प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खादी को एक ऐसे खांटी भारतीय ब्रांड के रूप में दुनिया के सामने पेश करना चाहते हैं, जिसका कोई सानी न हो. लेकिन देश में खादी का ठेकेदार खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआइसी) क्या इसके लिए तैयार है? खादी को ब्रांड के रूप में विकसित करना तो दूर, आयोग ने पिछले एक दशक से ट्रेडमार्क रजिस्ट्रेशन और नवीनीकरण में ऐसी लापरवाही दिखाई है कि खादी का ब्रांड सिकुड़ता ही गया. ट्रेडमार्क कार्यालय से प्राप्त दस्तावेजों के मुताबिक, आयोग के खादी से जुड़े 40 से ज्यादा ट्रेडमार्क पिछले 10 साल में रीन्यू न कराए जाने के कारण अपनी वैधता खो चुके हैं.
आलम यह है कि आज कनॉट प्लेस में खादी के सबसे भव्य शोरूम के बाहर ‘खादी-भारत, खादी-इंडिया’ का जो ट्रेडमार्क लगा है, उसकी वैधता भी खत्म हो चुकी है. यानी देश में खादी एक ऐसे चेहरे के साथ जी रही है, जो असल में अब उसका रह ही नहीं गया है. ट्रेडमार्क कार्यालय के दस्तावेज के मुताबिक, यह ट्रेडमार्क लेबल 7 मार्च, 2013 तक के लिए ही रीन्यू किया गया था. इसके बाद इसे दंडशुल्क देकर रीन्यू कराने की अवधि भी 7 मार्च, 2014 को खत्म हो चुकी है. ट्रेडमार्क कार्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘‘खादी ग्रामोद्योग भले ही इस लेबल का इस्तेमाल कर रहा है, लेकिन कानूनी रूप से फिलहाल इस पर उसका पूर्ण अधिकार नहीं है. आयोग को यह ट्रेडमार्क बचाए रहने के लिए अब वैसी ही कवायद करनी होगी, जैसी नया ट्रेडमार्क रजिस्टर कराने के लिए की जाती है.’’
आयोग के सीईओ तथा मध्यम और लघु उद्योग मंत्रालय के संयुक्त सचिव बी.एच. अनिल कुमार आयोग का बचाव करते हुए कहते हैं, ‘‘खादी, खादी इंडिया, सर्वोदय और कुटीर ट्रेडमार्क रीन्यू करा लिए गए हैं. वहीं ‘खादी भारत’ और देसी आहार के नवीनीकरण की अर्जी दी गई है.’’ वे यह बात स्वीकार करते हैं कि ‘खादी इंडिया’ के रीन्यूवल के बावजूद ‘खादी भारत’ के अभी तक रीन्यू न होने के कारण आयोग का फ्लैगशिप लोगो तकनीकी रूप से अधूरा है.
हालात खराब हैं, इस बात को सरकार भी स्वीकार कर रही है. 26 नवंबर, 2014 को लोकसभा में एक सवाल के जवाब में एमएसएमई राज्यमंत्री गिरिराज सिंह ने स्वीकार किया कि केवीआइसी के 37 ट्रेडमार्क अब अस्तित्व में नहीं हैं. अगर अंतरराष्ट्रीय फलक पर नजर डालें तो दुनिया में यह ब्रांड ले जाने का ख्वाब पहले ही टूट चुका है. जर्मनी की कंपनी ‘खादी नेचरप्रोडक्ट’ पूरे यूरोप में खादी ट्रेडमार्क से अपने हर्बल उत्पाद बेच रही है. कंपनी ने अपना ट्रेडमार्क स्पेन के हारमोनाइजेशन इन द इंटरनल मार्केट कार्यालय में रजिस्टर कराया है. इसके बाद कंपनी को पूरे यूरोप में खादी ब्रांड के तहत उत्पाद बेचने के एक्सक्लूसिव अधिकार हासिल हो गए हैं.
क्या अब सरकार पिछले 10 साल में आयोग का संचालन करने वाले लोगों से पूछेगी कि आखिर वे क्यों सोते रहे और बापू की खादी कैसे पिछड़ती गई. कहीं यह लापरवाही इसीलिए तो नहीं बरती गई कि निजी कंपनियों को इसका फायदा मिले?