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श्रम सुधारों को लेकर मोदी 2.0 सरकार फ्रंटफुट पर, भारतीय मजदूर संघ को ऐतराज़

सरकार को उम्मीद है कि श्रम कानूनों से जुड़े सुधारों से निवेश आकर्षित होगा और विकास दर बढ़ेगी. हालांकि सरकार को राज्यसभा में कड़ी चुनौती का सामना करना होगा जहां अभी वो बहुमत में नहीं है.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो -PTI)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो -PTI)

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मोदी 2.0 सरकार कारोबार करने की राहें आसान बनाने के लिए (Ease of doing business) और बड़े कदम उठाने जा रही है. इसे हक़ीक़त में बदलने के लिए संसद के आगामी बजट सत्र में श्रम सुधारों को लेकर श्रम मंत्रालय नया बिल लाने जा रहा है. लेकिन आरएसएस समर्थित भारतीय मजदूर संघ (BMS) ने जो आपत्तियां उठाई हैं वो मोदी सरकार के महत्वाकांक्षी एजेंडे पर फिलहाल ब्रेक लगाने जैसा है.

खुद को निवेश के लिए माकूल शासन की तरह प्रोजेक्ट करने वाली मोदी 2.0 सरकार 17वीं लोकसभा के पहले संसदीय सत्र से ही सुधारों पर ज़ोर देने के लिए कमर कसे हुए है. इसके एजेंडे पर श्रम सुधार सबसे पहले है. मोदी सरकार ने 44 श्रम क़ानूनों को 4 अहम श्रेणियों में बांटा है- भत्ते, औद्योगिक सुरक्षा और कल्याण, सामाजिक सुरक्षा और औद्योगिक संबंध.     

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सरकार का दावा है कि अहम श्रम यूनियनों में मोटे तौर पर आम सहमति है. प्रस्तावित बिल में सभी तरह के रोजगारों के लिए राष्ट्रीय न्यूनतम भत्ता जोड़ने का प्रावधान है. केंद्रीय श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने मंत्रियों के समूह की बैठक में हिस्सा लेने के बाद बताया, ‘हम आगामी सत्र में नया श्रम कानून बिल लाएंगे, सभी श्रम यूनियनों से इस पर मंत्रणा की गई है.’

हालांकि संकेत ऐसे हैं कि सरकार सभी चार श्रेणियों में एक साथ सुधारों को शायद लागू ना करे. ये आरएसएस समर्थित भारतीय मजदूर संघ के रुख़ की वजह से है. भारतीय मजदूर संघ ने भत्तों को लेकर सुधार पर तो मोदी सरकार को सराहा है, लेकिन अन्य तीन श्रेणियों के प्रस्तावों को लेकर ड्राफ्ट बिल की आलोचना की है.

भारतीय मजदूर संघ की ओर से उठाई गई कुछ अहम आपत्तियों में ESI, EPF को खत्म कर अन्य केंद्रीय योजनाओं के साथ जोड़ना, सामाजिक सुरक्षा फंड का निजीकरण, श्रमिकों को काम से हटाना आसान होना, हड़ताल के अधिकार पर पाबंदी, सुरक्षा प्रावधानों को हल्का करना, काम करने के घंटों, छुट्टी और उससे जुड़े भत्ते के प्रावधानों को ढीला करना आदि.  

हालांकि भारतीय मजदूर संघ ने भत्तों वाली श्रेणी से जुड़े सुधारों वाले बिल को संसद में जल्दी से जल्दी पास कराने की मांग की है.

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भारतीय मजदूर संघ के अध्यक्ष सीके साजी नारायणन ने इंडिया टुडे टीवी को बताया, “श्रम सुधारों की चार में से तीन श्रेणियों पर हमने आपत्ति जताई है. जहां तक भत्तों वाली श्रेणी के सुधार हैं तो उससे हम सहमत हैं.”

नारायणन ने ये भी कहा, ‘सरकार सलाह मशविरे को लेकर सकारात्मक है, मंत्री (श्रम) जिनेवा जा रहे हैं, वो 18 को वापस आएंगे. हम आश्वस्त हैं कि हमारी चिंताओं को लेकर विचार होगा.  

जहां तक लेफ्ट समर्थित लेबर यूनियनों का सवाल है तो वो नये सुधारों का जोर देकर विरोध कर रही है. सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड  यूनियंस (सीटू) का आरोप है कि मोदी सरकार कॉरपोरेट के दबाव में झुक रही है.  

सीटू के महासचिव तपन दास ने कहा, ‘श्रम के संरक्षण प्रावधानों को हटाना, एकपक्षता का युग शुरू करना, हायर एंड फायर को बढ़ावा देना, श्रम यूनियनों के गठन में बाधा, ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस की आड़ में 70 फीसदी श्रमिकों को कवरेज से बाहर करना, हम इस सब का ज़मीनी स्तर पर विरोध करेंगे.’

श्रम सुधारों को लेकर सरकार की कोशिशों का उद्योग जगत ने स्वागत किया है. साथ ही उम्मीद जताई है कि ये श्रम सुधार जल्द से जल्द लागू होंगे.

एसोचैम के उप महासचिव सौरव सन्याल ने इंडिया टुडे टीवी से कहा, ‘44 पुरातन कानूनों को जोड़ने की सूरत में श्रम सुधार उद्योग के लिए स्वागत योग्य कदम है. इससे घरेलू अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) बढ़ेगा. ये कहना गलत है कि श्रम यूनियनों से मंत्रणा नहीं की गई. आम सहमति बनाने के लिए उन्हें हर कदम पर साथ जोड़े रखा गया.’  

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सरकार को उम्मीद है कि श्रम कानूनों से जुड़े सुधारों से निवेश आकर्षित होगा और विकास दर बढ़ेगी. हालांकि सरकार को राज्यसभा में कड़ी चुनौती का सामना करना होगा जहां अभी वो बहुमत में नहीं है.

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