सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि महिलाएं क्या पहने क्या नहीं, मोबाईल का इस्तेमाल करें या नहीं, इस बाबत फरमान जारी करने का हक किसी को नहीं.
सुप्रीम कोर्ट ने ये संदेश खाप पंचायतों के लिए और खाप पंचायतों के बेतुके फैसलों को नज़रअंदाज़ करने वाली पुलिस को दिए हैं. ऑनर किलिंग पर दायर जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने खाप पंचायतों को भी अपना पक्ष रखने के लिए मौहलत दे दी.
देश की सबसे बड़ी अदालत में ऑनर किलिंग का मामला, खचाखच भरा कोर्ट, उत्तर प्रदेश और हरियाणा के कुछ जिलों के आला पुलिस अफसर. आपको लग रहा होगा कि पुलिस और खाप पंचायतों के बीच जमकर तू-तू मैं-मैं हुई होगी लेकिन नहीं, खाप पंचायतों को इस कदर पुलिस क्लीन चिट देती नजर आई कि यूपी एक आला पुलिस अफसर तो कह बैठे कि खाप के ज्यादातर फरमान सकारात्मक हैं, जिस पर जस्टिस आफताब आलम और जस्टिस रंजना देसाई की बेंच ने कहा कि हरियाणा और मेरठ के पुलिस अफसर खाप पंजायतों को सर्टिफिकेट देने के लिए उतावले हैं. महिलाएं क्या पहनें, मोबाईल फोन का इस्तेमाल न करें, ये फरमान कोई कैसे जारी कर सकता है? आपको नहीं लगता ये कानून का उल्लंघन है, या फिर आप इन मुद्दों को अहमियत देते ही नहीं?
उधर खाप पंचायतों ने कोर्ट में दावा किया कि उन्होंने हत्या के कोई फरमान जारी नहीं किये वो तो बस सगोत्र विवाह के खिलाफ हैं और उनके खिलाफ नफरत पूरी तरह से मिडिया का करा धरा है लेकिन केंद्र सरकार की तरफ से पेश हुई एडिश्नल सॉलिसिटर जनरल इंदिरा जयसिंह ने कोर्ट में दो टूक कहा कि खाप पंचायत समानांनतर अदालतें चलाती हैं और हुक्म की तामील न होने पर अक्सर हुक्का पानी बंद करने के फैसले सुनाती हैं जो कि ऑनर किलिंग की सबसे बड़ी वजह है.
बहरहाल सुप्रीम कोर्ट ने खाप पंचायतों को 18 फरवरी तक अपना पक्ष रखने की मौहलत दे दी है. सुप्रीम कोर्ट इस मामले की अगली सुनवाई 25 फरवरी को करेगा.