ओसामा बिन लादेन को मार गिराने के लिए अमेरिकी अभियान के लिए जमीनी कार्य पिछले वर्ष अगस्त में ही शुरू हो गया था जब अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने पाकिस्तान के ऐबटाबाद स्थित ओसामा के परिसर तक पहुंचने के लिए उसके एक भरोसेमंद दूत का पीछा किया.
अमेरिकी सेना और गुप्तचर एजेंसियां उस दूत का पीछा कर रही थीं जिसपर ओसामा बहुत भरोसा करता था और उसका इस्तेमाल बाहरी दुनिया से सम्पर्क बनाने के लिए करता था। इसमें सफलता तब मिली जब अमेरिकी प्रशासन को उसके असली नाम का पता चार वर्ष पहले चला. अमेरिकी गुप्तचर एजेंसी को उस स्थान का पता लगाने में और दो वर्ष का समय लग गया जहां से दूत संचालित हो रहा था. एजेंसी उसका पीछा करके ऐबटाबाद स्थित उस परिसर तक पहुंच गई जहां पर इस्लामाबाद से पहुंचने में करीब एक घंटे का समय लगता है.
द न्यूयार्क टाइम्स ने कहा कि सीआईए के विश्लेषकों ने वर्ष 2010 के अगस्त और सितम्बर में यह पता लगाने के लिए सेटेलाइट से प्राप्त चित्रों का विश्लेषण किया कि उस परिसर में कौन रह रहा है. समाचार पत्र ने ओबामा प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी के हवाले से कहा, ‘सितम्बर तक सीआईए इस बात का लेकर और अधिक दृढ़ हो गया था कि इसकी अधिक संभावना है कि ओसामा वहां स्वयं छिपा हुआ है.’ अमेरिकी अधिकारियों को गुप्तचर रिपोर्टों के जरिये यह पता चल गया कि वर्ष 2005 में बनी इमारत में न तो टेलीफोन है और न ही कोई इंटरनेट कनेक्शन है और इसमें रहने वाले लोग सुरक्षा दृष्टि से अपना कूड़ा बाहर फेंकने की बजाय उसे जला देते हैं.
समाचार पत्र ने कहा कि अमेरिकी अधिकारियों का मानना था कि परिसर का निर्माण विशेष रूप से ओसामा के छिपने के लिए किया गया है. अमेरिकी गुप्तचर विश्वसनीय सूचना एकत्रित करने के बाद इस नतीजे पर पहुंचे कि वास्तव में ओसामा ही वहां पर छुपा हुआ है. इसके बाद अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने उसके खिलाफ अभियान शुरू करने को मंजूरी दे दी. 14 मार्च को ओबामा ने राष्ट्रीय सुरक्षा बैठक की पांच बैठकों में से पहली बैठक का आयोजन किया जिसमें उस अभियान पर चर्चा हुई जिसमें अंतत: 11 सितम्बर को हुए आतंकवादी हमले का मुख्य साजिशकर्ता ओसामा मारा गया.
ओसामा के खिलाफ अमेरिकी अभियान के लिए अंतिम मंजूरी शुक्रवार को मिली जब ओबामा ने व्हाइट हाउस में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार थामस डोनिलान, आतंकवाद निरोधक सलाहाकार जान ओ ब्रेनैन और अन्य वरिष्ठ सहयोगियों से मुलाकात की. खबर में कहा गया है, ‘राष्ट्रपति उस सुबह बाद में अलाबामा का सफर करना था जहां वह गत सप्ताह तूफान से हुई तबाही का आकलन करने के लिए जाने वाले थे. लेकिन पहले उन्हें उस परिसर में गुप्तचरों को भेजने के लिए अंतिम योजना पर हस्ताक्षर करने थे जहां ओबामा प्रशासन का मानना था कि ओसामा छुपा हुआ है.’
ओबामा ने लेकिन पाकिस्तान सरकार को इस अभियान को लेकर अंधेरे में रखने का फैसला किया. अखबार ने कहा कि यह आश्चर्य की बात नहीं है कि ओबामा प्रशासन ने इस बारे में पाकिस्तानी अधिकारियों को नहीं बताने का फैसला किया. पाकिस्तान इस बात पर जोर देता आ रहा था कि ओसामा उनके देश में छुपा हुआ नहीं है लेकिन अमेरिका ने इस पर कभी विश्वास नहीं किया. अमेरिकी कमांडो उस परिसर तक पहुंच गए और उसके तत्काल बाद गोलीबारी शुरू हो गई. जब गोलीबारी बंद हुई तो ओसामा और तीन अन्य व्यक्ति मृत हो गए थे.
अमेरिकी अधिकारियों ने ओसामा के शव को समुद्र में दफन कर दिया. उन्हें इस बात का अंदेशा था कि इस दुर्दांत आतंकवादी को जमीन पर जिस जगह दफन किया जाएगा, वह उसके समर्थकों के आकषर्ण का केंद्र बन जाएगा. अधिकारियों ने यह नहीं बताया कि अलकायदा सरगना को किस स्थान पर दफन किया गया. अमेरिका ने अपने सहयोगी पाकिस्तान को इस अभियान की जानकारी नहीं दी थी, इस अभियान को पूरी तरह से गुप्त रखने को लेकर ऐसा किया गया.
ओसामा के मारे जाने की घोषणा किए जाने के चार घंटे बीत जाने के बावजूद पाकिस्तान सरकार और सेना एक बयान जारी करने से पहले खामोश रही. बयान में कहा गया कि यह अभियान ‘अमेरिकी खुफिया विभाग की कार्रवाई है.’ अमेरिकी मीडिया ने कहा है कि इस दो मंजिला इमारत में ओसामा की मौजूदगी के खुलासे से पाकिस्तानी अधिकारियों पर इस बात के लिए दबाव पड़ेगा कि यह आतंकवादी सरगना उनके नाक के नीचे कैसे रह रहा था.
अमेरिकी अधिकारियों ने कहा कि यह सवाल खड़े होते हैं कि क्या पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई को उसके ठिकाने के बारे में पता था और क्या उसे पनाह दी गई थी. अमेरिकी अधिकारियों ने कहा कि करीब 10 साल पहले तोरा बोरा की गुफाओं में ओसामा को पकड़ने की नाकाम कोशिश के बाद अमेरिकी सुरक्षा बलों ने आखिरकार सिर्फ 40 मिनट में इस अभियान को अंजाम दिया. अधिकारियों ने बताया कि अमेरिकी कमांडो ने दोनों ओर से हुई गोलीबारी के बाद ओसामा के सिर में गोली मारी.
अमेरिकी अधिकारियों ने बताया कि इससे पहले ओसामा ने भी अपने हथियार से गोलीबारी की. इस अभियान के दौरान अमेरिका का एक हेलीकॉप्टर नष्ट हो गया और सैनिकों ने खुद ही इसे विस्फोटकों के जरिए नष्ट करने का फैसला किया. पाकिस्तानी अधिकारियों ने दावा किया कि अमेरिकी हेलीकॉप्टर पश्चिमोत्तर पाकिस्तान के गाजी वायुसेना ठिकाने से आए थे.