विजय माल्या की कंपनी किंगफिशर कर्ज़ से कंगाल हो गई है. माल्या मुश्किल में हैं, लेकिन उनकी मुश्किल दूसरी एयरलाइंस कंपनियों के लिए मुनाफे का सौदा साबित हो रही है.
एक का नुक्सान, दूसरे का फायदा. इन दिनों एविएशन सेक्टर में कुछ यही हाल है. किंगफिशर की मुश्किल का फायदा उठा रही हैं दूसरी एयरलाइंस कंपनियां. पीक सीजन होने से मुसाफिर बढ़े तो एयरलाइन्स कंपनियों ने किराया भी बढ़ा दिया.
किंगफिशर ने पिछले दिनों कई उड़ाने रद्द की है, इसलिए यात्री भी अब सोच-समझकर एयरलाइन का चुनाव कर रहे हैं.
देश के घरेलू हवाई यात्रियों में इस संकट से पहले किंगफिशर का हिस्सा करीब 19 फीसदी था और मार्केट शेयर के लिहाज से वो जेट के बाद दूसरी बड़ी एयरलाइन थी. उड़ानें कम होने से अब इसे बनाए रखना किंगफिसर के लिए मुश्किल होगा.
कहते हैं एक का नुकसान दूसरे का फायदा होता है. ऐसा ही कुछ किंगफिशर के मामले में भी देखने को मिल रहा है. जहां उड़ानें रद्द होने से किंगफिशर को नुकसान हो रहा है बाकी एयरलाइंस इसे कमाई के एक मौके के तौर पर देख रही हैं.
खबर है कि किंगफिशर को संकट से उबारने के लिए सरकार बेलआउट पैकेज देने पर भी विचार कर रही है. हांलाकि कुछ उद्योगपति इसका विरोध कर रहे हैं.
किंगफिशर की मुश्किल बड़ी है, लेकिन देश की तमाम एयरलाइन्स कंपनियां इस वक्त संकट में हैं. खबर है कि इस संकट से उबारने के लिए सरकार एयरलाइन्स सेक्टर में सीधे विदेशी निवेश की इजाज़त दे सकती है.
सूत्रों की मानें तो नागरिक उड्डयन मंत्रालय घरेलू एयरलाइंस में एफडीआई की इजाजत के लिए एक प्रस्ताव केबिनेट के सामने रखने की तैयारी कर रहा है. फिलहाल विदेशी संस्थागत निवेशकों को ही घरेलू एयरलाइन में 49 फीसदी तक हिस्सेदारी कीदने की इजाजत है लेकिन विदेशी एयरलाइंस को हिस्सेदारी खरीदने की इजाजत नहीं है.
इस प्रस्ताव के मंजूर होने पर विदेशी एयरलाइन भी घरेलू एयरलाइन कंपनियों में हिस्सेदारी खरीद पाएंगी.