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कुडनकुलम पर सुप्रीम कोर्ट की तमिलनाडु को फटकार

सुरक्षा से किसी भी प्रकार का समझौता नहीं करने की बात कहते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने तमिलनाडु सरकार को कुडनकुलम परमाणु बिजली संयंत्र (केएनपीपी) में किसी भी प्रकार की सम्भावित दुर्घटना की स्थिति में क्षेत्र से लोगों की योजना लागू करने में सुस्ती दिखाने के लिए फटकार लगाई.

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सुरक्षा से किसी भी प्रकार का समझौता नहीं करने की बात कहते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने तमिलनाडु सरकार को कुडनकुलम परमाणु बिजली संयंत्र (केएनपीपी) में किसी भी प्रकार की सम्भावित दुर्घटना की स्थिति में क्षेत्र से लोगों की योजना लागू करने में सुस्ती दिखाने के लिए फटकार लगाई.

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अदालत ने कहा कि संयंत्र की सुरक्षा पर किसी भी प्रकार का समझौता नहीं हो सकता है. न्यायमूर्ति के.एस. राधाकृष्णन और न्यायामूर्ति दीपक मिश्रा की पीठ ने राज्य सरकार से पूछा कि दुर्घटना की स्थिति में उन्हें (लोगों) को किस प्रकार खाली कराया जाएगा.

अदालत ने कहा, 'आपका (तमिलनाडु सरकार) व्यवहार आलस्य भरा लगता है.. हम आपसे गम्भीरता चाहते हैं. अदालत एक याचिका की सुनवाई कर रही थी, जिसमें राज्य सरकार को केएनपीपी-1 और केएनपीपी-2 को शुरू करने से रोकने की मांग की गई है.

याचिका में मांग की गई है कि इकाइयों को शुरू करने से पहले भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम लिमिटेड (एनपीसीआईएल) द्वारा गठित कार्यबल द्वारा सुझाए गए 17 सुरक्षा उपायों को लागू किया जाना चाहिए. अदालत ने कहा, 'सुरक्षा के मामले पर किसी भी तरह का समझौता नहीं होगा.'

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अदालत ने सवाल किया कि परमाणु दुर्घटना की स्थिति में राज्य सरकार के पास लोगों को इलाके से दूसरी जगह ले जाने की क्या परिवहन व्यवस्था है और उन्हें जरूरी सुविधाएं किस प्रकार दी जाएंगी. अदालत ने राज्य सरकार से कहा कि उसे परमाणु दुर्घटना की स्थिति में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा जारी दिशा-निर्देश का पालन करना होगा.

तमिलनाडु के अतिरिक्त महाधिवक्ता गुरु कृष्णा कुमार ने अदालत से कहा कि राज्य सरकार के कार्यों में गम्भीरता और इच्छा शक्ति दोनों है. इस पर सूचना प्रौद्योगिकी पेशेवर और याचिकाकर्ता पी. सुंदरराजन के वकील प्रशांत भूषण ने राज्य सरकार की गम्भीरता के दावे की खिल्ली उड़ाई.

भूषण ने कहा कि साढ़े चार महीने पहले मद्रास उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार से कहा था कि परियोजना स्थल के चारो ओर 16 किलोमीटर के दायरे में पड़ने वाले 40 गांवों में स्थान खाली कराने का आपात कालीन अभ्यास कराया जाए, लेकिन इस पर अमल नहीं हुआ है.

न्यायामूर्ति राधाकृष्णन ने राज्य सरकार से कहा, 'यदि आप सुरक्षा के कदम नहीं उठाएंगे तो उसके लिए हमें आदेश देना होगा भूषण.' ने 17 सुरक्षा उपाय लागू नहीं करने के लिए केंद्र सरकार की भी खिल्ली उड़ाई और कहा कि यह काम छह महीने के भीतर कर लिया जाना चाहिए था.

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