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खैरलांजी: दोषियों की सजा फांसी से उम्रकैद में बदली

बंबई उच्च न्यायालय ने खरलांजी दलित हत्याकांड मामले के छह दोषियों की मृत्युदंड की सजा को उम्र कैद की सजा में तब्दील कर दिया है जो 25 साल की होगी. मामले में उम्र कैद की सजा काट रहे दो अन्य दोषियों की सजा भी 25 साल कर दी गई है.

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बंबई उच्च न्यायालय ने खैरलांजी दलित हत्याकांड मामले के छह दोषियों की मृत्युदंड की सजा को उम्र कैद की सजा में तब्दील कर दिया है जो 25 साल की होगी. मामले में उम्र कैद की सजा काट रहे दो अन्य दोषियों की सजा भी 25 साल कर दी गई है.

उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ के न्यायमूर्ति ए पी लवांदे ने कहा कि सभी आठों दोषियों को 25 साल की सजा काटनी होगी. इस सजा में वह अवधि भी शामिल होगी जो ये दोषी जेल में बिता चुके हैं.

खरलांजी गांव में 29 सितंबर 2006 को उत्तेजित भीड़ ने एक दलित परिवार के चार सदस्यों की नृशंस हत्या कर दी थी. मृतकों के नाम सुरेखा भैयालाल भौतमांगे, उसकी बेटी प्रियंका, दो पुत्र सुधीर और रोशन थे.

यह फैसला न्यायमूर्ति लवांदे ने सुनाया और न्यायमूर्ति आर सी चव्हाण वीडियो कान्फ्रेंस के माध्यम से उनके साथ थे. वह किसी काम के सिलसिले में मुंबई उच्च न्यायालय गए थे. यह पहला अवसर है जब किसी खंडपीठ ने वीडियो कान्फ्रेंस के माध्यम से फैसला सुनाया. न्यायमूर्ति ने बचाव पक्ष और अभियोजन पक्ष की अपीलें खारिज कर दीं.

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सीबीआई ने उम्र कैद की सजा काट रहे दो दोषियों की सजा की अवधि बढ़ाने की अपील की थी. दोषियों ने भंडारा की निचली अदालत द्वारा दी गई सजा के खिलाफ अपील भी की थी. निचली अदालत ने छह दोषियों को मृत्युदंड की सजा सुनाई थी. उच्च न्यायालय को इस सजा की पुष्टि करनी थी.
पीठ ने 29 मार्च से नियमित आधार पर मामले की सुनवाई की और गर्मी की छुट्टियों से पहले फैसला सुरक्षित रख लिया था. मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए उच्च न्यायालय के आसपास कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की गई थी.

निचली अदालत ने 24 सितंबर 2008 को छह दोषियों को मृत्युदंड की और दो दोषियों को उम्र कैद की सजा सुनाई थी.

जिन दोषियों को मृत्युदंड की सजा सुनाई गई थी उनके नाम सकरू बिन्जेवार, रामू धांडे, शत्रुघ्न धांडे, विश्वनाथ धांडे, जगदीश मांडलेकर और प्रभाकर मांडलेकर हैं. उम्र कैद की सजा काट रहे जिन दोषियों की सजा 25 वर्ष की गई है उनके नाम गोपाल बिन्जेवार और शिशुपाल धांडे हैं.

सीबीआई ने अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निरोधक अधिनियम के तहत आठ लोगों को बरी किए जाने के खिलाफ भी अपील की थी. एजेंसी का तर्क था कि मृतक खरलांजी के एक दलित परिवार से संबद्ध थे.

बहरहाल, उच्च न्यायालय ने सीबीआई की अपील पर विचार नहीं किया और अत्याचार निरोधक अधिनियम के तहत आरोप हटा लेने के निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा.

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सीबीआई के वकील एजाज खान ने दो दोषियों की उम्र कैद की सजा बढ़ाने की मांग की थी . उनका तर्क था कि निचली अदालत को उन सबूतों पर विचार करना चाहिए था जो सुरेखा और प्रियंका के साथ यौन र्दुव्‍यवहार किए जाने का संकेत देते हैं.

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