही कहा होगा कि मुबारक हो आपके घर प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार हुआ है.
अब देश को लग रहा है कि ये चीटिंग है. अब जब दूसरों को तौल रहे थे, मूड बन रहा था तभी बबुआ बोल पड़े. वह क्या चाहते हैं, ये राज नहीं रह गया है. कार्यसमिति ने कह दिया कि कहने की जरूरत नहीं है. खाज मिट गई है तो देश सिर खुजा रहा है. उन्होंने बड़ी जिम्मेदारी डाल दी. ये कहके कि वे तैयार हैं. अब अगर देश तैयार नहीं है तो इसमें देश की विफलता है, राहुल की नहीं. क्योंकि राहुल और विफलता. ऐसा नहीं चलता. किसी कांग्रेसी से पूछ लीजिए. आखिर राहुल के युवा कंधों पर न सिर्फ कांग्रेस को नेतृत्व देने का भार है, बल्कि कांग्रेस के अगले नेता के जन्म में भी अपना रोल निभाना है. पार्टी राहुल पर आकर ख़त्म नहीं हो जाएगी. खानदान को भी योगदान देना है.