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खानाखराब: लहू लानत है एलान-ए-जंग होने तक

भारत अपनी पश्चिमी सीमा पर युद्ध लड़ रहा है. एक महीने से निरंतर पचासों जगहों पर गोली और गोलाबारी ज़ारी है. हमारे सैनिक शहीद हो रहे हैं, हमने कई दुश्मन भी मारे हैं. सब ख्वामख्वाह क्योंकि हम युद्ध को युद्ध नहीं कहते जब तक युद्ध की औपचारिक घोषणा नहीं हो जाए.

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भारत अपनी पश्चिमी सीमा पर युद्ध लड़ रहा है. एक महीने से निरंतर पचासों जगहों पर गोली और गोलाबारी ज़ारी है. हमारे सैनिक शहीद हो रहे हैं, हमने कई दुश्मन भी मारे हैं. सब ख्वामख्वाह क्योंकि हम युद्ध को युद्ध नहीं कहते जब तक युद्ध की औपचारिक घोषणा नहीं हो जाए. बिना घोषणा होना तो होना भी नहीं है. मोदी जी बीजेपी में कतई कद्दावर हो जाएं, अाडवाणी जी की वाणी का खराश उदास उस दिन हुआ जिस दिन इसकी औपचारिक घोषणा हुई. बच्चे ने जनम लिया, किलकारी भी सुनी पर नोटिस तभी लेंगे जब कोई थाली खड़काएगा. पुल बन के तैयार है, लोग आ-जा भी रहे हैं पर उसे खुला तभी माना जाएगा जब मंत्री जी फीता काटेंगे.

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भयंकर सूखे में भूखे किसान की पेट-पीठ एक होकर मदद को चिल्लाते रहें पर सरकार जब तक जिले को सूखाग्रस्त घोषित ना कर दे राहत की रसद रसीद नहीं होती. गर्दन तक पानी में सरकारी अमला बाढ़ग्रस्त घोषित होने का इंतज़ार करता है. गरीबी की रेखा है, इसके नीचे आइए. जाति प्रमाणपत्र भी साथ लाइए. कायदे-कानून का हिसाब है, चीख-ओ-पुकार का जवाब है कि आते हैं, बस घोषणा हो जाने दो. महंगाई दर की घोषणा होती है, जिसमें महंगाई बढ़ती भी है और घटती भी. हकीकत में किसी ने घटते नहीं देखा पर हक़ीक़त से औपचारिकता को लेना क्या और देना क्या.

मुंह औपचारिक है उसमें राम रहते हैं, बगल अनौपचारिक है, वहां छुरी का निवास है. औपचारिक से फायदा तो राम जानें, पर छुरी की धार से नुकसान होता ही है. एक जब तक हमको कोई औपचारिक रूप से नहीं काटता, हम बहते खून को भी ज़ख्म मानने से इनकार करते हैं. शरीफ़ के प्रधानमंत्री बनने पर हम औपचारिक तौर पर बड़े गदगद हुए. हमारे अग्रिम पंक्ति ने बयान दिए कि एक लोकतान्त्रिक और सशक्त पाकिस्तान भारत के हित में है. अरे भैया, लोकतान्त्रिक और सशक्त पाकिस्तान तो पाकिस्तान के हित में होना चाहिए, पर हक़ीक़त से औपचारिकता को लेना क्या और देना क्या. अगर आपका दुश्मन सशक्त होता है और आपको उसमें आपका हित नज़र आता है तो नज़र की कमजोरी का इलाज करवाइए. छः दशकों से आपके बालू के शांतिस्तूप भसक रहे हैं और आप एक कबूतर कांख में लिए ठसक रहे हैं.

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रिश्ते की डोर तार-तार है पर औपचारिक तौर पर तोड़ना नहीं चाहते. कारगिल भी औपचारिक तौर पर संघर्ष ही रहा. युद्ध कहते किसको हैं? लड़ने को या लड़ने की घोषणा को. माना कि उसके पास भी बम है पर लड़ाइयां बम से नहीं, दम से जीती जाती हैं. दुश्मन में दम नहीं, ख़म है और उसको ये भरम है कि उसने आपका दम आजमा लिया है. हर नश्तर के बाद आप चिचियाएंगे, धमकाएंगे और जब जख्म भरना शुरू हो जाएगा तो फिर हाथ मिलाएंगे. ये भरम बेवज़ह नहीं है. बीस सालों में उसने यही देखा है. ये भरम बम से नहीं, दम से टूटेगा. औपचारिक घोषणा करनी पड़ेगी कि हमारे नहीं का मतलब नहीं ही होता है.

हाफ़िज़ सईद तुम्हें अज़ीज़ है तो खुदा हाफ़िज़. जब तक तुम्हारी आदतें नहीं बदलती, चूल्हा-चौका अलग. आना-जाना बंद. खाना-खिलाना बंद. खेलना-गाना बंद, दिखावे का दोस्ताना बंद. वे सारे मुल्क जो हमारे पड़ोसी से रिश्ता रखेंगे उनसे यह सीधा संवाद कि या उसकी सुनो, या हमको चुनो. भारत सबसे बड़ा बाज़ार होने का दम भरता है पर कभी उस दम का उपयोग नहीं करता. औपचारिक तौर पर दुनिया को बताना पड़ेगा कि हमारे दुश्मन से रिश्ता रखेंगे तो हमारे रिश्ते में खटास का एक पुट आएगा, जोरन दूध में जाएगा. और चीज़ एक बार खट्टी हो जाए, तो उसे खराब होने में देर नहीं लगती.

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पर करें कैसे? औपचारिक तौर पर हम दुश्मन ही नहीं हैं. घोषणा जो नहीं हुई. बाइबल की लाइन अटलजी दुहरा गए कि हम दोस्त चुन सकते हैं, पड़ोसी नहीं. सही है. पर बदकिस्मती यही है कि ऐसा पड़ोसी मिला है. पड़ोसी को दोस्त बनाना ज़रूरी नहीं है. दिल्ली-मुंबई-पटना-रांची में लोग अपने पड़ोसी को नहीं जानते पर संचार और यातायात इतना अच्छा है कि ज़रुरत पड़ने पर दोस्त आसपास होते हैं. पड़ोसी अगर मित्र हो तो सोने पर सुहागा. पर सुहागे के चक्कर में सोने को अभागा ही लुटाता है.

उनके पास जो बहुतायत में है, वह वही निर्यात करता है फिर भी हमको शिकायत है कि वह हमें मोस्ट-प्रेफर्ड नेशन का दर्ज़ा नहीं देता. पाकिस्तान के पास देने को है क्या आतंक के सिवा? बांग्लादेश से ज़मीन की अदलाबदली पर समझौता हो गया है, दस्तख़त नहीं होने से रिश्ते पर खतरा है. नेपाल अभी भी चीन की गोद में नहीं बैठा पर हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे, तो उठ बैठेगा इक दिन. अपने अच्छे पड़ोसियों और दुनिया के दोस्तों के लिए वक़्त ही नहीं है क्योंकि हम उलझे हुए हैं एक पड़ोसी को सुलझाने में 65 साल से. हमसे उलझता रहता है, हम उसे समझाते रहते हैं और समझौते करते हैं. नासमझ आग लगाता है, हम बुझाते हैं पर हमको बुझाता नहीं कि इतनी लगन और मेहनत कहीं और लगाया होता तो कम-अज़-कम जाया ना होता.

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