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खानाखराबः नवाज शरीफ के लिए इधर कुआं, उधर खाई

मोदी ने अपनी महफिल में मियां नवाज शरीफ को बुलाया तो कितनों के दिल के टुकड़े हो गए. दो टुकड़े. एक टुकड़ा दूसरे से मेल नहीं खाता. शिव सेना नेतृत्व को सांप सूंघ गया है. खुद के बहुमत वाले मोदी के अलाई रह के मलाई खानी है. लेकिन सेना के दड़बे में हड़कंप है.

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नवाज शरीफ
नवाज शरीफ

मोदी ने अपनी महफिल में मियां नवाज शरीफ को बुलाया तो कितनों के दिल के टुकड़े हो गए. दो टुकड़े. एक टुकड़ा दूसरे से मेल नहीं खाता. शिव सेना नेतृत्व को सांप सूंघ गया है. खुद के बहुमत वाले मोदी के अलाई रह के मलाई खानी है. लेकिन सेना के दड़बे में हड़कंप है. सैनिक बयान बांग रहे हैं. सख्तरुख मोदी पाकिस्तान पर मुलायम हुए तो उनके ना सही पर शरीफ के पुतले जला रहे हैं. कांग्रेस वाले ताने कस रहे हैं कि हम चिकन बिरयानी खिलाएं तो कमजोरी और आप खिलाएं तो पुरजोरी. पर खुल कर नहीं बोल रहे क्योंकि भाजपा कह सकती है आप करें तो रासलीला, हम करें तो छिनाल. घर तो घर, पड़ोसी के घर में भी मातम का माहौल है. मोदी के निमंत्रण पत्र में कूटनीति कूट-कूट कर भरी है. ये प्यार यार, दोधारी तलवार यार.

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कूटनीति की एक खासियत होती है. इसमें हारने वाले को जीत का एहसास होता है. नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने से पहले ही एक ऐसी कूटनीतिक चाल चली है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ना निगल पा रहे हैं, ना उगल पा रहे. वह जीत भी रहे हैं तो उनको हार का एहसास सुनिश्चित है. क्योंकि नवाज शरीफ के लिए ये विन-विन नहीं, लूज-लूज सिचुएशन है. दो दिन से रावलपिंडी-इस्लामाबाद में मंत्रणा चल रही है पर ये एक यंत्रणा कैसे झेलें. मोदी की महफिल में मसनद मिलेगा पर कुर्सी पर मोदी ही बैठेंगे. दरबार में नवरत्न की हैसियत मिले तो खुशी बहुत होती है पर बादशाह की जय हो गाना भी पड़ता है.

मोदी के निमंत्रण पर आते हैं तो भारत का प्रभुत्व स्वीकारते हैं. आते हैं तो पाकिस्तान के जनरलों को भी नाखुश करते हैं. नहीं आते तो दोस्ती के हाथ को नकारते हैं, अमन के लिए इस अनोखे पहल को ना करते हैं. दुनिया कहेगी मोदी ने दोस्ती का हाथ बढ़ाया, शरीफ को शराफत रास नहीं आई. अमन ने आशा को फिर ठुकराया. महफिल को नवाजते हैं तो इस शराफत पर घर में आफत. वैसे ये आयोजन शिखरवार्ता का नहीं है. पर जहां पाकिस्तान और भारत के शिखरपुरुष हों वहां हर वार्ता शिखरवार्ता हो जाती है. जनाब हाथ मिलाएंगे, भोज खाकर जाएंगे.

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इस बीच जब अकेले में मुलाकात होगी तो बात होगी. किसी को पता नहीं चलेगा पर इतना तो है ही कि मोदी उन्हें अटलजी की कही बताएंगे. हम दोस्त चुन सकते हैं, पड़ोसी नहीं. शरीफ भी सब कुछ करने का भरोसा दिलाएंगे. मोदी उस भरोसे की पीठ में घुसा छुरा दिखाएंगे. शरीफ आएंगे तो बिरयानी नहीं तो हलीम खा कर जाएंगे. हलाल का इंतजाम भी होगा, लेकिन मलाल का भी. मलाल इसलिए कि मोदी का रुख वही होगा जो उन्होंने अपनाया है. शरीफ का रुख भी वही होगा जो उन्होंने अपनाया था. फर्क इतना है कि भारतीय सेना भारत की सरकार के अख्तियार से बाहर नहीं है. पाकिस्तान की सेना शरीफ के बस में नहीं है. वाजपेयी बस लेकर गए, तब भी बेबस थे. अब भी बेबस हैं.

शरीफ को जनता ने चुना है. मोदी को भी जनता ने चुना है. मोदी को जनता ही हटा सकती है. शरीफ को सेना हटा सकती है. इसलिए वह न्यौता लपक कर आने की घोषणा नहीं कर रहे. नहीं आने की घोषणा करते हैं तो निश्चत है जगहंसाई. इधर कुआं, उधर खाई. कैसे आएं भाई. आना चाहते हैं पर रहता है एक खटका भी, कि जो हलाल है उसमें छुपा है झटका भी.

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