कुलभूषण जाधव के मामले में अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में सुनवाई हुई. भारत की ओर से वरिष्ट वकील हरीश साल्वे ने अपनी बात रखी. पढ़ें आखिर कोर्ट में भारत की ओर से क्या पक्ष रखा गया.
भारत ने कोर्ट में सुनवाई में कहा कि भारत की अपील के सात दिन के अंदर ही इस मामले की सुनवाई करना ये बताता है कि इंटरनेशनल कोर्ट कितनी सीरियसली ले रहा है. पाकिस्तान ने कुलभूषण जाधव को कोई मदद नहीं की, मैं भारत की ओर से यह बताना चाहता हूं कि भारत के 125 करोड़ लोग कुलभूषण जाधव की वापसी की राह देख रहे हैं.
हम चाहते हैं कि बिना किसी सुनवाई के पाकिस्तान की मिलिट्री कोर्ट के फैसले पर रोक लगाई जाये. पाकिस्तान ने वियना संधि का उल्लंघन किया, इसके तहत उन्होंने कुलभूषण जाधव को किसी से भी मिलने की इजाजत नहीं दी. कुलभूषण जाधव को फांसी देना मानवाधिकार उल्लंघन है. भारत ने कहा कि ना तो कुलभूषण जाधव की मदद की, और ना ही कोई काउंसलर की मदद की.
भारत के कहने के बावजूद पाकिस्तान ने हमें कुलभूषण जाधव से जुड़ी कोई जानकारी नहीं दी, जाधव के माता-पिता पाकिस्तान आकर अपने बेटे से मिलना चाहते थे, उन्होंने इसको लेकर गुजारिश भी की थी लेकिन पाकिस्तान ने कोई जवाब नहीं दिया था. हमारी मांग है कि सिर्फ मिलिट्री कोर्ट की सुनवाई के आधार पर कुलभूषण जाधव को फांसी ना दी जाए.
कुलभूषण जाधव के माता-पिता उसकी मदद नहीं कर पा रहे हैं, फिर भी पाकिस्तान कोई सूचना नहीं दे रहा है. 27 अप्रैल को भारत ने दोबारा पाकिस्तान के सामने इस मुद्दे को उठाया था लेकिन पाकिस्तान ने हमारी बात नहीं सुनी थी. पाकिस्तान की मिलट्री कोर्ट पहले भी इस तरह के फैसले सुनाती रही है, और उन्हें बिना किसी चुनौती के सुने अमल में ला दिया जाता है.
भारत की ओर से अपनी बात रखते हुए श्री शर्मा ने कहा-
वियना संधि के तहत कहा गया है कि अगर किसी व्यक्ति को पकड़ा जाता है, तो दोनों देशों में उसे राजनियक नियमों के तहत मदद मिलेगी, इसका उल्लेख आर्टिकल 36 में भी हुआ है. भारत किसी अन्य देश की न्यायिक व्यवस्था में हस्तेक्षेप नहीं कर रहा है, हम सिर्फ अंतरराष्ट्रीय नियमों की बात कर रहे हैं. पाकिस्तान को नियमों का पालन करना ही होगा.
अनुच्छेद 36 के पहले पैराग्राफ में भी इस बात का उल्लेख किया गया है कि इस प्रकार के मामले में इंटरनेशनल कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है. भारत और पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र के सदस्य हैं और दोनों ही देश वियना संधि के नियमों का पालन करने के लिए प्रतिबद्ध है. संधि के अनुसार कहा गया है कि कोई भी मतभेद होने पर इंटरनेशनल कोर्ट इसे सुलझा सकती है.
भारत और पाकिस्तान के बीच में दो-पक्षीय संधि भी हो चुकी है, जिसमें वियना संधि के पालन की बात हो रही है. यह मामला दो पक्षीय नियमों के तहत नहीं आता, इसलिये इसे इंटरनेशल कोर्ट लाना पड़ा था. 2008 में हुए समझौते के तहत इस बात का समझौता हुआ था.
हरीश साल्वे ने रखा भारत का पक्ष
वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने भारत का पक्ष रखते हुए कहा कि 1963 के उल्लंघन के वियना संधि के तौर पर इस मामले को अगर देखा जाए तो यह मामला उल्लंघन के तौर पर आता है.
कुलभूषण जाधव को 14 मार्च को गिरफ्तार किया गया, जिसके बाद पाकिस्तान की मिलट्री अदालत ने उन्हें कोर्ट की सजा सुनाई. भारत ने कुल 16 बार इस मामले को लेकर पाकिस्तान के सामने सुनवाई लगाई, लेकिन पाकिस्तान ने भारत की बात नहीं सुनी.
भारत को कुलभूषण जाधव की गिरफ्तारी की जानकारी 25 मार्च के बाद मिली, इस ट्रायल के दौरान जाधव के खिलाफ लगाये गये आरोपों और सबूतों को भारत को मुहैया नहीं कराया गया है. हमारे पास एक प्रेस रिपोर्ट की कॉपी है इसके साथ ही पाकिस्तान के अखबार जहां-ए-पाकिस्तान के आर्टिकल को पढ़ते हुए कहा कि भारत को इस मामले की अधिकतर जानकारी पाकिस्तानी मीडिया से मिली है. हमनें कई बार इसका जिक्र किया है कि प्रोविजनल कदम के तहत यह फैसला सुनाया गया है.
साल्वे ने कहा कि कुलभूषण जाधव की जो भी वीडियो दिखाई गई थी, उसके साथ छेड़छाड़ की गई थी. कुलभूषण जाधव पर लगाये गए आरोप काफी गंभीर हैं, हम उस पर कोई टिप्पणी नहीं कर रहे हैं क्योंकि हमें इसके कोई सबूत नहीं दिये गये हैं. कुलभूषण जाधव आर्मी की कस्टडी में था, वीडियो में उसने जो कुछ भी बोला था वह दबाव में बोला था. कोर्ट ने पहली नज़र में कहा कि यह मामला वियना संधि के उल्लंघन का है.
हरीश साल्वे ने इंटरनेशनल कोर्ट से पाकिस्तान की मिलिट्री कोर्ट के फैसले को सस्पेंड करने की मांग की. साल्वे ने कहा कि जाधव को ईरान से किडनैप किया गया था. पाकिस्तान की ओर से एक भारतीय नागरिक के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी. इस केस को भारत की नज़र में रखते हुए दर्ज करना चाहिए था. पाकिस्तान ने हर कदम पर वियना संधि को तोड़ा है.
हरीश साल्वे ने कहा कि भारत के पास जानकारी थी कि जाधव को ईरान से गिरफ्तार किया गया जहां पर वह अपना बिजनेस करता था. भारत को इस मामले की जानकारी एक प्रेस रिलीज़ के तौर पर दी गई थी, वह भी जब उन्होंने उसे फांसी की सज़ा सुना दी थी. भारत को बिना बताये उसके नागरिक को गिरफ्तार करना, फिर उसे फांसी की सज़ा सुनाना पाकिस्तान की ओर से कोई किया गया नियमों का उल्लंघन है.
19 अप्रैल को पाकिस्तान की ओर से हमें फैसले की कॉपी दी गई. आर्टिकल 36 में जो भी अधिकार दिये गये हैं, वह मानवाधिकार हैं. बिना की सबूत और बिना किसी आरोप के किसी व्यक्ति की जान लेना नियमों के खिलाफ है. हरीश साल्वे ने कहा कि कोई भी सजा देने से पहले सभी नियमों का पालन करना जरूरी है.