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कैसे बनी बीजेपी, जानिए 'पितामह' आडवाणी से

आज अपना 88वां जन्मदिन मना रहे लाल कृष्ण आडवाणी भारतीय राजनीति के सबसे दिलचस्प चरित्रों में एक हैं. आजादी के बाद से ही विपक्ष की राजनीति कर रहे आडवाणी का जीवन भारतीय राजनीति के अलग पहलू को समझने वालों के लिए किसी संस्थान से कम नहीं है. यह भी कम दिलचस्प नहीं है कि बीजेपी के संस्थापकों में से एक आडवाणी अपनी ही पार्टी में तब हाशिये पर धकेल दिए गए जब इतिहास में पहली बार किसी गैर कांग्रसी दल ने अपने बूते बहुमत पाया था. बीजेपी के बनने की कहानी को आडवाणी ने अपनी आत्मकथा 'माई कंट्री माई लाइफ' में साझा किया है. बीजेपी के बनने की कहानी जानते हैं आडवाणी की जुबानी

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आज अपना 88वां जन्मदिन मना रहे लाल कृष्ण आडवाणी भारतीय राजनीति के सबसे दिलचस्प चरित्रों में एक हैं. आजादी के बाद से ही विपक्ष की राजनीति कर रहे आडवाणी का जीवन भारतीय राजनीति के अलग पहलू को समझने वालों के लिए किसी संस्थान से कम नहीं है. यह भी कम दिलचस्प नहीं है कि बीजेपी के संस्थापकों में से एक आडवाणी अपनी ही पार्टी में तब हाशिये पर धकेल दिए गए जब इतिहास में पहली बार किसी गैर कांग्रसी दल ने अपने बूते बहुमत पाया था. बीजेपी के बनने की कहानी को आडवाणी ने अपनी आत्मकथा 'माई कंट्री माई लाइफ' में साझा किया है. बीजेपी के बनने की कहानी जानते हैं आडवाणी की जुबानी

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आपातकाल के बाद जनता ने कांग्रेस के खिलाफ जनादेश दिया था. जयप्रकाश नारायण की प्रेरणा से जनसंघ भी जनता पार्टी में शामिल हो गया था. लेकिन कुछ ही दिनों में परिस्थितियां ऐसी बनी कि जनता पार्टी से अलग होना अवश्यंभावी हो गया था हालांकि हमें इसका दुख भी था. हमने जयप्रकाश नारायण जी के बुलावे पर जनता पार्टी को बिना शर्त समर्थन दिया था. हमने अपने आप को इस पार्टी का अंग समझना शुरू कर दिया था. जनसंघ से जितने भी लोग पार्टी में शामिल हुए थे वो किसी प्रकार की अंदरूनी षड़यंत्र में शामिल नहीं होते थे. हमने उस पार्टी के माध्यम से ही देश सेवा का निश्चय किया था इसलिए जनता पार्टी से अलग होते वक्त हम दुखी थे लेकिन अब हम आजाद भी थे.

5 अप्रैल, 1980 को दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान पर हमने कार्यकर्ताओं की सभा बुलाई. लगभग 3500 कार्यकर्ता आएं और हमने एक नए राजनीतिक दल को जन्म दिया. नाम रखा भारतीय जनता पार्टी. अटल बिहारी वाजपेयी इसके पहले अध्यक्ष बनें. मैं सूरजभान और सिकंदर बख्त महासचिव की भूमिका में थे. राजनीतिक हलकों में लोग चर्चा कर रहे थे कि क्या नई पार्टी जनसंघ को दोबारा उभारेगी. इस बात का उत्तर अटल जी ने अपने अध्यक्षीय भाषण में दे दिया ये कहते हुए कि नहीं हम जनसंघ में प्राण फूंकने नहीं आएं हैं हम एक नई पार्टी बना रहे हैं और ये पार्टी अपने नए अनुभव अर्जित करेगी. जनसंघ हमारा अतीत था हम इससे इनकार नहीं करते लेकिन अब हम आगे बढ़ेंगे न कि पीछे जाएंगे.

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हमने इसका नाम भारतीय जनता पार्टी रखा जो जनसंघ और जनता पार्टी दोनों के नामों को शामिल करता था. जयप्रकाश नारायण का हमारी पार्टी पर साफ प्रभाव था. हम उनके व्यक्तित्व से प्रेरणा पाते थे. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय की तरह जयप्रकाश नारायण भी हमारे लिए श्रद्धा के पात्र थे. हमारे बारे में उनकी जो भी गलतफहमियां थी वो इमरजेंसी में लोकतंत्र की लड़ाई के दौरान सुलझ गई थी. हमारे बीच परस्पर सम्मान और स्नेह का रिश्ता था. हमें नए रास्ते तलाशने थे और नई पार्टी को भी खड़ा करना था. नये नाम के बाद हमने अपनी पार्टी का नया चिन्ह भी रखा जनसंघ का दिया अब कमल में बदल गया. पार्टी को शुरुआत से ही लोगों का समर्थन मिला. चंद महीनों में पार्टी की सदस्यता लेने वालो की संख्या 25 लाख हो गई. जनसंघ जब अपने शीर्ष पर था तब भी उसके केवल 16 लाख सदस्य ही हो पाए थे.

अटल जी ने पार्टी के गठन के बाद अध्यक्षीय भाषण दिया था. मैं मानता हूं ये भाषण आजादी के बाद भारत के राजनीतिक इतिहास का एक महत्वपूर्ण भाषण है. अटल जी ने इस भाषण में कहा, 'हम जनता पार्टी से अलग होकर कोई खुश नहीं है. शुरुआत से लेकर अंत तक हमने पार्टी में एकता बनाए रखने की पूरी कोशिश की. हम राजघाट पर जयप्रकाश नारायण के साथ लिए शपथ को हर पल याद रखते थे. लेकिन हमारे लिए स्थितियां ऐसी बना दी गई कि हम सम्मान या सत्ता में से एक चुने, फैसला आपके सामने है. हम जयप्रकाश नारायण को दिया हुआ वचन नहीं भूले हैं, और उनके स्वर्णिम भारत के सपने को पूरा करके रहेंगे.'  हमारे मुंबई अधिवेशन की चर्चा देश भर में हुई. एक पत्रिका के संपादक ने लिखा था, 'मैं अभी-अभी बीजेपी की सभा से आ रहा हूं, और मेरे मन में यह कहने में कोई संशय नहीं है कि अटल बिहारी वाजपेयी एक दिन देश के प्रधानमंत्री बनेंगे.'

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