वहीं पुराना ढर्रा
योजना का संचालन करने वाले ग्रामीण विकास मंत्रालय में एसएजीवाइ के डायरेक्टर डॉ. कुशल पाठक ने इंडिया टुडे को जो बताया, उससे परियोजना की सुस्त चाल खुद-ब-खुद साफ होती है, 'एसएजीवाइ में अभी ग्राम विकास योजना (वीडीपी) बनाने का काम चल रहा है. गांवों में विकास के कार्य अगस्त 2015 से शुरू होंगें और 2016 के अंत तक पूरे किए जाएंगे.' लेकिन एसएजीवाइ की वेबसाइट के मुताबिक काम होना तो दूर अभी तक लोकसभा के 55 और राज्यसभा के 62 सांसदों ने अपने आदर्श गांव का चयन भी नहीं किया है.
सांसद भी परेशान सांसदों की समस्या यह है कि योजना के लिए अलग से कोई पैसा नहीं दिया गया है. ऐसे में सांसद के पास ले-देकर अपनी सांसद निधि बचती है, अगर वह इसे एक गांव पर खर्च कर देगा तो संसदीय क्षेत्र के बाकी के 1,000 गांव और दर्जन भर कस्बों में वह क्या खर्च करेगा.
उत्तर प्रदेश से समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद नरेश अग्रवाल ने हरदोई में सदई बेहटा नाम के जिस गांव को गोद लिया था, उसे वापस ही कर दिया. अग्रवाल की दो टूक सुनिए, 'ये योजना तो गांवों में झगड़ा करा देगी. विकास होना है, तो सब गांवों का हो. दूसरे, योजना में पैसा तो है नहीं, विकास कहां से होगा.' तो गिरिराज सिंह और उमा भारती जैसे मंत्रियों ने तो पहले से अच्छी हालत वाले गांव को चुन लिया जाए, ताकि थोड़े गुड़ में ही खूब मीठा हो जाए.
हां, कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह जैसे सांसदों ने बदहाल गांव गोद लिया है और वहां काम भी शुरू करा दिए हैं. और रही बात प्रधानमंत्री के गांव की तो वहां विकास के कार्य निजी कंपनियों की दरियादिली से धड़ाधड़ चल रहे हैं.
पहले से योजनाएं
सरकार ने व्यवस्था की है कि विभिन्न मंत्रालयों की पहले से चली आ रही एक दर्जन से अधिक योजनाओं में से कुछ हिस्सा आदर्श गांव के लिए सुनिश्चित कर दिया जाए. इनमें से तकरीबन सभी योजनाएं यूपीए सरकार के जमाने की हैं. ग्रामीण विकास मंत्रालय ने दिसंबर, 2014 से मार्च, 2015 के बीच इन योजनाओं की गाइडलाइन्स में बदलाव कर इन्हें एसएजीवाइ से जोड़ा है.
अपने संसदीय क्षेत्र गुना में आदर्श ग्राम गोद लेने के बावजूद कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया चुनौती देते हैं, 'हां, मैंने गांव का चयन कर लिया है. अब विकास मोदीजी कराएं. बिना पैसे की योजना सिर्फ मोदीजी ही चला सकते हैं. ये सांसद आदर्श ग्राम योजना नहीं है, आदर्श फ्रॉड योजना है.'