अपनी स्थापना की पांचवी सालगिरह से पहले आम आदमी पार्टी में एक बार फिर कलह के संकेत खुलकर नजर आने लगे हैं. पार्टी के अंदर एक बड़ा तूफान खड़ा होने का इंतजार कर रहा है जिसकी शरुआत हुई आम आदमी पार्टी द्वारा विधायक अमानतुल्ला खान का निलंबन रद्द करने से, जिन्हें पार्टी के बड़े नेता कुमार विश्वास पर बीजेपी के साथ सांठ-गांठ के आरोप के बाद पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित कर दिया गया था.
रविवार को आप नेता आशुतोष के नेतृत्व में गठित पार्टी की तीन सदस्यीय समिति ने अमानतुल्ला के निलंबन पर अपनी सिफारिश पार्टी को भेजी जिसमें अमानतुल्ला खान के निलंबन को वापस लेने की बात कही गई. सूत्र बता रहे हैं कि पार्टी की सर्वोच्च इकाई पीएसी के ज्यादातर सदस्यों ने अमानतुल्ला के निलंबन पर समिति की राय से सहमति दिखाई और बहुमत की राय पर कुमार पर अविश्वास दिखाने वाले विधायक अमानतुल्ला का निलंबन रद्द हो गया. लेकिन इस घटना से ज्यादा दिलचस्प है इस घटना का समय क्योंकि 2 नवंबर को ही आम आदमी पार्टी ने अपनी इस साल की प्रस्तावित पहली और पार्टी की पांचवीं नेशनल काउंसिल यानि राष्ट्रीय परिषद की बैठक बुलाई है. लगभग 450 से ज्यादा सदस्यों वाली पार्टी की सबसे बड़ी इकाई दो दिन बाद देश के ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा कर प्रस्ताव पास करेगी साथ ही दूसरे राज्यों में पार्टी के विस्तार, चुनाव लड़ने और संगठन पर भी चर्चा करेगी.
अमानतुल्ला के निलंबन वापस लिए जाने से खफा कुमार विश्वास का कहना है कि पार्टी की इस राष्ट्रीय परिषद की बैठक में बतौर वक्ता इस बार उनका नाम शामिल नहीं है जो कि पांच सालों में पहली बार हुआ है. लेकिन आजतक से बातचीत में विश्वास ने साफ- साफ कहा है कि अगर पार्टी के कार्यकर्ता चाहेंगे तो वो परिषद के भीतर अपनी बात जरूर करेंगे और जरूरत पड़ी तो बाहर भी बात करेंगे.
आम आदमी पार्टी के भीतर कुमार को लेकर से अविश्वास नया नहीं है. अमानतउल्लाह खान द्वारा लगाए आरोपों पर पार्टी के किसी बड़े नेता ने खुल कर कुमार का साथ नहीं दिया था. हालांकि मान मनौव्वल के दौर में पार्टी के मुखिया और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल खुद विश्वास के घर उन्हें मनाने आधी रात को पहुंच गए थे. मामला अमानतुल्ला के निलंबन पर खत्म हुआ और कुमार को पार्टी ने राजस्थान की कमान सौंप दी.
लेकिन आप सूत्रों की मानें तो विवाद की जड़ है पार्टी नेताओं की राज्यसभा जाने की महत्वकांशा. फरवरी में आम आदमी पार्टी को दिल्ली में 3 राज्यसभा सीटें मिलनी हैं और ये माना जा रहा था कि केजरीवाल अपने करीबी संजय सिंह, कुमार विश्वास और आशुतोष को राज्यसभा भेजेंगे. पार्टी नेता कुमार विश्वास गाहे बगाहे कई मौकों पर राज्यसभा जाने की अपनी महत्वकांशा खुल कर व्यक्त की लेकिन सूत्रों की मानें तो अभी तक पार्टी ने औपचारिक तरीके से या इशारों में उन्हें राज्यसभा का आश्वासन नहीं दिया.
