scorecardresearch
 

जानिए बवाल-ए-जान बने भूमि अधिग्रहण बिल में क्या है और क्यों हो रहा है विरोध

देश अगले कुछ दिनों में वर्ल्ड कप के अलावा अगर किसी चीज की बात करने वाला है तो वह है भूमि अधिग्रहण बिल. भारत में पहली बार भूमि अधिग्रहण बिल 1894 में आया था. यह कानून अंग्रेजों ने बनाया था इसलिए जाहिर तौर पर बेहद गैरबराबर और शोषणकारी था. यह कानून 120 सालों बाद पिछले साल 2014 में बदला जा सका था. NDA सरकार अब इस विधेयक में बदलाव करना चाहती है जिस पर अन्ना से लेकर विपक्ष हंगामा बरपाने को तैयार है. जानिए क्या है भूमि अधिग्रहण बिल में और क्यों हो रहा है इसका विरोध.

Advertisement
X
symbolic image
symbolic image

देश अगले कुछ दिनों में वर्ल्ड कप के अलावा अगर किसी चीज की बात करने वाला है तो वह है भूमि अधिग्रहण बिल . भारत में पहली बार भूमि अधिग्रहण बिल 1894 में आया था. यह कानून अंग्रेजों ने बनाया था इसलिए जाहिर तौर पर बेहद गैरबराबर और शोषणकारी था. यह कानून 120 सालों बाद पिछले साल 2014 में बदला जा सका था. NDA सरकार अब इस विधेयक में बदलाव करना चाहती है जिस पर अन्ना से लेकर विपक्ष हंगामा बरपाने को तैयार है. जानिए क्या है भूमि अधिग्रहण बिल में और क्यों हो रहा है इसका विरोध.

Advertisement

खेती योग्य बहु-फसली जमीन अधिग्रहण नहीं
जमीन के अधिग्रहण और पुनर्वास के मामलों में सरकार ऐसे भूमि अधिग्रहण पर विचार नहीं करेगी जो या तो निजी परियोजनाओं के लिए निजी कंपनियां करना चाहेंगी या फिर जिनमें सार्वजनिक परियोजनाओं के लिए बहु-फसली जमीन लेनी पड़े. अगर कानून बनता है तो यानी अगर ये विधेयक कानून बन जाता है तो बहु-फसली सिंचित भूमि का अधिग्रहण नहीं किया जा सकेगा.

जिनकी जमीन जाएगी उनको क्या मिलेगा
मसौदे में जमीन के मालिकों और जमीन पर आश्रितों के लिए एक विस्तृत पुनर्वास पैकेज का जिक्र है. इसमें उन भूमिहीनों को भी शामिल किया गया है जिनकी रोजी-रोटी अधिग्रहित भूमि से चलती है. इस बीच, अधिग्रहण के कारण जीविका खोने वालों को 12 महीने के लिए प्रति परिवार तीन हजार रुपए प्रति माह जीवन निर्वाह भत्ता दिए जाने का प्रावधान है.

Advertisement

मुकदमेबाजी का चक्कर
सरकार ने जमीन अधिग्रहण पर यूपीए सरकार के बिल में सबसे अहम बदलाव रेट्रोस्पेक्टिव क्लॉज को लेकर किया है. 2013 के कानून में यह व्यवस्था की गई थी कि अगर किसी जमीन के अधिग्रहण को कागजों पर 5 साल हो गए हैं, सरकार के पास जमीन का कब्जा नहीं है और मुआवज़ा नहीं दिया गया, तो मूल मालिक जमीन को वापस मांग सकता है. लेकिन अब सरकार ने इसमें यह प्रावधान जोड़ दिया है कि अगर मामला अदालत में चला गया है तो मुकदमेबाजी के वक्त को 5 साल की मियाद में नहीं जोड़ा जाएगा.

पांच साल की शर्त हटाई
सरकार ने जमीन पर पांच साल के भीतर काम शुरू करने की शर्त भी हटा ली है. पुराने बिल के तहत जमीन लेने के बाद कंपनियों को पांच साल के भीतर उस पर काम शुरू करना जरूरी था. लेकिन अब ये पाबंदी हटा ली गई है. पुराने बिल में व्यवस्था थी कि पांच साल के भीतर काम शुरू न होने पर जमीन मालिक इस पर दोबारा दावा पेश कर सकते हैं.

मुआवजे की परिभाषा बदली
सरकार ने रेट्रोस्पेक्टिव क्लॉज के तहत मुआवजे की परिभाषा को भी बदल दिया है. पुराने बिल के मुताबिक अगर संबंधित व्यक्ति को मिलने वाला मुआवजा उसके खाते में नहीं भी गया है और सरकार ने अदालत में या सरकारी खाते में मुआवजा जमा करा दिया है तो उसे मुआवजा ही माना जाएगा.

Advertisement

जवाबदेही प्रावधान में ढील
एनडीए सरकार ने कानूनी की अनदेखी करने और कानून तोड़ने वाले अधिकारियों के खिलाफ कदम उठाने के लिए रखे गए प्रावधान भी ढीले किए हैं. बिल में नए बदलाव के मुताबिक किसी अफसर पर कार्रवाई के लिए अब संबंधित विभाग की अनुमति लेना जरूरी होगा. यानि अफसर साफ बच निकलेंगे.

सहमति जरूरी नहीं
2013 के बिल में एक महत्वपूर्ण प्रावधान था लोगों की सहमति. इसके तहत सरकार और निजी कंपनियों के साझा प्रोजेक्ट में 80 फीसदी जमीन मालिकों की सहमति जरूरी थी. जबकि अगर परियोजना पूरी तरह सरकारी है तो इसके लिए 70 प्रतिशत मालिकों की मंजूरी जरूरी थी. लेकिन नए कानून में इसे खत्म कर दिया गया है.

होकर रहेगा जमीन अधिग्रहण
केंद्र सरकार ने जिस तरह से नया अध्यादेश जारी किया है उससे साफ है कि जमीन मालिक चाहे न चाहे, भूमि का अधिग्रहण होकर ही रहेगा. अगर वो मुआवजा लेने से इनकार करता है तो इसे सरकारी खजाने में जमा कर जमीन मालिक को भूमि स्वामी को उसकी भूमि से बेदखल किया जा सकेगा.

 

Advertisement
Advertisement