किसी ज़माने में ज़माना ख़राब था तो पंकज उधास रेडियो पर बेनकाब नहीं निकलने की नसीहत देते थे. अभी ज़माना इतना खराब है कि नकाब बेमानी है और रुआब खतरे में. रेडियो-टीवी पर कीचड़ ही फीचर है. आम आदमी ने पार्टी बना ली तो ख़ास आदमी खतरे में है. ख़ास आदमी की खुन्नस से आम आदमी खतरे में है. अन्ना कहते रहे कजरी की कोठरी में मत घुसियो, केजरीवाल ने एक ना सुनी. कोठरिया से चढ़कर अटरिया पे बैठे हैं पर संवरिया के दामन पर दाग तो लागा ही. झाड़ू से दिल्ली को भले ही बुहार लें पर राजनीति में आने के बाद आप पार्टी ज़्यादा हैं और आम आदमी कम. आम आदमी तो वोटर है, जिसको और भी ग़म हैं ज़माने में सियासत के सिवा. अन्ना अनशन पे बैठे हैं रालेगान सिद्धि में, क्योंकि दिल्ली की दलगत दलदल में धंसे तो फंसे. पोलिंग का पोल खुल चुका है. कहते हैं कीचड़ में कमल खिलेगा. मर्ज़ी है आपकी, आप जो भी खिलाएं. कमल खिलता है, मुरझाता है, फिर खिल जाता है. टेम्पररी है. कीचड़ परमानेंट है, स्थाई है. 66 साल में हमने ये दुर्गत बनाई है. ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर. धर्मनिरपेक्ष, पंथनिरपेक्ष, वर्णनिरपेक्ष कीचड़.
भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान केंद्र के बड़े वैज्ञानिक नम्बीनारायणन पर देशद्रोह का मामला झूठा निकला. पर जो अंतरिक्ष में उपग्रह भेजते थे वह जेल भेजे गए, नौकरी गई, नाम गया और जीवन भर का काम गया. इन्साफ देर आयद पर दुरुस्त तो कुछ नहीं आयद. दाग अच्छे होते हैं विज्ञापनों में ही. असल ज़िन्दगी में दाग डिटर्जेंट से नहीं धुलते. अगर धुल भी जाएं धुलते-धुलते तो दामन दामन नहीं रहता. जॉर्ज फर्नांडिस की बेदाग़ खद्दड़ पर छींटा पड़ा तो उस कद्दावर का कद सदचाक हो गया. ताबूत की आखिरी कील तो भ्रम है, पहली का अर्थ ही अर्थी है. तहलका ने भाजपा के लक्ष्मण को चौदह साल का वनवास दिया. भाजपा के एक राम ने तहलका में निवेश भी किया. पार्टी पर जो दाग लगा उसे धोने की पुरजोर कोशिश हुई. इंडिया शाइनिंग की चमकार मगर झूठी थी. दाग गहरे थे. उसके बाद फिर दिल्ली में कमल नहीं खिला. पर यूपीए के पंद्रह सालों में कीचड़ इतना गहरा और उर्वर हो चुका है कि अब खिल जाए तो ताज्जुब नहीं होगा.
आज तहलका के दामन पर जो कीचड़ है, उसे गैरों ने नहीं उछाला. तहलका की तह में जो कीचड़ था वही सतह पर आया है. अब तेजपाल जितना चाहे टीनोपाल लगा लें. कीचड़ स्थाई है. और उनकी अपनी कमाई है. 2-जी, कोयले और कॉमनवेल्थ के आरोप अभी अदालत में साबित नहीं हुए. कीचड़ को सबूत की दरकार नहीं. आरोप ही हाथ के कंगन हैं, आरसी क्या चीज़ है? अदालत तो जब देती है तब सज़ा देती है. कीचड़ आजीवन कारावास है. एक बार आरोपों की गिरफ्त में आ गए तो गए. राजद के लालू बिरसा मुंडा जेल की जद से बाहर आ ही जाएंगे, क्योंकि जेल में जो रास्ता जाने का है, वही आने का भी. पर चारे की चिपचिपाहट कहीं नहीं जाएगी. दो दशकों तक बाहर रहे तो कौन सा मिटा पाए? महीनों में छूट जाएंगे होंगे तो कौन सा छुड़ा लेंगे? कांग्रेस को चौरासी कोसता ही रहेगा, चौरासी साल बाद भी. नरेंद्र मोदी के पौबारह हैं पर ग्यारह सालों से एक कीचड़ उनकी पीठ में चिपका है और हर शुभ मुहूरत पर उनकी सूरत पर चढ़ आता है.
अदालत के फैसले आपको बरी कर सकते हैं, पर धो नहीं सकते. आपके बनाए आयोग आपकी चिट को क्लीन बता सकते हैं, पर इमेज को क्लीन चिट देने वाला आयोग अभी तक बना ही नहीं. मैल भले मायाजाल हो पर मुखड़ा तो मलिन हो ही जाता है. आत्मा की कोरी चुनरिया कचोटती भी है, पर सुनता कौन है. इस चोट का, इस कचोट का परमात्मा कुछ नहीं कर पाए. सीता की पवित्रता पर प्रश्न उठा तो पुरुषोत्तम की मर्यादा पर चिन्ह लगा गया. सीता ने धरती की छाती में उत्तर ढूँढा. राम की गंगा भी मैली हो गई. हिमालय से अमृत समेटे हरिद्वार से निकल कर पौराणिक गंगा जब वास्तविकता के धरातल पर उतरती है तो उसपर नया रंग चढ़ता है. समुद्र तक जाते-जाते उसका पानी कीटाणुओं के लिए भी कालापानी हो जाता है.
कोई दीवार आपको अव्वल तो साफ़ दिखेगी नहीं. अगर दिखे तो गौर करने की ज़रुरत नहीं आपको उस पर बड़े, काले अक्षरों में लिखा मिलेगा कृपया इस दीवार को गन्दा ना करें. साफ़ रखने के लिए गन्दा करना पड़ता है. काजल का टीका और क्या होता है? हर कोने में पीक है, बाकी सब ठीक है. जहां भी सफाई है, अस्थाई है. कीचड़ परमानेंट है, स्थाई है. आपके कपड़े टेफ्लॉन-युक्त भले हों, पर कीचड़ से बचने की गारंटी नहीं. जो पहले से लथपथ हैं उन पर कभी-कभी कीचड़ भी फबता है. अगर आप साफ़ हैं तो ज्यादा खतरे में हैं. क्योंकि दूध सी सफेदी पर कीचड़ खिलता खिलखिलाता है. जब भी निकलिएगा, संभल कर चलिएगा. आगे कीचड़ है. स्थाई है.