बॉलीवुड में आए दिन फिल्में रिलीज होती रहती हैं. फिल्मों को बनाने के लिए निर्माता अपनी मेहनत और पैसा लगाते हैं. फिल्म बनने के बाद सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (सेंसर बोर्ड) से पास होती है. सेंट्रल बोर्ड से सर्टिफिकेट मिलने के बाद ही फिल्म रिलीज होती है यानी दर्शकों तक पहुंची है.
आमतौर पर फिल्मों के सेंसर बोर्ड से टकराव की खबरें सामने आती रहती हैं. सेंसर बोर्ड ने अब तक कई फिल्मों पर कैंची चलाई है. हाल ही में फिल्म 'उड़ता पंजाब' को लेकर सेंसर बोर्ड और फिल्म डायरेक्टर के बीच काफी विवाद हुआ और मामला कोर्ट तक पहुंच गया. उड़ता पंजाब के बाद नवाजुद्दीन की फिल्म 'हरामखोर' सेंसर बोर्ड के शिकंजे में फंसी हुई है.
सेंसर बोर्ड के आधार
सेंसर बोर्ड अश्लीलता, अपराध, हिंसा, अपशब्द और धार्मिक मुद्दों पर बनने वाली फिल्मों पर कैंची चलाता है. सेंसर बोर्ड किसी समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाने
वाली फिल्मों पर भी कैंची चलाता है. हाल ही में सेंसर बोर्ड ने पटेल आरक्षण आंदोलन पर बनी गुजराती फिल्म 'सलगतो सवाल अनामत' को सर्टिफिकेट देने से इनकार
कर दिया. सेंसर बोर्ड ने डायरेक्टर से इस फिल्म में इस्तेमाल किए गए 'पटेल' और 'पाटीदार' शब्द को हटाने के लिए कहा है.
1: 'U' कैटेगरी की फिल्मों को हर कोई देख सकता है.
2: 'A' कैटेगरी की फिल्में सिर्फ व्यस्कों के लिए होती हैं.
3: 'U/A' कैटेगरी की फिल्मों को देखने के लिए 12 साल से छोटे बच्चों के साथ बड़ों का होना जरूरी होता है.
4: 'S' कैटेगरी की फिल्में स्पेशल जैसे डॉक्टर्स, साइंटिस्ट्स जैसे पेशेवर लोगों के दिखाने के लिए होती हैं.
ऐसे मिलता है सेंसर बोर्ड से सर्टिफिकेट
फिल्म तैयार होने के बाद सेंसर बोर्ड की जांच समिति फिल्म देखती है. जांच समिति तय करती है कि फिल्म को U, U/A, और A में से किस कैटेगरी में रखना है. अगर
कमेटी द्वारा तय की गई कैटेगरी से डायरेक्टर खुश है तो ठीक है अगर उसके हिसाब से फिल्म को सही कैटेगरी नहीं दी गई तो वह जांच समिति से दोबारा फिल्म को
देखने की सिफारिश करता है. ऐसे में एक नई कमेटी फिल्म देखती है. इस केमेटी में बोर्ड का एक सदस्य भी शामिल होता है. दूसरी बार फिल्म देखने के दौरान ही
फिल्म में कट लगाए जाते हैं. बाद में सेंसर बोर्ड फिल्म को उसकी कैटेगरी के हिसाब से सर्टिफिकेट देता है.