मशहूर लेखक और स्तंभकार खुशवंत सिंह को इस बात का दुख रहा कि उन्होंने महिलाओं को हमेशा कामुक नजर से देखा. पिछले साल प्रकाशित ‘खुशवंतनामा: द लैसंस ऑफ माई लाइफ’ में उन्होंने दुख जताया कि उन्होंने अपने प्रारंभिक जीवन में कई बुरे काम किए जैसे गौरेया, बत्तख और पहाड़ी कबूतरों को मारना.
उन्होंने लिखा है, ‘मुझे इस बात का भी दुख है कि मैं हमेशा अय्याश व्यक्ति रहा. चार साल की उम्र से अब तक मैंने 97 वर्ष पूरे कर लिए हैं, अय्याशी हमेशा मेरे दिमाग में रही.’
उन्होंने लिखा, ‘मैंने कभी भी इन भारतीय सिद्धांतों में विश्वास नहीं किया कि मैं महिलाओं को अपनी मां, बहन या बेटी के रूप में सम्मान दूं. उनकी जो भी उम्र हो, मेरे लिए वे वासना की वस्तु थीं और हैं.’ उन्हें लगता था कि उन्होंने ‘बेकार के रिवाजों’ और ‘सामाजिक बनने’ में अपना बहुमूल्य समय बर्बाद किया और वकील एवं फिर राजनयिक के रूप में काम करने के बाद लेखन को अपनाया.
उन्होंने लिखा है, ‘मैंने कई वर्ष अध्ययन और वकालत करने में बिता दिए जिसे मैं नापसंद करता था. मुझे विदेशों और देश में सरकार की सेवा करने और पेरिस स्थित यूनेस्को में काम करने का भी दुख है.’ उन्होंने लिखा है कि वह काफी पहले लेखन कार्य शुरू कर सकते थे.