तुम पप्पू हो. तुम फेकू हो. तुम इटली से आई हो. तुम गुजरात के कसाई हो. तुम फासीवादी. तुम विलासीवादी. तेरे सारे स्कैम उजागर. तुम मौत के सौदागर. तुम लूटने को आतुर. तुम रावण, तुम भस्मासुर. तुम कोयले के अन्दर, तुम झाड़ पर चढ़े बन्दर. तुम हिटलर हो, तुम नटवर हो. प्रधानमंत्री चोर है. तेरा इतिहास-भूगोल कमज़ोर है.
ये भाषणों के कुछ अंश हैं, मर्म हैं, क्योंकि आपके मसले ठंडे पड़ गए, सियासत के मसले गर्म हैं. कीचड़ में कुश्ती है, धींगा-मुश्ती है. अभी जुबान से अदब तक नाता टूटा है, हमाम तक आते-आते सब नाते तमाम होंगे. समाज की सांस्कृतिक समृद्धि भाषा में झलकती है और जहां अधोगति का अंश होता है वहां शब्द छोटे होते जाते हैं, बड़ा अपभ्रंश होता है. हर तू-तू का एक मैं-मैं. हर डाल-डाल का पात-पात. तर्क का कुतर्क, स्वर्ग का नर्क, फर्क का बेड़ा गर्क.
तुमने सिखों को मारा. तुमने मुसलमानों को मारा. 2002 वर्सेस 1984 . तुम सांप्रदायिक हो का जवाब, तुम तुष्टिकरण करते हो. हमने इतनी सड़कें बनाईं, स्वर्णिम चतुर्भुज कौन लाया भइया. इधर से 2जी, कोयला, घोटाला ही घोटाला. उधर से तहलका, ताबूत वाले तेरा मुंह काला.
नानी याद दिला देंगे पर छठी का दूध. दूध में धुला तो कोई नहीं. 6 महीने हैं अभी जब हम दो बुराइओं में से कम बुरे को चुनेंगे पर तब तक ये तार-तार पैरहन किसके तन बचेगा? जैसी मार-धाड़, चीर-फाड़ जारी है, कुछ भी नहीं है जिसकी पर्दादारी है. हमारे लिए अच्छा है कि मुखौटे उतरें, पर यूं सरेआम बेपैरहन हो जाएंगे तो प्रधान बनकर भी वह दुनिया को क्या मुंह दिखाएंगे.
मियां मिट्ठू का मुंह हमारी बला से, पर मुसीबत तो यह है कि इस गर्द में देश का दर्द गुम हो गया है. गरीबी, भुखमरी, मंहगाई, रोज़गार, आतंरिक सुरक्षा, बाहर के दैत्य; सब अरसे से सुरसे सा मुंह बाए खड़े हैं. पांच-पांच साल मीठी आंच पर पकाते हैं, पर जब हमारी बारी आती है तो बहस का मुंह मोड़ जाते हैं. हम माथा पकड़ते हैं, वो दिल पे चोट करते हैं. मेरे पिताजी को मारा, मेरी दादी को मारा, मुझे भी मार डालेंगे. अरे भैया कौन मार डालेगा? मच्छर. मुझे मच्छर ने काटा मध्य प्रदेश में. सरदार पटेल तक को मुद्दा बना दिया. जो लोग चौदह साल एक साथ रहते थे, वह अब एक दूसरे को छू लें तो अशुद्ध हो जाते हैं. और इस बात पर शुद्ध बहस भी होती है.
गांधी मैदान में आतंकी आए, बम रख गए. जानें गईं पर इनकी भाषण का विषय उनका भाषण रहा. वक्त बचा तो राशन भी आएगा भाषण में, जैसे ईमान आ जाए प्रशासन में और पूरा ना आए. सब आगे बढ़ें, तरक्की करें इस का इंतजाम क्यों करें? हम दो रुपए किलो चावल देंगे. हम पांच रूपए में पेट भर देंगे. अंत्योदय योजना का आटा खाइए. ज़िन्दगी जिस हाल में है वैसे ही बिताइए. नेताजी के बच्चे ऑस्ट्रेलिया में पढ़ेंगे, आप के बच्चे मिड-डे मील खाकर जिन्दा हैं, शुक्र मनाइए. शिक्षा के स्तर पर मत जाइए. जो पारा शिक्षक हैं वो पूरे शिक्षक होंगे, जो आधे शिक्षक हैं अधूरे शिक्षक होंगे. खाली है तो भरती करेंगे, जो उपलब्ध है उसी से तो भरेंगे.
गरीबी हटाएंगे, भ्रष्टाचार मिटाएंगे , बेरोज़गारी घटाएंगे, आपके दादाजी को सुनाए थे, वही नारे आपको सुनाएंगे. क्योंकि मसले वही हैं, वहीं हैं. हल नहीं थे, नहीं हैं. अगर हल हो गए तो कल नए नारे कहां से लाएंगे. चलो, युवाओं को रिझाएंगे. इतने युवा दुनिया के किसी देश में नहीं. डेमोग्राफिक डिविडेंड नाम दिया इस संपत्ति को. स्किल, ट्रेनिंग, शिक्षा, सहायता जब देना था, तब भूल गए. अब जो एसेट था, लाइबिलिटी होने लगा है. हल ही नहीं, तो बैल किस काम को. बिना हल के बैल खेत खा जाते हैं, जोतते नहीं. जिसको इंजीनियर होना था वह क्रिमिनल हो रहा है, वकील बन सकता था वह नक्सल हो रहा है. कुछ यूं बेरोज़गारी का हल हो रहा है.
बिजली कौन लाया, फोन कौन लाया, ये सुनाते हैं! साठ साल में आप सड़क गांव तक लाए तो. देर लगी आने में तुमको शुक्र है फिर भी आए तो. हमको हमारा ही हक दे कर हमीं पर हक जताते हैं. हम ऐसे निरे सीधे कि एहसान तले आड़े हो जाते हैं.
अगर संतोष सबसे बड़ा धन है, तो हम दुनिया के कुबेर हैं. कछुए और खरगोश की दौड़ में कछुआ इसलिए जीता, क्योंकि कहानी कछुए ने लिखी थी. हम कहानियां लिख कर अपने गौरवशाली इतिहास को और गौरवशाली बताते हैं. चीन, अमेरिका, जापान, जर्मनी, ताइवान, थाईलैंड, श्रीलंका, सब का अपना अपना गौरवशाली इतिहास है फिर भी सब भविष्य को वर्तमान बना रहे हैं. हम भूत से पीछा नहीं छुड़ा पा रहे हैं. दो भूतों की लड़ाई में, झाड़-पात का निनान.
गुरु गोविन्द में काके लागूं पांय का हल तो बलिहारी गुरु आपने दिओ बताय. पर पहले-मैं-पहले-मैं वाले पप्पू और फेंकू में से पांच साल के लिए किसे सर कर लें ये गुरु छोड़िए, गोविन्द भी न बता पाएं.
So Sorry: राहुल की एसकेप वेलॉसिटी
So Sorry: मोदी का टूटा सपना