इतना ही कुमार विश्वास की पार्टी के कई नेताओं से खटास पंजाब विधानसभा चुनाव के दौरान ही शुरू हो गई थी क्योंकि विवादों से बचने के लिए विश्वास को पंजाब चुनावों में प्रचार से दूर रखा गया. कुमार विश्वास के करीबी सूत्र इस के लिए पंजाब के तत्कालीन प्रभारी संजय सिंह और दुर्गेश पाठक को जिम्मेदार ठहराते हैं. खटास बढ़ती गई जिसका असर दिल्ली के नगर निगम चुनावों में भी देखने को मिला जहां विश्वास पार्टी के प्रचार से गायब दिखे.
इसी बीच पार्टी के ओखला विधायक अमानतुल्ला खान ने कुमार विश्वास पर बीजेपी के साथ सांठ-गांठ करने का आरोप लगा दिया. रूठे कुमार के घर पार्टी के विधायकों का आना जाना शुरू हुआ जिससे ऐसे संकेत मिले कि पार्टी के विधायक की एक संख्या कुमार विश्वास के साथ खड़ी है. जाहिर है ऐसा कोई संकेत पार्टी के लिए मुश्किल का सबब बन सकता था. अमानतुल्ला के बयान और विश्वास की नाराजगी के उस एपिसोड में कुमार के सबसे नजदीकी दिखे पार्टी के विधायक और तत्कालीन दिल्ली सरकार में मंत्री कपिल मिश्रा जिन्हें बाद में केजरीवाल मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. सरकार से बाहर होते ही कपिल मिश्रा ने जो कुछ किया और कहा वो सब जानते हैं.
अमानतुल्ला के निलंबन पर रद्द होने के सवाल पर आजतक से बातचीत करते हुए कुमार विश्वास ने आरोप लगाया है कि पार्टी के कु़छ नेता उनके बैक टू बेसिस मुद्दे से खफा हैं और इसलिए उनके खिलाफ षडयंत्र कर रहे हैं. विश्वास का कहना है कि वो पार्टी के लिए नीम की कड़वी दवा के तौर पर काम कर रहे हैं. इशारों- इशारों में उन्होंने एक बार फिर किसी समय अपने सबसे करीबी रहे नेता संजय सिंह पर आरोप लगाते हुए कह दिया कि पार्टी ने उत्तर प्रदेश के निकाय चुनावों में कांग्रेस बीजेपी की तरह परिवार को निभाते हुए किसी पदाधिकारी के परिवार के सदस्य को टिकट दिया है.
सूत्रों की मानें तो हाल ही में विश्वास द्वारा मीडिया में दिए गए बयानों से पार्टी के नेता नाराज हैं और उनका कहना है कि इससे पार्टी के कार्यकर्ताओं में गलत संदेश जा रहा है. अमानतुल्ला के निलंबन पर आजतक से बातचीत करते हुए कुमार विश्वास ने मयंक गांधी, योगेंद्र यादव और अंजलि दमानिया को पार्टी से निकाले जाने का जिक्र करते हुए इशारों में ये आरोप लगाया कि उनके खिलाफ भी साजिश की जा रही है.
एक के बाद एक चुनाव हारने के बाद आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल ने रणनीति बदली और चुप्पी साध ली. पार्टी को लगा कि पीएम मोदी के खिलाफ लगातार सीधे- सीधे हमलों से पार्टी को नुकसान हुआ जिसके बाद अरविंद केजरीवाल ने जो चुप्पी साधी वह आज तक दिख रही है. आम आदमी पार्टी ने अपनी रणनीति बदली और अपना ध्यान उन राज्यों पर केंद्रित किया जहां बीजेपी या कांग्रेस की ही सरकार है और तीसरी पार्टी के लिए जगह है. आम आदमी पार्टी मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ और राजस्थान में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए भूमिका बना रही है साथ ही पार्टी के लिए किन राज्यों में माहौल खड़ा करने की कोशिश कर रही है, लेकिन इन तमाम कोशिशों के बीच पार्टी नेताओं के बीच कुमार को लेकर उमड़ा अविश्वास पार्टी के भीतर एक और तूफान उठने की ओर इशारा कर रहा है. देखना यह होगा कि 2 नवंबर को होने वाली राष्ट्रीय परिषद की बैठक में केजरीवाल और पार्टी के नेताओं का रुख क्या होगा.