छोटे से पर्वतीय राज्य उत्तराखंड में सियासी दांवपेंच तथा उठापटक के बीच रविवार को कुल 808 दिनों के निर्वासन के बाद वरिष्ठ नेता भुवनचंद्र खंडूरी फिर से मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ने शनिवार को मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक के इस्तीफे की घोषणा करते हुए खंडूरी को फिर से सत्ता की बागडोर सौंपने का फैसला किया था.
विक्रम सम्वत के अनुसार रविवार को अनन्त चौदस का दिन है, जो खंडूरी के लिये शुभ साबित हुआ लेकिन निशंक के लिये मायूसी भरा है. एकाएक राजनीतिक घटनाक्रम में अति आत्मविश्वास से भरे मुख्यमंत्री निशंक को 806 दिनों के बाद सत्ता गंवानी पड़ी है. निशंक ने आखिरी समय तक पार्टी हाईकमान को अपनी स्थिति समझाने की कोशिश की लेकिन पहले से ही फैसला कर चुके पार्टी नेतृत्व ने उनकी एक नहीं सुनी और निशंक को इस्तीफा देने के लिये अपना फरमान सुना दिया.
खंडूरी को 25 जून 2009 को उस समय पद से इस्तीफा देना पड़ा था जब लोकसभा की पांचों सीटों पर पार्टी की करारी हार का ठीकरा उनके सिर पर फोड़ते हुए तत्कालीन पार्टी नेतृत्व ने उन्हें पद से हटने का निर्देश दिया था. खंडूरी ने तब पार्टी की हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए पद छोड़ दिया था और अपने निकटतम विश्वासपात्र निशंक को मुख्यमंत्री पद दिये जाने की सिफारिश की थी.
निशंक के इस्तीफा दिये जाने पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री भगतसिंह कोशियारी ने कहा कि जब खंडूरी को हटाया गया था तो वह कदम भी पार्टी का राज्य हित में था और आज जब उनको वापस लाया गया तो यह कदम भी राज्य हित में है. भाजपा ने हमेशा उत्तराखंड और इसकी जनता के हित में कार्य किया है और आगे भी कार्य करती रहेगी. उन्होंने कहा कि आगामी चुनावों में पार्टी भारी बहुमत के साथ सत्ता में वापसी करेगी. इस पर किसी को शक नहीं होना चाहिए. पार्टी ने राज्य गठन के लिये अपने कई कार्यकर्ताओं का बलिदान तक दिया है.
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बिशन सिंह चुफाल ने कहा कि पार्टी हाईकमान ने वर्ष 2012 के विधानसभा चुनावों को देखते हुए नेतृत्व परिवर्तन का फैसला किया है. वर्ष 2012 मिशन की कामयाबी के लिए पार्टी सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़कर सत्ता में वापसी करेगी.
दूसरी ओर मुख्य विपक्षी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष यशपाल आर्य ने कहा कि भाजपा ने मुख्यमंत्री बदलकर कांग्रेस द्वारा प्रदेश सरकार पर लगाये गये भ्रष्टाचार के आरोपों की पुष्टि कर दी है. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि पहले खंडूरी को क्यों हटाया गया और अब फिर दोबारा क्यों लाया गया, यह समझ से परे है.
निशंक को हटाये जाने की भाजपा में कोई खास प्रतिक्रिया नहीं हुई है लेकिन कुछ नेताओं ने जरूर अपनी नाराजगी प्रकट की है. खेल मंत्री खजान दास, दायित्वधारी सुभाष बड़थ्वाल तथा कुछ अन्य नेताओं ने निशंक को हटाये जाने पर अपनी नाराजगी व्यक्त की है.
उत्तराखंड गठन के बाद भाजपा ने सबसे पहले नित्यांनद स्वामी को मुख्यमंत्री बनाया लेकिन वह मात्र 11 महीने तक ही इस पद पर रहे. इसके बाद सत्ता की कमान भगत सिंह कोशियारी को सौंपी गयी. कोशियारी पांच महीने तक मुख्यमंत्री रहे लेकिन चुनाव में हार के बाद कांग्रेस सत्तासीन हुई थी. वर्ष 2007 में जब पार्टी दोबारा सत्ता में आई तो खंडूरी को मुख्यमंत्री बनाया गया. उनके बाद निशंक को और अब फिर खंडूरी को सत्ता सौंपी गयी है. इस तरह भाजपा के छह वर्ष के शासनकाल में खंडूरी पांचवे मुख्यमंत्री हैं.
नेतृत्व में परिवर्तन के बारे में देहरादून में कार्यरत शिक्षक किशोर सिंह बिष्ट ने कहा कि खंडूरी की साफसुथरी छवि का आगामी चुनावों में पार्टी को लाभ तो होगा लेकिन समय कम रहने के चलते यह कार्यकाल खंडूरी के लिए काफी भारी साबित होगा. उन्होंने कहा कि पार्टी अध्यक्ष स्वयं मान चुके हैं कि निशंक पर कोई आरोप नही था. ऐसे में उनको आनन फानन में हटाये जाने का फैसला कई सवाल खड़े करेगा.
सामाजिक कार्यकर्ता पंकज चौहान ने कहा कि निशंक को हटाकर पार्टी ने विपक्ष को एक नया मुद्दा दे दिया है. हालांकि पार्टी को खंडूरी के अनुभव का लाभ मिलेगा लेकिन खुद खंडूरी के लिये यह कार्यकाल अत्यन्त जोखिम भरा होगा. पार्टी नेतृत्व ने उन्हें ऐसे समय में जिम्मेदारी सौंपी है जब पूरे देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों में चेतना जागृत हुई है.
खंडूरी की पत्नी अरुणा खंडूरी ने पार्टी नेतृत्व के फैसले पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि यह सच्चाई और ईमानदारी की जीत है. हाल ही में भाजपा को छोडकर उत्तराखंड रक्षा मंच का गठन करने वाले पूर्व सांसद टी पी एस रावत ने कहा है कि निशंक को हटाया जाना मंच की पहली जीत है.